शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

साक्षात भगवान

साक्षात भगवान

मानव भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूजा कर रहा था । पूजा करते-करते वह बोला -
" हे भगवान,मैं न जाने कितने विधि-विधानों से तुम्हारी पूजा करते आया हूँ पर आज तक जान नहीं पाया हूँ कि किस तरह की पूजा से तुम प्रसन्न होते हो । क्योंकि तुम
अदृश्य हो इसलिए कभी बता नहीं पाते। काश कि तुम साक्षात् होते,प्रत्यक्ष होते तो जरुर बोल पाते कि तुम किस तरह से प्रसन्न होते हो।
अब भगवान बिना बोले न रह सके। बोले -
" पुत्र ! भगवान अदृश्य भी होते हैं और प्रत्यक्ष भी । अगर तुम प्रत्यक्ष भगवान को सुख दोगे तो मैं तुरंत प्रसन्न हो जाऊंगा । तुम्हें किसी भी तरह की पूजा की जरुरत ही
न होगी । "
मानव हर्षित हो बोला -
" हे भगवान ! फिर शीघ्र बताइए प्रत्यक्ष भगवान कहाँ हैं ? मैं उन्हें तुरंत सुख देकर तुम्हें प्रसन्न करना चाहता हूँ ।
भगवान शांत मुस्कान के साथ बोले -
" पुत्र ! साक्षात् भगवान तुम्हारे माता-पिता हैं । तुम उन्हें सुखी रखो,मैं अपनेआप प्रसन्न हो जाऊँगा । फिर तुम्हें किसी भी विधि से पूजा करने की जरुरत नहीं रहेगी ।

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