सोमवार, 21 अप्रैल 2025

*औरत का दर्द*

 शादी के 40 साल बाद आज उन्होंने बातो बातों में किसी बात से नाराज़ होकर सब के सामने कहा की, " तूने आज तक किया ही क्या है ? सिर्फ घर पे खाना बनाना और बच्चो को संभालना और वैसे भी आज कल बच्चे भी तुम्हारी बात कहा सुनते है ? वो अपने मन की ही तो करते है, इतने सालो में तूने उनको कुछ नहीं सिखाया, तभी इतने बिगड़ गए है दोनों बच्चे।"


          अपने पति की ऐसी बात सुनकर आज पूरी रात सुनीता को नींद नहीं आई, सुनीता सोचती रही, रोती रहीं, की " सच में मेंने आज तक किया ही क्या है ? अगर मेंने आज तक इस घर के लिए सच में कुछ नहीं किया, तो अब मेरा यहाँ रहने का कोई मतलब नहीं। कहाँ जाना है पता नहीं, मगर बस अब और नहीं। " ये सोचते हुए,


सुनीता ने अपने पति विशाल को एक चिठ्ठी लिखी, उसमे उसने लिखा था, की  


       " मेंने आज पूरी रात सोचा की, तुम शायद सही कह रहें थे। आज तक मैंने किया ही क्या है ? कौन हूँ में ? क्या है मेरी पहचान ? चाहती थी में आसमान में उड़ना, मगर उड्ने से पेहले ही मेरे पंख काट दिए गए। सपना देखने से पहले ही सपना तोड़ दिया गया। बाबा ने कहा, "शादी की उम्र बीती जा रही है, मुझसे पूछे बिना ही मेरी शादी करवा दी गई। बाबा का तो मानो, बहोत बड़ा बोझ उतर गया। ससुराल में मेरे लिए हर कोई अजनबी सा था। मगर माँ ने सिखाया था की, अब यही तुम्हारी दुनिया है, यही तेरे अपने। अब से इन सबको ही तुम अपने माँ, बाबा और भाई, बहन समझना। पति तेरे लिए परमेश्वर है, इनकी कही कोई बात को मत टालना । सब को प्यार देके अपना बना लेना। माँ की बात मान के मैंने सबको अपना बनाया। मुझे क्या पसंद था और क्या नापसंद, इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं।


       सुबह को आपकी कॉफ़ी और नास्ता, बच्चो का लंच बॉक्स, बाबा की डायबिटीज की अलग से दवाई, नाश्ता, माँ के घुटनो की तेल मालिश, आपका टिफ़िन, मार्केट जाना, शाम की खाने की तैयारी करना, माँ को इलाज के लिए बार बार अस्पताल ले जाना, बच्चो को पढ़ाना, उनकी शैतानी बर्दाश्त करना, आपके दोस्त मेहमान बनकर अचानक से आए तो उनके लिए खाना बनाना। बस इतना ही तो किया मैंने ! और तो क्या किया ? इस लिए अब मुझे कुछ ओर करना है। अब में जा रही हूँ, ये तो नहीं जानती कहा ? मगर मुझे जाना है। पर तुम अपना ख्याल रखना।" 


      फिर सुनीता वो चिठ्ठी टेबल पे रख कर चुपचाप वहांँ से चली गई।


        सुबह होते ही बाबूजी अपनी दवाई, नास्ता और अख़बार के लिए बहू को आवाज़ देने लगे। उसके साथ माँ भी अपने घुटनेा के मालिश के लिए बहू को आवाज़ देने लगी। बच्चे भी माँ हमारा टिफ़िन, हमारा ब्रेकफास्ट कहा है ? आज माँ कहा चली गई ? बहार इतना शोरगुल सुनकर उसके पति की भी ऑंखें खुल गई। क्या हुआ पूछता हुआ वो बहार आया। इतना शोर क्यों मचा रखा है सुबह सुबह। पापा देखो ना, माँ कहीं नहीं दिख रही। हमको कॉलेज जाने में देरी हो रही है। अभी तक ब्रेकफास्ट भी नहीं किया। लगता है आज भूखा ही जाना पड़ेगा, दूसूरे ने कहा मेरी किताबे भी नहीं मिल रही, माँ तुम कहा हो ? बाबूजी ने आवाज़ लगाई, बहू ज़रा देखो तो, मेरा चश्मा किधर है ? माँ ने आवाज़ लगाई, बहू मेरे मालिश की बोतल और दवाइयाँ कहाँ है ? सारा घर जैसे बिख़रा था। उसका पति ज़ोर से चिल्लाया। सब चुप हो जाओ, में देखता हूँ वो कहा है, यही कही होगी, कहाँ जाएगी ? वो उसे फ़ोन करने लगा मगर उसका फ़ोन तो कमरें में टेबल पे ही था। उसने देखा फ़ोन के पास एक चिठ्ठी भी थी। उसे बड़ी अचरज हुई, उसने वो चिठ्ठी खोल के पढ़ी। चिठ्ठी पढ़कर ही, उसे याद आया की उसने कल शाम अपनी बीवी का कैसे अपमान किया था, वो भी सब के सामने। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। वो उस से माफ़ी मांँगना चाहता था, मगर कैसे ? उसका कोई अतापता नहीं था। उसने उसके मायके और उसकी सहेलियाँ सबको फ़ोन करके पूछा, मगर किसी को नहीं पता वो कहा है ? किस हाल में है ? 

        मगर सुनीता अपने मायके में ही थी, जानबूझकर उन लोगो ने विशाल से झूठ बोला की वो घर पे नहीं है ताकि उसे अपनी गलती का एहसास हो। 

फ़िर ५ दिन बाद विशाल सुनीता के मायके गया, तो वहाँ सुनीता को देख कर वो खुश हो गया, और सब से पहले विशाल ने सब के सामने सुनीता से अपनी गलती की माफ़ी माँगी, और वापिस घर चलने को कहाँ। औरत का दिल तो वैसे भी बड़ा होता है, इसलिए वो अपने परिवार को कैसे अकेला छोड़ देती ? सुनीता ने विशाल को माफ़ कर दिया और वो अपने पति के साथ घर चली गई। घर में सब लोग भी बहोत खुश हो गए, अब सब सुनीता को काम में मदद भी करने लगे थे, अब सारे काम का बोझ सिर्फ सुनीता पर नहीं था, तो उसे भी थोड़ा आराम मिल रहा था, बच्चे भी अपनी माँ को काम में मदद करने लगे थे और अपनी माँ का सम्मान भी करने लगे।



मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

*खूबसूरत*

 एक बहुत ही सुंदर कविता

जो कह दिया वह *शब्द* थे ;

जो नहीं कह सके

वो *अनुभूति* थी ।।

और,

जो कहना है मगर ;

कह नहीं सकते,

वो *मर्यादा* है ।।


*जिंदगी* का क्या है ?

आ कर *नहाया*,

और,

*नहाकर* चल दिए ।।


*बात पर गौर करना*- ----


*पत्तों* सी होती है

कई *रिश्तों की उम्र*,

आज *हरे*-------!

कल *सूखे* -------!


क्यों न हम,

*जड़ों* से;

रिश्ते निभाना सीखें ।।


रिश्तों को निभाने के लिए,

कभी *अंधा*,

कभी *गूँगा*,

और कभी *बहरा* ;

होना ही पड़ता है ।।


*बरसात* गिरी

और *कानों* में इतना कह गई कि---------!

 *गर्मी* हमेशा किसी की भी नहीं रहती।। 


*नसीहत*,

*नर्म लहजे* में ही

अच्छी लगती है ।

क्योंकि,


*दस्तक का मकसद*,

*दरवाजा* खुलवाना होता है;

तोड़ना नहीं ।।


*घमंड*-----------!

किसी का भी नहीं रहा,

*टूटने से पहले* ,

*गुल्लक* को भी लगता है कि ;

*सारे पैसे उसी के हैं* ।


जिस बात पर ,

कोई *मुस्कुरा* दे;

बात --------!

बस वही *खूबसूरत* है ।।


थमती नहीं,

*जिंदगी* कभी,

किसी के बिना ।।

मगर,

यह *गुजरती* भी नहीं,

अपनों के बिना ।।

🌷🙏🌷🙏🌷

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

स्त्री मन

 अब मैं वो नहीं रही जो पहले हुआ करती थी।

मैंने बहुत कुछ सीखा है, बढी हूं, और समय और अनुभव के द्वारा जिन बदलाओं का मैं हिस्सा बनी हूं, वही मेरी पहचान बन गए हैं।

अब मुझे खुद को किसी के सामने समझाने की जरूरत नहीं महसूस होती। अगर कोई मेरे बारे में राय रखता है—चाहे वह अच्छी हो या बुरी—तो उसे रखे। मैं अपनी ऊर्जा उन लोगों को साबित करने में बर्बाद नहीं करूंगी जिन्होंने पहले ही अपना फैसला कर लिया है।

मैंने उन लोगों से बहस करना छोड़ दिया है जो मेरी ऊर्जा के लायक नहीं हैं। उन्हें बात करने दो। उन्हें अनुमान लगाने दो। मुझे कुछ साबित नहीं करना है।

मैं अभी भी उन लोगों की मौजूदगी की कद्र करती हूं जो मेरी जिंदगी में मायने रखते हैं, लेकिन अब मैं किसी से यह नहीं कहती कि रुक जाए। अगर कोई जाने का निर्णय लेता है, तो मैं दरवाजा खुला छोड़ देती हूं।

मैं जीवन से जो मिला है, उसकी सराहना करती हूं, और अब मैं उससे अधिक नहीं मांगती जो मेरे लिए लिखा गया है। मैं उन लोगों के लिए हूं जिन्हें मेरी जरूरत है, लेकिन मैं अपनी मौजूदगी को उन जगहों पर नहीं थोपती जहां मुझे नहीं चाहिए।

मैं दयालु हूं, लेकिन अब मैं भोली नहीं हूं। मैं अपना विश्वास देती हूं, लेकिन अब किसी को इसे गलत इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दूँगी।

मैने अपनी शांति की रक्षा करना सीख लिया है। मैं खुद को किसी पर नहीं थोपती, और मैं अपनी राय को अपने तक ही रखती हूं। कुछ लड़ाइयाँ लड़ने के लायक नहीं होतीं। कुछ लोग पीछा करने के लायक नहीं होते।देखिए, मैंने विकास किया है। मैंने खुद को बदला है। और पहली बार, बहुत समय बाद—यह यात्रा अब मेरे बारे में है।


वो तमाम पल

 कभी फुर्सत में लिखूंगी

वो तमाम खूबसूरत पल…

जो मैंने सोचे ज़रूर थे

मगर उन्हें जी नहीं पाई।


वो खिलखिलाती सुबहें

जो खिड़कियों से झाँकती रहीं

मैंने देखा तो सही

मगर बाहों में भर नहीं पाई।


वो संध्या की धीमी लौ

जो मेरे आँगन में उतर आई थी

मैंने रोशन तो किया

मगर उसमें खो नहीं पाई।


वो बारिश की बूँदें

जो हथेलियों में थमी थीं

मैंने महसूस तो किया

मगर भीग नहीं पाई।


वो गीत जो होठों तक आए

मगर धड़कनों में बसे नहीं

वो ख़्वाब जो आँखों में जले

मगर रोशनी बन सके नहीं।


एक दिन जब दुनिया से परे

खुद से रूबरू हो जाऊंगी

तब हर अधूरी ख्वाहिश का

इक मुकम्मल गीत गाऊंगी।


कभी फुर्सत में लिखूंगी

वो तमाम खूबसूरत पल…

जो मैंने सोचे ज़रूर थे,

मगर उन्हें जी नहीं पाई।

*मेरे दो अनमोल रतन*

 *मेरे दो अनमोल रतन*


*धीरे धीरे मेरे बेटे मेरी माँ बनते जा रहे हैं*

*अब तक मैंने देखभाल की ,सम्भाला उनको*  

*अब वे बड़े प्यार से मुझे सम्भाल रहे हैं*


*धीरे धीरे मेरे बेटे मेरी माँ बनते जा रहे हैं*

*महसूस करती हूं में भी उनकी भावनाओं को*


*पर बहुत अंतर हो गया है उनके और मेरे तरीक़े और सोच में*


मैं कहती थी *चुप रहो शोर मत करो*,

वो कहते हैं *बातें करो चुप मत रहो*,


मैं कहती थी, *गंदे पाँव ऊपर मत रखो*,

वो कहते हैं *पाव सूज जाएँगे ऊपर ही रखो* 


 मैं कहती थी *उल्टा सीधा मत खाओ पेट ख़राब होगा*

*वजन बढ़ जाएगा* 

वो कहते हैं *जो मन हो वह खा लो मां... जो भी कहोगी ऑनलाइन आ जाएगा* बोलो क्या मंगाना है?


मैं तड़के उठाती थी *पढ़ो व्यायाम करो* 

वो कहते है अब *देर से उठना माँ आराम करो* 


सिखाने के लिहाज़ से मैं कहती थी *थोड़े काम घर के भी किया करो* 

वो कहते हैं *बहुत कर लिया मां,अब आराम भी करो बाइयां किसके लिए लगाई हैं * एक दिन नही होगा तो कौन सा तूफान आ जायेगा


उनकी हर ज़िद पूरी नही करती थी मैं उनके बिगड़ जाने के डर से 

पर बेटे *बिना कहे ही, मेरी हर इच्छा जान जाते हैं , न जाने किधर से* बिना मांगे,सामान घर पर ही आ जाता 


मैं कहती समय पर खेलकूद, समय, पर पढ़ाई,करो अब 

वो कहते के *समय पर खाना सोना समय पर दवाई*.. लो 


 मैं ....रोज दोस्तों के साथ बेमतलब, घूमना, हुड़दंग ना करो,कहती रहती थी और वो

 वो...अब कहते हैं...*माँ सहेलियों से बातें करो , किट्टी करो*..खूब घुमा फिरा करो, वीडियो ,फोटो बनाया करो ,गाने गाया करो,मीडिया में मोजूद आपके सारे शौक का मसाला है,जो मन करे, उसमें देखा करो 


मैं--- कहती के सिनेमा नही जाओ, घर में भी रहा करो ,

वो--कहते हैं कि- * पिक्चरें बहुत अच्छी है मां Netflix पर देखा करो* मेने सब्सक्राइब कर रखा है आराम से खूब देखा करो


उन्हें नित नए फ़ैशन के उटपटांग कपड़े पहनने से रोकती थी , और 

*वो ऑनलाइन फैशन के सारे सामान मंगाते हैं क्रीम, मास्क जुड़े *मेरे चेहरे पे* निखर लाने के लिए बस,

और कहते हैं ….….*chil माँ try तो करो* 😘🤗

अरे कुछ मंगाऊं क्या ये बस आप बोलो, इनके साथ साथ अब कई बाते पोता भी दोहराता रहता है , फिल्टर ऐसे लगाते हैं दादी लगाओ देखो कितने अच्छे होते हैं, नई नई टैक्नोलॉजी बतियाता रहता है, समय के साथ वक्त का परिंदा उड़ता सा लगता है😊😊😊

धन्य है जीवन मेरा अब इस उमर में बस उनका ऐसा साथ अच्छा लगता है, बूढ़े होंगे अपने दुश्मन कहकर, में अब उन अनमोल रत्नों का सारा कहा ,सुन लेती हूं,बहुत अच्छा और गर्व सा महसूस कर लेती हूं 😘💓😘💓