आज कामिनी खुश थी। आज सास वृद्धाश्रम के लिए निकलेगी। कामिनी नहीं चाहती थी कि सास उनके साथ रहे। उसकी इच्छा दी कि वो अपने आगे की जिंदगी वृद्धाश्रम में बिताये। वैसे सास से परेशानी तो कोई नहीं थी। पर, उम्र के साथ साथ तकलीफें तो बढेगी ना फिर.. और कोई बेटा तो है नहीं। ले देकर कामिनी को ही संभालना था उन्हें। 75 के आसपास की थी सास। सो पति से चर्चा कर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया और सास को निर्णय से अवगत करा दिया।
वृद्धा और कुछ तो नहीं बोली बस यही कहा , " अपने सिनियर सिटीजन फ्रेंड्स को बता देती हूं.. वरना मुझे मार्निंग वाॅक के लिए पार्क में ना पाकर चिंतित होंगी"।
सास ने अपने सीनियर सिटीजन ग्रुप में मैसेज डाल दिया और ग्रुप से लेफ्ट हो गई । किसी की सहानुभूतिपूर्ण शब्द की उन्हें जरुरत नही थ
आज ही निकलना था और पैकिंग हो चुकी थी। अचानक काॅलबेल बजी ।दरवाजा खोला तो कामिनी का हैंडसम, स्मार्ट बेटा अथर्व खडा था जिसकी बंगलुरु में नौकरी थी।
दादी के पैर छूते हुए उन्हें गले लगाते हुए बोला, "चलो दादी बंगलुरु चलते हैं । अभी तीन घंटे में हमारी फ्लाईट है। कल अमित ने मुझे बताया कि आपको....... । खैर चलिए ..."
" बेटा ..." अवाक कामिनी अथर्व के सामने आकर दोनों हाथ फैलाकर उसे रोकने का प्रयास करती हुई बोली, "सुनों तो बेटा..."
" कुछ नहीं सुनना..." निर्णयात्मक लहजा था अथर्व का। " अब दादी आजीवन मेरे पास रहेगी... आपलोग अपना देख लेना"।
पूरी काॅलनी देखती रह गई कितने गर्व के साथ अपने पोते के साथ जा रही थी एक वृद्धा।
✍🏻 अनिता
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