मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

*खूबसूरत*

 एक बहुत ही सुंदर कविता

जो कह दिया वह *शब्द* थे ;

जो नहीं कह सके

वो *अनुभूति* थी ।।

और,

जो कहना है मगर ;

कह नहीं सकते,

वो *मर्यादा* है ।।


*जिंदगी* का क्या है ?

आ कर *नहाया*,

और,

*नहाकर* चल दिए ।।


*बात पर गौर करना*- ----


*पत्तों* सी होती है

कई *रिश्तों की उम्र*,

आज *हरे*-------!

कल *सूखे* -------!


क्यों न हम,

*जड़ों* से;

रिश्ते निभाना सीखें ।।


रिश्तों को निभाने के लिए,

कभी *अंधा*,

कभी *गूँगा*,

और कभी *बहरा* ;

होना ही पड़ता है ।।


*बरसात* गिरी

और *कानों* में इतना कह गई कि---------!

 *गर्मी* हमेशा किसी की भी नहीं रहती।। 


*नसीहत*,

*नर्म लहजे* में ही

अच्छी लगती है ।

क्योंकि,


*दस्तक का मकसद*,

*दरवाजा* खुलवाना होता है;

तोड़ना नहीं ।।


*घमंड*-----------!

किसी का भी नहीं रहा,

*टूटने से पहले* ,

*गुल्लक* को भी लगता है कि ;

*सारे पैसे उसी के हैं* ।


जिस बात पर ,

कोई *मुस्कुरा* दे;

बात --------!

बस वही *खूबसूरत* है ।।


थमती नहीं,

*जिंदगी* कभी,

किसी के बिना ।।

मगर,

यह *गुजरती* भी नहीं,

अपनों के बिना ।।

🌷🙏🌷🙏🌷

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