व्यतीत करना चाहती हूँ ...
सिर्फ एक दिन...
खुद के लिये...
जिसमें न जिम्मेदारियों का दायित्व हो
न कर्त्तव्यों का परायण
न कार्य क्षेत्र का अवलोकन हो
न मजबूरियोँ का समायन
बस मैं ,
मेरे पल ..
मेरी चाहतें और
मेरा संबल
एक कप काफी से
हो मेरे दिन की शुरुआत
भीगकर अतीत के लम्हों में
खोजू अपने जज्बात
भूल गई जो जिंदगी जीना
उसे फिर से याद करु..
सबकी खातिर छोङ चुकी जो
उन ख्वाईशों की बात करु..
उलझी रहू बस स्वयं में ही
न कोई हो आस पास...
जी लू जी भर उन लम्हों को
जो मेरे हो सिर्फ खास..
मस्त मगन होकर में नाचूँ
अल्हङपन सी मस्ती में
जैसे चिङिया चहक रही हो
खुले आसमान सी बस्ती में..
मन का पहनू,
मन का खाऊं
न हो और किसी का ख्याल...
भूल गई हू जो जीना मैं
फिर से न हो मलाल..
शाम पङे सखियों से गपशप
और पानीपूरी खाऊं
डाक्टर के सारे निर्देशों को
बस एक दिन भूल जाऊँ..
मस्त हवा संग बाते करु
खुली सङक पर यूंही चलू..
बेफिक्री की राह पकङकर
अपनी बातों की धौंस धरु..
रात नशीली मेरे आंगन
इठलाती सी आये
लेकर अपनी आगोश में
चांद पूनम का दिखलायें...
सोऊं जब सपने में मुझे
वो राजकुमार आये
परियों की दुनियां से होकर
जो मेरे रंग में रंग जाये..
एकसाथ में बचपन ,
यौवन
फिर से जीना चाहती हूं..
काश! मिले वो लम्हेँ मुझको
एक दिन अगर जो पाती हू...
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