रात के बारह बजे थे। कमरे में पत्नी बीमार पड़ी थी और वो सोचने में मशग़ूल था कि पत्नी के ऑपरेशन के लिए पाँच लाख कहाँ से लाऊँ।
भगवान से हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने लगा ..
अचानक कमरे में भगवान प्रकट हुए,वो भौंचक्का रह गया,कहीं भ्रम तो नहीं ? ख़ुद को चिकोटी काटी। लेकिन सपना नहीं था वह।
मुसकुराते हुए भगवान बोले - "बोलो मनुवा ! क्या चाहिए तुम्हें ?"
वो हड़बड़ाया, क्या माँगूँ ?
"ज़ल्दी कर मनुवा !समय निकला जा रहा है " भगवान फिर बोले।
वो घबरा गया। क्या माँगूँ ? महल, पैसे, गाड़ी ? सोचा पैसे ही माँगूँगा।
यही तो चाहिए ऑपरेशन के लिए, सुखी जीवन के लिए। पर कितना माँगूँ ? दश लाख, पचास लाख, एक करोड़ या दश करोड़ ?...सोचने में समय बहुत तेज़ी से निकल रहा था .
"मेरे पास वक़्त नहीं हैं मनुष्य, जल्दी माँगो !" भगवान बोले।
"दश करोड़ रूपए प्रभु !" उसने एक ही साँस में कहा ।
"तथास्तु !" भगवान चले गए। अचानक दश करोड़ के नोट चारों तरफ़ दिखाई देने लगे।
ख़ुशी से पागल हो उसने पत्नी को उठाने की कोशिश की। लेकिन वह तो ठंडी पड़ गई थी। एक तरफ़ पत्नी की लाश और दूसरी तरफ़ दस करोड़ के नोट।
वो जोर से चिल्लाया - "प्रभु ! मेरी पत्नी को ज़िदा कर दो !" लेकिन भगवान वहाँ नहीं थे। चारों ओर सन्नाटे ओर नोटों के सिवा कुछ न था।
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