आसान नहीं होता
प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी,
झुकती नहीं वो कभी
जबतक न हो
रिश्तों में प्रेम की भावना।
तुम्हारी हर हाँ में हाँ और न में न
कहना वो नहीं जानती,
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं
झूठ की डोर में रिश्तों को बाँधना।
वो नहीं जानती
स्वांग की चाशनी में डुबोकर
अपनी बात मनवाना,
वो तो जानती है
बेबाक़ी से सच बोल जाना।
फ़िज़ूल की बहस में पड़ना
उसकी आदतों में शुमार नहीं,
लेकिन वो जानती है तर्क के साथ
अपनी बात रखना।
वो क्षण-क्षण
गहने- कपड़ों की माँग नहीं किया करती,
वो तो सँवारती है स्वयं को
अपने आत्मविश्वास से,
निखारती है अपना व्यक्तित्व
मासूमियत भरी मुस्कान से।
तुम्हारी गलतियों पर तुम्हें टोकती है,
तो तकलीफ़ में तुम्हें सँभालती भी है।
उसे घर सँभालना बख़ूबी आता है,
तो अपने सपनों को पूरा करना भी।
अगर नहीं आता तो किसी की
अनर्गल बातों को मान लेना।
पौरुष के आगे वो
नतमस्तक नहीं होती,
झुकती है तो
तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम के आगे।
और इस प्रेम की ख़ातिर
अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है।
हौसला हो निभाने का
तभी ऐसी स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि टूट जाती है वो
धोखे से, छलावे से, पुरुष अहंकार से,
फिर जुड़ नहीं पाती
किसी प्रेम की ख़ातिर..
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