रविवार, 15 दिसंबर 2024

नई पीढी


 मैं बैंगलोर गयी बेटे पास ! हवाई जहाज से उतरते ही मैंने बेटा को फोन किया कि आ गयी हूं, कहां हो? मम्मी, मैं ऑफिस में हूं , आपके कैब बुक किया है , एयरपोर्ट के बाहर होगा ।जाकर बैठ जाईये ,घर का पता कैब वाले को दिया हुआ है वो घर तक आपको पहुंचा देगा।

मैं टैक्सी में बैठ गयी, और बेटे के घर पहुंची, और घर का ताला खोल दाखिल हुई। ड्राइंगरूम में सोफे पे पसर गयी थक गयी थी , थोङी देर में कालबेल बजी। दरवाजे पे डिलीवरी बाॅय खङा था कुछ खाने के पैकेट लिए।

पैकेट लिया ही था कि बेटे आकाश का फोन आया__ मम्मी आपका लंच भिजवाया है ,खा लीजिए और आराम करिए, शाम को मिलता हूं आपसे! खाना खाकर सो गयी मैं, बहुत थक  चुकी थी,व सुबह चार बजे ही पटना से बैंगलोर की फ्लाइट पकङने के लिए रात दो बजे से ही जगी हुई थी।  लेटते हीगहरी नींद आ गई थी।बेटे की आवाज आई, मम्मी ! कैैसी हो आप? हाल चाल लेता रहा, और बार बार मोबाइल पर भी ध्यान दे रहा था ।आकाश बहुत खुश था क्योंकि  मम्मी पहली बार, उसके यहाँ बैंगलोर आई थी।

दूसरे दिन सुबह उठी, तो चाय की तलब हुई, आदत थी मुझे सुबह सुबह उठकर चाय पीने की!।। पूछा कि किचन में दूध- चायपती है , चाय बना लेती  हूं।हंसकर आकाश बोला; मम्मी मैं चाय कहां पीता हूं? सोफा पे लेटे हुए मोबाइल पर उसकी उँगली तेजी से घूम रही थी। मैं चुपचाप बैठ गई , क्या करू! यहां का ,कुछ आइडिया भी नहीं ,कि बाहर जाकर चाय पी ले।खैर!अभी इसी उधेङबुन में थी, कि दरवाजे की घंटी बजी ।बेटा बोला , देखो न  मम्मी कौन है? बिचारा बेटा नींद में था और मेरे  आने से, जल्दी उठ गया था।दरवाजे पर गर्मा-गर्म चाय के साथ इडली सांभर बङा का पैकेट लेकर डिलीवरी बाॅय खङा था ।फिर हमदोनों ने नाश्ता किया ।बेटा बोला , कुछ भी जरूरत है, आप मोबाइल से ऑडर कर मंगा  सकतह हो ।आपको चाय पीने की आदत है , मै जानता था , इसलिए मंगा दिया। अपने बेटे की नवीनतम तकनीकी सुविधाजनक मोबाइल फोन ने मुझे अपनी पीढी की याद दिलाई, कि जब पापा ऑफिस से आते तो दौङकर हम सब भाई बहन, उनकी खातिर दारी में लग जाते थे ।कोई दौङकर पानी लाता,कोई नाश्ता देता, कोई जूठा बर्तन उठाता था, हमारे बीते हुए दौर में व आज की पीढी में कितना बदलाव आया है ।हमारे  समय पिता के लिए मन में आदर तो था ही,परंतु एक डर भी रहता था कि वो नाराज न हो जाए? आज की पीढी प्रैक्टिकल है व तकनीकी दुनिया में सांस ले रही है । याद आया कि मेरा टिकट भी मोबाइल से ही बुक किया था बेटे ने! अपने बेटे का ,मेरा इस तरह रखना  मुझे  बहुत स्वाभाविक सा लगा।ऐसा नहीं कि हमारे बच्चे हमारा आदर नहीं करते! बहुत प्यार करते हैं हमें ! बस  अब वक्त के साथ उनका तरीका बदल गया है। जिसको हमे समझना चाहिए, उनकी भावनाएं अब, उनके  व्यस्त वक्त के साथ  बदल गयी है, जिसको समझने मे ही सबकी भलाई है, सोच कर मैं भी मोबाइल चलाने मे खो गई|


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