कभी फुर्सत में लिखूंगी
वो तमाम खूबसूरत पल…
जो मैंने सोचे ज़रूर थे
मगर उन्हें जी नहीं पाई।
वो खिलखिलाती सुबहें
जो खिड़कियों से झाँकती रहीं
मैंने देखा तो सही
मगर बाहों में भर नहीं पाई।
वो संध्या की धीमी लौ
जो मेरे आँगन में उतर आई थी
मैंने रोशन तो किया
मगर उसमें खो नहीं पाई।
वो बारिश की बूँदें
जो हथेलियों में थमी थीं
मैंने महसूस तो किया
मगर भीग नहीं पाई।
वो गीत जो होठों तक आए
मगर धड़कनों में बसे नहीं
वो ख़्वाब जो आँखों में जले
मगर रोशनी बन सके नहीं।
एक दिन जब दुनिया से परे
खुद से रूबरू हो जाऊंगी
तब हर अधूरी ख्वाहिश का
इक मुकम्मल गीत गाऊंगी।
कभी फुर्सत में लिखूंगी
वो तमाम खूबसूरत पल…
जो मैंने सोचे ज़रूर थे,
मगर उन्हें जी नहीं पाई।
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