भले ही पार कर गयी 66 को मैं
चेहरे पर नूर है
हल्का सा गुरुर है
नही करती अब परवाह मैं
किसी के भी तानों की, उल्हानो की
वो दिन अब लद गये
जब आँखों के कोने पानी था
छुप कर् के मैं रोती थी
होठों पर ले नकली मुस्कान
अब रहती हूँ मस्त अपने में
निहारती हूँ खुद को ,
सँवारती हूँ खुद को आईने में ,
भजन भी मैं गाती हूँ, तो गजल भी मै गाती हूँ,
गाने हमेशा गाना पसंद करती हूं
नाच नही आता पर कोशिश करती हूं
जरूरत नही मुझे रिझाने की अब,
सजना को भी नजर आता है मेरा ये बदला रुप,
उनकी आँखों में अपना अक्स,
मेरे बिन कहे पढ़ लेते वो मेरी जुबाँ
काम वो करती हूँ मैं ,जो मुझे भाता है,
कलम भी चलाती हूँ ,तो कड़छी भी चलाती हूँ,
पार्लर भी जाती हूँ तो मंदिर भी जाती हूँ,
बगियाँ मे देख तितली बच्चो सी मचल जाती हूँ
मोबाइल पर नया देखा तो तुरंत सीखना चाहती हूँ,
बाहर के सारे नज़ारों को समेट कर रख लेती हूं
सब कुछ होते भी कमी महसूस करती हूँ
अपने दिल के टुकड़ों को, बच्चों को, पर
बात उनसे करके कुछ पल , हो लेती हूँ खुश मैं
देख कर खुश उनको भूल जाती हूँ अपने गम,
66 के पार करके मैं जीवन की नयी पारी खेल रही हूँ
जीवन के एक एक पल को में जी रही हूँ
जो नही कर पायी अभी तक
वो सब ,अब ,करने की कोशिश भी कर रही हूँ
*66 को पार करने का गम नही कर रही मैं
नये अध्याय को ,स्वीकारना ,
अब आदत बना रही हूं में
जानती हूँ जनम मरण परण अपने हाथों मे नही है
इसलिए हर पल को खुशी से बिताना चाह रही हूँ
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