मंगलवार, 4 जून 2013

चार पत्नियाँ

एक व्यापारी था, उसकी चार पत्नियाँ थी . वह
अपनी चौथी पत्नी से बहुत प्रेम करता, उसकी हर
जरूरत
को पूरा करता था और हर काम में उसकी मदद
करता था .
वह अपनी तीसरी पत्नी से भी बहुत प्यार
करता था . और
वह अपनी दूसरी पत्नी की भी हर मांग
को पूरी करता था और उसकी दूसरी पत्नी भी उसके
काम
और कारोबार में उसकी मदद करती थी . वह
अपनी पहली पत्नी से बिल्कुल भी प्रेम
नहीं करता था .
परन्तु उसकी पहली पत्नी उससे बहुत प्रेम
करती थी . एक
दिन व्यापारी बीमार हो गया और वह मरणासन्न
में
पड़ा था . उसने चारों पत्नियों को बुलाया . उसने
अपनी चौथी पत्नी से पूछा –‘क्या तुम मेरी मदद
करोगी और मेरे शरीर को मुक्ति दोगी ?’’तो वह
बोली –
नहीं . मैं दूसरी शादी कर 
लूँगी, परन्तु
तुम्हारी मदद
नहीं करुँगी . वह बहुत नाराज हो जाता है और
इसी प्रकार अपनी तीनों पत्नियों से
पूछता है .
तीसरी पत्नी भी उसकी मदद करने से इंकार कर
देती है .
दूसरी पत्नी भी यही कहकर वहां से
चली जाती है . फिर
वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी से पूछने के
योग्य
नहीं रहता वहीं अपने और वहीं अपने कमरे में
लेट जाता है .
कुछ देर बाद उसकी पत्नी वहां आती है और
कहती है –“मैं
तुम्हारी सहायता करूंगी .’’ ऐसा कहकर
वो भी वहां से
चली जाती है . वास्तव में हम्हारे जीवन में
चार
पत्नियों है–चौथी पत्नी है
हमारा शरीर ,क्योंकि जब
हम मर जाते हैं तो हमारा शरीर मिट्टी बन
जाता है .
तीसरी पत्नी है हमारा धन ,शोहरत वो भी हमारे
पास
से चला जाता है जब हम मर जाते है तो वह भी हमसे
छीन
जाती है . दूसरी पत्नी है
हमारी रिश्तेदारी ,घर के लोग ,हमारे
मित्र ,जो हमारा अंतिम संस्कार करने के लिए
हमारा साथ शमशान घाट तक जाते हैं परन्तु
वहां से वापस
आ जाते हैं . पहली पत्नी हमारी आत्मा है
जो हमारे साथ
सदा रहती है . हमारी सदा मदद करती है . परन्तु
हम
कभी भी उसकी मदद नहीं करते . कभी भी उससे
प्रेम
नहीं करते हैं .इसलिए मैं
यही कहना चाहूं
गी  की बाकी तीन
पत्नियों तो सिर्फ
एक खेल के रूप में है परन्तु
पहली पत्नी हमारी आत्मा है ,
जो सदा हमारे साथ रहती . इसलिए हमें सदा उससे
प्रेम
करना चहिये |

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