रविवार, 31 दिसंबर 2023

*बरसों का सफर*

 अपनी सत्तर बरस की मां को देखकर,

क्या सोचा है तुमने कभी,

कि वो भी कभी कालेज में टाईट कुर्ती 

और स्लैक्स पहन कर जाया करती थी !

तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते कि

तुम्हारी माँ जब अपने घर के आँगन में

छमछम कर चहकती हुई ऊधम मचाती

दौड़ा करती तो घर का कोना-कोना 

उस आवाज़ से गुलज़ार हो उठता था !

तुम नहीं जानते कि 'ट्विस्ट' डांस वाली प्रतियोगिता में,

जीते थे उन्होंने अनेकों बार प्रथम पुरुस्कार !

किशोरावस्था में वो जब भी कभी

अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे 

छत पर फैली गुनगुनी धूप में सुखाने जाया करती,

तो न जाने कितनी ही पतंगें 

आसमान में कटने लगा करती  थी !

क्या सोचा है तुमने कभी कि अट्ठारह बरस की मां ने

तुम्हारे बीस बरस के पिता को 

जब वरमाला पहनाई तो मारे लाज से 

दुहरी होकर गठरी बन, उन्होंने अपने वर को 

नज़र उठाकर भी नहीं देखा था!

तुमने तो ये भी नहीं सोचा होगा कि 

तुम्हारे आने की दस्तक देती उस

प्रसव पीड़ा के उठने पर अस्पताल जाने से पहले 

उन्होंने माँग कर बेसन की खट्टी सब्जी खाई थी !

तुम सोच सकते हो क्या कि कभी,

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि

तुम्हें मानकर , अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियां 

जिस संदूक के अखबार के कागज़ के नीचे रख 

एकबार तालाबंद की थी, उस संदूक की चाबी 

आजतक उन्होंने नहीं ढूंढी !

और तुम उनके झुर्रीदार कांपते हाथों, क्षीण याद्दाश्त, मद्धम नजर और झुकी कमर को देख, 

उनसे कतराकर ,

खुद पर इतराते हो ?

ये बरसों का सफर है !

तुम सोच सकते भी नहीं ,,

🙏🙏

सुजाता,,,

बुधवार, 6 दिसंबर 2023

*संकीर्ण विचार*

 जब अर्चना इवनिंग वॉक से घर लौटीं, तो उनके साथ एक सज्जन भी थे, जो अर्चना के ही हमउम्र थे. अर्चना अपनी बहू सांची से उस सज्जन का परिचय कराती हुई बोलीं, "सांची, ये हैं विवेक गुप्ता, मेरे कॉलेज फ्रेंड."

यह सुन सांची को हैरानी मिश्रित ख़ुशी हुई, इतने सालों में कभी भी अर्चना ने इस नाम का ज़िक्र नहीं किया था. हां, सांची की शादी के वक़्त अवश्य कुछ महिलाओं से अर्चना ने सांची को यह कहकर मिलवाया था कि ये मेरी स्कूल और कॉलेज फ्रेंड्स हैं, लेकिन उनमें कोई भी पुरुष मित्र नहीं था.

सांची ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था और ना उसे कभी ऐसा लगा कि उसकी सासू मां का भी कोई पुरुष मित्र होगा या हो सकता है. यहां इस भोपाल शहर में अर्चना की कुछ सहेलियां ज़रूर थीं, जो अक्सर घर आती-जाती रहती थीं, लेकिन वे सभी आस-पड़ोस की महिलाएं और अर्चना के स्वर्गवासी पति के मित्र व सहकर्मी की पत्नियां ही थीं, जिन्हें सांची बहुत अच्छी तरह से जानती थी. सांची के लिए ये विवेक गुप्ता नया नाम था, लेकिन उसके बावजूद सांची ने उस शख़्स को पूरे सम्मान के साथ बैठने का आग्रह किया और उसके बाद अर्चना से बोली, "मम्मीजी, आप बातें कीजिए मैं चाय लेकर आती हूं."

सांची इतना कहकर मुड़ने ही वाली थी कि अर्चना बोली, "सांची, चाय केवल मेरे लिए ही लाना, विवेक के लिए ब्लैक कॉफी ले आओ." ऐसा कहकर अर्चना हंसती हुई विवेक की ओर देखकर बोली, "क्यों ठीक कह रही हूं ना." इस पर विवेक भी हंसता हुआ बोला, "अरे वाह! अर्चु आज भी तुम्हें मेरी पसंद याद है."

अर्चना भी चहकती हुई बोली, "हां, भला कैसे भूल सकती हूं. कॉलेज कैंटीन में हमने घंटों जो साथ बिताए हैं."

अर्चना का इतना कहना था कि दोनों ठहाके मार कर हंसने लगे. विवेक के मुंह से अर्चु और अर्चना से कॉलेज कैंटीन सुन कर कुछ पल के लिए सांची के पांव की गति स्वत: ही धीमी हो गई और उसके कान खड़े हो गए. इधर अर्चना और विवेक इस बात से बेख़बर कॉलेज में बिताए अपने दिनों को स्मरण करके आनंदित हो रहे थे. उधर सांची किचन में ज़रूर थी, परन्तु उसका पूरा ध्यान हॉल में बैठे अर्चना और विवेक की बातों की ओर ही था. यह अलग बात थी कि उसे दोनों के बीच होते वार्तालाप ठीक से सुनाई नहीं दे रहे थे, केवल हंसने की आवाज़ ही सांची के कानों तक पहुंच रही थी.

चाय, कॉफी और कुछ नमकीन के साथ जब सांची हॉल में पहुंची, तो उसने देखा अर्चना और विवेक बिंदास किसी बात पर हंस रहे हैं. अर्चना के चेहरे पर ऐसी हंसी सांची तभी देखती, जब अर्चना की स्कूल व कॉलेज फ्रेंड मालिनी आंटी अर्चना से मिलने आती, वरना बाकी लोगों के संग मिलकर अर्चना के होंठों पर मुस्कान तो ज़रूर होती, किन्तु यह बेबाक़पन और बिंदास हंसी कभी दिखाई नहीं देती.

आज अर्चना की आंखों में चमक और चेहरे पर निश्छल हंसी थी. यह देख सांची को समझने में वक़्त नहीं लगा कि जो शख़्स उसकी सासू मां के साथ बैठा है वह उसकी सासू मां का सच्चा व गहरा मित्र है, क्योंकि सांची यह बात भली-भांति जानती थी कि कोई भी इंसान दिल खोलकर केवल अपने सच्चे दोस्त के समक्ष ही हंसता या फिर रोता है.

काफ़ी देर गप्पे मारने के पश्चात विवेक बोला, "अच्छा अर्चु अब मैं चलता हूं, कल मिलते हैं इवनिंग वॉक पर." इतना कहकर विवेक ने दरवाज़े का रूख किया और अर्चना अपने कमरे की ओर चली गईं. विवेक का घर से बाहर निकलना हुआ और उसी वक़्त अर्चना का बेटा यानी सांची के पति संदीप का आना हुआ. अपने घर से किसी अनजान व्यक्ति को निकलता देख संदीप को थोड़ा आश्चर्य हुआ. घर के अंदर आते ही संदीप ने सांची से पूछा, "ये हमारे घर से अभी-अभी जो बंदा बाहर गया वो कौन था..?"

संदीप का ऑफिस बैग अपने हाथों में लेती हुई सांची बोली, "ये विवेक गुप्ताजी थे मम्मीजी के कॉलेज फ्रेंड."


यह सुनते ही संदीप के चेहरे का भाव थोड़ा बदल गया और वह आश्चर्य से बोला, "मम्मी के फ्रेंड? विवेक गुप्ता! यह नाम तो पहले कभी नहीं सुना, लेकिन ये आए क्यों थे?"

"ये आए नहीं थे, मम्मीजी इन्हें लेकर आई थीं."

"क्यों..?" अभी सांची इस क्यों का कोई जवाब संदीप को दे पाती, इससे पहले ही अर्चना हॉल में आ पहुंचीं और संदीप के क्यों का जवाब देती हुई बोली, "क्योंकि विवेक गुप्ता मेरा फ्रेंड है और उसे मेरा घर देखना था."

अर्चना से यह जवाब सुन संदीप स्वयं को संयमित करते हुए बोला, "आपका फ्रेंड, लेकिन मम्मी आज से पहले तो ये हमारे घर कभी नहीं आए और ना ही आपने कभी इनकी चर्चा की, फिर आज अचानक…"

इतना कहकर संदीप बीच में ही रुक गया, तभी अर्चना संदीप की बातों व आंखों में संदेह देखकर बोलीं, "अचानक नहीं बेटा पिछले एक सप्ताह से विवेक को मैं घर लाने की सोच रही थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था. आज समय मिला, तो सोचा ले चलती हूं. और रही बात पहले कभी विवेक की ज़िक्र ना करने की, तो ऐसा है कि कभी ऐसा कोई प्रसंग ही नहीं आया कि मैं विवेक की चर्चा करती. वैसे भी कॉलेज के बाद विवेक ऑउट ऑफ इंडिया चला गया और मेरी शादी हो गई. अब जा कर मिला है इतने सालों बाद. तुम्हें पता है विवेक भी हमारी ही सोसायटी के ए विंग में अपने बेटा-बहू और पोते के साथ रहता है."

अर्चना अपने बेटे संदीप को कुछ इस तरह से सफ़ाई दे रही थी मानो उसने विवेक को घर बुलाकर कोई गुनाह कर दिया हो. तभी सांची बोली, "अच्छा हां, ए विंग में मैंने सुना तो है कोई गुप्ता फैमिली आई है, तो क्या ये विवेक अंकल की फैमिली है." अभी यह सारी बातें हो ही रही थी कि संदीप वहां से चला गया और बात आई गई हो गई.

अब रोज़ इवनिंग वॉक पर अर्चना और विवेक का सोसाइटी पार्क पर मिलना, बातें करना, साथ वक़्त गुज़ारना अर्चना के बेटे संदीप को नागवार गुज़रने लगा और वही स्थिति विवेक के बेटा-बहू की भी थी. उन्हें भी अर्चना और विवेक की दोस्ती अपनी बदनामी से ज़्यादा कुछ नही लग रही थी.

संदीप ने सांची से क‌ई बार कहा कि वह अर्चना को विवेक गुप्ता से दूर रहने को कहे, लेकिन सांची हर बार संदीप की बातों को अनसुना कर देती, क्योंकि उसे कभी भी नहीं लगा कि अर्चना और विवेक की दोस्ती में कुछ ग़लत है. सोसाइटी में भी अब अर्चना और विवेक को लेकर कानाफूसी और तरह-तरह की बातें होने लगी, जो उड़ती हुई दोनों परिवारों के कानों तक भी पहुंचती, परंतु अर्चना और विवेक इन बातों से बेख़बर अपनी दोस्ती और पुराने दोस्तों के संग रियूनियन पार्टी प्लान करने में लगे हुए थे. एक शाम अचानक इन्हीं सब बातों को लेकर संदीप ग़ुस्से से तमतमाता हुआ घर पहुंचा, तो उसने देखा अर्चना और सांची पैकिंग कर रही हैं. यह देख संदीप ग़ुस्से में सांची से बोला, "यह सब क्या हो रहा है और तुम ये मम्मी का सूटकेस क्यों पैक कर रही हो."

संदीप को इस प्रकार ग़ुस्से में देख, उसे शांत कराती हुई सांची प्यार से समझाते हुए संदीप से बोली, "मम्मीजी सागर जा रही है रियूनियन पार्टी के लिए."

यह सुनते ही संदीप का पारा चढ़ गया और वह ऊंची आवाज़ में बोला, "उस विवेक गुप्ता के साथ… मम्मी आप का दिमाग़ तो ठिकाने पर है. ज़रा सोचिए लोग क्या कहेंगे. आपको कुछ पता भी है सोसाइटी में आपके और उस विवेक गुप्ता के बारे में लोग क्या-क्या बातें बना रहे हैं. अपनी नहीं तो कम-से-कम हमारी इज्ज़त का तो ख़्याल कीजिए."

अभी संदीप अपने मन की भड़ास अर्चना पर निकाल ही रहा था कि विवेक के बेटा-बहू अमित और साक्षी भी अर्चना के घर आ धमके और अर्चना को भला-बुरा कहने लगे.

विवेक का बेटा अमित अर्चना पर आरोप लगाते हुए बोला, "मेरी मम्मी को दिवंगत हुए सालों बीत गए हैं, लेकिन मेरे पापा ने कभी भी किसी औरत की तरफ़ आंख उठाकर नहीं देखा और आज आपसे मिलते ही अपना मान-सम्मान सब भुला कर, हमारी मुंह पर कालिख पोत कर आपके साथ सागर जाने की तैयारी कर रहे हैं."

अर्चना का अपना बेटा संदीप भी दूसरे लोगों की कही बातों में आकर अपनी मां का अपमान कर रहा था, सब मिलकर अर्चना पर लांछन लगाने और उसके चरित्र पर उंगली उठा रहे थे, अर्चना डबडबाई आंखों से ख़ुद को कठघरे में खड़े किसी मुजरिम की तरह चुपचाप सब सुन रही थी. यह देखकर सांची से रहा नहीं गया और वह चीखती हुई बोली, "बस करिए… आप में किसी को भी इस तरह मम्मीजी पर लांछन लगाने का कोई अधिकार नहीं है. मम्मीजी और विवेक अंकल अच्छे दोस्त हैं. जब एक स्त्री मां हो सकती है, बेटी हो सकती, बहन हो सकती है, प्रेमिका और पत्नी हो सकती है, तो दोस्त क्यों नहीं..? और वह क्यों अपने दोस्त के साथ कहीं नहीं जा सकती."


सांची से यह सब सुन विवेक की बहू साक्षी की भी आंखें खुल गई और वह भी जो अब तक अर्चना पर आरोप लगा रही थी अर्चना के संग आ खड़ी हुई और अपने पति अमित से बोली, "सांची बिल्कुल सही कह रही है, आंटीजी क्यों नहीं जा सकती पापाजी के साथ. जब आप अपनी रियूनियन पार्टी में अपनी फ्रैंड शिल्पा के साथ जा सकते हो तो पापाजी और मम्मीजी भी जा सकते हैं."

सांची और साक्षी को अर्चना के पक्ष में देख कर संदीप बौखला गया और गुर्राता हुआ बोला, "बंद करो तुम दोनों अपना ज्ञान का पिटारा. ईश्वर आराधना और हरी भजन करने की उम्र में अपने पुरुष या महिला मित्र के साथ घूमना-फिरना शोभा नहीं देता और ना ही एक मां को पुरुष मित्र बनाने की इजाज़त हमारा समाज देता है."

संदीप की संकीर्ण विचारों को सुन कर अर्चना का हृदय द्रवित हो उठा. उसकी आंखों में अब तक ठहरा पानी बह निकला और वह अपना सूटकेस पैक करती हुई सोचने लगी कि कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में पहुंच गए हैं, लेकिन आज भी स्त्री-पुरुष को लेकर हमारे समाज की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है, लेकिन अब बदलना होगा… यदि हम बदलाव चाहते हैं, तो हमें स्वयं बदलाव की ओर अपना पहला कदम आगे बढ़ाना होगा. इसी सोच के साथ अर्चना हाथों में सूटकेस लेकर घर से निकलती हुई सांची और साक्षी से बोली, "बेटा, मेरी गाड़ी का समय हो गया है मैं निकलती हूं." 

बुधवार, 15 नवंबर 2023

*समय का दान *

    मीना इतवार को तो तेरी छुट्टी होती है फिर कहां से आ रही है। पिछले रविवार भी मैंने देखा था सुबह सुबह भाग रही थी ।"सरोज ने अपनी पड़ोसन मीना से पूछा ।

"बस कुछ खास नहीं । मैं हर इतवार को महिला वृद्धाश्रम जाती हूं ।"मीना ने कहा ।

"क्या  तेरा कोई रिश्तेदार है वहां?" सरोज ने जिज्ञासा से पूछा। 

"भगवान न करें कोई रिश्तेदार वहां जाए।" मीना ने आसमान की तरफ हाथ जोड़ते हुए ठंडी सी आवाज में कहा। 

"फिर रिश्तेदार नहीं तो रोज-रोज क्यों जाती है?" सरोज ने फिर प्रश्न दागा।

" अब तो समझो रिश्तेदार ही है।" "क्या मतलब?" सरोज ने माथे पर बल से डालते हुए पूछा। 

"मेरी मैडम अक्सर महिला वृद्धाश्रम जाती है। उन महिलाओं को कुछ खाने का या पहनने ओढ़ने का सामान देकर आती है। इसी साल जनवरी में हम, मुझे वह हमेशा अपने साथ लेकर जाती है जब वृद्धाश्रम उन महिलाओं को गरम शॉल बांटने गए। तो सभी महिलाओं ने ले ली। परंतु एक संभ्रांत सी वृद्ध महिला ने शाल लेने से इनकार किया और मुदिता मैडम की बाह पकड़ कर कमरे की तरफ ले जाते हुए कहने लगी ।आप प्लीज मेरे साथ आए एक बार , सिर्फ 5 मिनट के लिए। एक अजीब सी कशिश थी उसके कहने और ले जाने में। हम दोनों ही उसके साथ चल दी। कमरे में जाकर उसने अपने बेड के नीचे से एक बड़ा सा ट्रक निकालकर खोला तो हमने देखा उसमें ढेरों गरम बहुत सुंदर नई शॉल रखी थी। उसका नाम गायत्री है। वह कहने लगी, मेरे पास कपड़ों की कोई कमी नहीं । अगर बेटा दे सकती है तो कभी-कभी थोड़ा समय मुझे दे दिया कर। मुदिता मैडम एकदम बोली , "क्या मतलब समय से?   गायत्री ने कहा," मेरे से कभी कभी बात कर लिया कर। आ सको तो, तुम्हारा बहुत एहसान बेटा,  नहीं तो फोन पर ही बात कर लिया कर । मुझे भी लगे मेरा कोई है। मुझसे मिलने आने वाला, बात करने वाला।" वो कहकर चुप हो गई और एक आस के साथ मैडम को देखने लगी। मैं अपने आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक पाई। मैं जो हमेशा यह सोच सोच कर दुखी होती थी कि भगवान ने मेरे को तो इतना पैसा नहीं दिया कि कुछ दान कर सकूं। गायत्री देवी की इस बात ने एक पल में मुझे राहत दे दी।" मीना जो लगातार सरोज को बता रही थी उसे  सरोज ने बीच में ही टोका ," वह कैसे"? अब मैं हर इतवार  सुबह 9:30 से 12:30 बजे तक अपना समय महिला वृद्ध आश्रम में बिताती हूं । उन महिलाओं के साथ , खासकर गायत्री देवी के साथ ।"मीणा की आवाज में एक अजीब सी खुशी और सुकून था।

     डॉ अंजना गर्ग द्वारा लिखी गई

सोमवार, 30 अक्टूबर 2023

*निशब्द*

शर्म नहीं आती आप दोनों को ....कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज रखो .....

ये संभ्रांत लोगों की कालोनी है यहां बच्चे बडे सभी आते है पार्क में वाक करने.... टहलने.....

लेकिन आए दिन आप दोनों यूं साथ बैठे रहते है...  दोनों को देखकर आपको तो  शर्म  आती नहीं ,हमें ही आँखें नीचे करनी पड़ती है....वह वाकिग सूट पहने  मॉर्डन सा दिखने वाला व्यक्ति गुस्से से उन दोनो से बोला...

तभी एक दूसरे दोस्त ने भी इसी का साथ देते हुए कहा....बिल्कुल सही कहा आपने भाईसाहब...... अब ये हरकतें बच्चे करें ,तो समझ आता है ,कह सकते हैं के नासमझ है, मगर ये दोनों तो बूढे है ....मे भी पिछले कुछ दिनों से बराबर देख रहा हूं इन दोनों को

शर्म नही आती आप दोनों यू घुल मिलकर बेंच पर साथ साथ रोजाना घंटे ऐसे गुजारते हैं

पार्क मे इकठ्ठी भीड ने भी दोनो बुजुर्गो को घेर रखा था ,और कुछ ऐसी ही बातें कहते हुए उन दोनों बुजुर्गों पर सभी गुस्सा हो रहे थे

तभी उन बुजुर्ग ने चुप्पी तोडी हुए कहा... हम कोई छिछोरे  जवान नहीं है ....

ये मजबूरी है हम दोनों की.आप सभी जानते हैं की मे आपकी ही कालोनी का हूं  और मेरी पत्नी गुजर चुकी है, बच्चे विदेश मे अपने सेंटल है, उन्हें अपने बाप की कोई चिंता नही है अकेला बीमारी मे मैं  रहता हूं....मेरे बनाए उस घर मे जिसे मे मंदिर कहता हूं,पर  मुझे लगता था वो मेरे बच्चे मेरे बुढापे का सहारा बनेंगे मगर, ...वो भी सब छोड गए,

और ये है गीता जी,  इनकी भी कहानी ऐसी ही है, बच्चों ने इनकी संपत्ति ,पिता की मृत्यु के बाद हड़प ली और इन्हें वृद्ध आश्रम मे छोड कर सब चल दिये .....

ये अपना मन बहलाने यहां पार्क में आती है ,यहां हमारी मुलाकात हुई एक,दूसरे का गम बांटते बांटते जान पहचान हुई है..

बेटा इन्हें कम सुनाई देता है वही मुझे कम दिखाई देता है हम दोनों सत्तर पार है आज हम दोनों एक दूसरे का सहारा है कुछ गम बांट लेते है पास बैठकर .... सकून महसूस करते हैं..

इस उम्र मे  हम दोनों को शारारिक जरुरतें नही, बल्कि एक दूसरे से बातचीत कर,, कहने सुनने वाला साथी बने हुए हैं

और अब हम दोनों ने शादी करने का फैसला भी किया है ,जल्द ही आश्रम मे हमारी शादी होने वाली है आप भी आना अपने बुजुर्गों को शुभकामनाएं देना.....कहकर वह दोनों बुजुर्ग एक दूसरे का हाथ थामे चलने लगे ....

वहीं इकट्ठा हुई भीड शर्मिंदगी से छंटने लगी थी निशब्द सी होते हुए.....



 

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

*घर बनाना*

 स्त्री के कामों की कभी लिस्ट बनाई क्या?..

वो कहते है ना स्त्री को घर बनाने में,उनका कितना समय  लगता है... 

और उसके  कहना आसान होता है... 

पर वो स्त्री ही है जो घर के सारे काम के साथ बड़े  जतन से खाना बनाती है...

सुबह से तैयारी करके... 

कभी कुछ धुप में सुखा के...

तो कभी कुछ पानी में भिगो के... 

कभी मसालेदार..

तो कभी गुड़ सी मीठी... 

सारे स्वाद समेट लेती हैं ...तरह तरह के परोसे बनाने में,

आलू के पराठों में, या गाजर के हलवे में, ऊपर बारीक कटे धनिये के पत्तो में, या पीस कर डाले गए इलाइची के दानों में...

सारे स्वाद समेट देती हैं एक छोटी सी थाली को सजाने  में...और सबको खुश रखने में...

न जाने कहाँ  से हुनर लाती है...

 ना जाने कितना कुछ तो होता है . इन स्त्री के पास..

तुम बना पाओगे क्या ?...एक बार सोचें,

हम सबको बस खाना ही दिखता है...

पर नही दिखती... 

किचन की गर्मी, 

उस स्त्री का पसीना, 

हाथ में गरम तेल के छींटे, 

कटने के निशान,

कमर का दर्द,

पैरो में सूजन, 

सफ़ेद होते बाल..

कभी नहीं दिखते...,,


कभी ध्यान से देखा क्या ?,,उस की रसोई  रूपी कमरे में.. झांककर. क्या दिखेगा जाकर ,,

स्त्री का रूप

जो बदल गया है इतने सालो में... दांत हिले होंगे कुछ.... 

बाल झड़ गए होंगे कुछ...

झुर्रियां आयी होंगी कुछ,

  मकान को घर बनाने में,,,,,घर के लोगों का खाना बनाने में

चश्मा लगाए, हाथ में अपनी करछी, बेलन लिए जुटी होगी...

आज भी वही कर रही है.. जो कर रही है वो  पिछले पच्चीस तीस सालों से, और भी शायद ज्यादा समय हुआ होगा ,फिर भी तुम्हे देखते ही पूछेगी 

"क्या चाहिए?”... कुछ  और बना दूं?


कभी देखना उसके मन के कुछ अनकहे ज़ज़्बात, दबी हुई इच्छाएं,,

जो दिखती नही..


क्योंकि जो दिखती नही, उन्हें देखना और भी ज़्यादा ज़रूरी होता है... 


उसकी  गैर मौजूदगी में... कभी

जब रसोई से दो बिस्किट और  चाय हाथ में लेकर निकलो ,,  सच मानो

तब उसकी बात सोचने पे मज़बूर हो जाओगे.. क्योंकि उसने सिर्फ खाना ही नहीं बनाया है इतने सालो में... 

इस घर को भी बनाया है...

खुद को मिटा के...

और याद है न...

बनाने में घण्टों लगते है,

दिन रात मेहनत करके...

लिस्ट तक  नहीं पाएगी उसके कामों की, कोशिश  करके देखना.. 

कभी बन नहीं पाएगी



रविवार, 22 अक्टूबर 2023

*कड़वी सच्चाई*

 जिन घरों में ,वो रोजाना ,अखबार, डालता है, उनमें से एक का लेटर बॉक्स उस दिन पूरी तरह से भरा हुआ था, जगह नही थी के वो उसमे और अखबार डाले,इसलिए उसने घर का दरवाजा खटखटाया।और जानना चाहा के क्या बात है।

उस घर की , बहुत बुजुर्ग सी दिखने वाली मालकिन मधु पांडे ने,थोड़ी देर के बाद, धीरे से, दरवाजा  खोला।

सामने अखबार वाला खड़ा था, बोला, मैडम, आपका लेटर बॉक्स इस तरह से भरा हुआ क्यों है?"क्या अखबार निकले नही आपकने पढ़े नही?

तब उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा मैंने जानबूझकर किया है।" फिर वो मुस्कुराई और अपनी बात जारी रखते हुए  कहा "मैं चाहती हूं कि आप हर दिन मुझे अखबार दें। अब आगे से रोज दरवाजा खटखटाएं या घंटी बजाएं और अखबार मुझे व्यक्तिगत रूप से हाथ में सौंपें ।"

हैरानी से उसने पूछा, "हां ,आप कहती हैं तो मैं आपका दरवाजा ज़रूर खटखटाऊंगा, लेकिन यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं होगी क्या ?"मुझे आगे बहुत जगह अखबार  बाटने होते हैं और आपको भी इतनी सुबह सुबह यूं उठाना,कुछ ठीक नहीं लग रहा मुझे,

तब वो बोलीं, "आपकी बात सही है... फिर भी मैं यही चाहती हूं कि आप ऐसा करें ,मैं आपको दरवाजा खटखटाने के शुल्क के रूप में हर महीने 500/- रुपये अतिरिक्त दूंगी।"

विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ, उन्होंने अपनी बात जारी रखी बोली,"अगर कभी ऐसा दिन आए, जब आप दरवाजा खटखटाएं ,और मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिले, तो कृपया पुलिस को फोन करें!"

उनकी बात सुनकर एक बार अजीब सा लगा  और तुरंत वो पूछने लगा, "क्यों मैडम ऐसा क्यो कह रही हैं आप?"

तब वो बोलीं, "मेरे पतिदेव  का निधन हो गया है, मेरा बेटा और बेटी दोनों उनके परिवार के साथ विदेश में रहते है, और मैं यहाँ अकेली रहती हूँ । कौन जाने, मेरा बुलावा कब आ जाए ?"इसलिए ऐसा करना  चाहती हूं क्या आप मदद करेंगे?

उस पल,कहते हुए   उस बुज़ुर्ग औरत की आंखों में छलक आए आंसुओं को देख अखबार वाले के मन में  एक हलचल  सी महसूस हुई

वो मैडम आगे कहती जा रही थी, "मैं अखबार नहीं पढ़ती,मैं दरवाजा खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए अखबार लेती हूं। किसी परिचित से ,चेहरे को, देखने और बस कुछ बातें ऐसे ही आदान-प्रदान करने के इरादे से में ऐसा करने का बोल रही हूं!"

 बाद में हाथ जोड़कर कहने लगीं, "कृपया मुझ पर एक एहसान करो! यह मेरे बेटे और बेटी का विदेशी फोन नंबर है। अगर किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूं, तो कृपया मेरे बेटे या बेटी को फोन करके इस बारे में सूचित कर देना।"और ये कहते हुए उन्होंने उनके नंबर भी दिए,

निरूतर सा अखबार वाला उनको देखता रहा,और एक कड़वी सच्चाई कों ,सुनते हुए उनको ये काम करने से  मना नहीं कर सका !



 

शनिवार, 21 अक्टूबर 2023

* बुढ़ापा और वरिष्ठता*

 वरिष्ठता और बुढ़ापा में क्या कोई अंतर है ?

आइए इसको ऐसे समझते है.................

इंसान को उम्र बढ़ने पर ‘वरिष्ठ’ बनना चहिए , ‘बूढ़ा’ नहीं|

बुढ़ापा अन्य लोगों का आधार ढूंढता  है और वरिष्ठता, वरिष्ठता तो लोगों को आधार देती है ।

बुढ़ापा छुपाने का सबका मन करता है, 

और वरिष्ठता को उजागर करने का मन करता है ।

बुढ़ापा अहंकारी होता है,

वरिष्ठता अनुभव संपन्न, विनम्र और संयम शील होती है ।

बुढ़ापा नई पीढ़ी के विचारों से छेड़छाड़ करता है,

और वरिष्ठता युवा पीढ़ी को, बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है ।

बुढ़ापा "हमारे ज़माने में ऐसा था" की रट लगाता रहता है,

और वरिष्ठता बदलते समय से अपना नाता जोड़ लेती है, उसे अपना ने की कोशिश करती है। 

बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय लादता है, थोपता है,

और वरिष्ठता तरुण पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है।

बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है मगर वरिष्ठता,

वह तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है, युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है ।

संक्षेप में ...

वरिष्ठता और बुढ़ापे के बीच के अंतर को समझकर, जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनना चाहिए ।



बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

*प्रतिष्ठा *

 मम्मी , आप भी ना ....ये  पराठे और आलू की सब्जी मुझे साथ मे रखना बंद कीजिए ..पता ही है ना आपको,मुझे अपनी यात्रा फ्लाइट में करनी है और बैग में ये सब लेकर चलना .नही ले जाऊंगी,मेरा.मतलब तेल वेगेरा निकल जाता है ,और आजकल ऑनलाइन हर जगह तुरंत खाना मिल जाएगा। झल्लाहट के साथ ज्योति ने मम्मी से कहा।

   किशोर लड़की  की बातें मां को अच्छी नहीं लगी... वो कहने लगी , क्या फ्लाइट में पिज़्ज़ा बर्गर , रोल जैसे  फास्ट फूड  , दुगने तिगने दामों में खरीद कर खाना ही प्रतिष्ठा के प्रतीक हैं ?? वो नही मानी,

मां के खूब कहने पर ज्योति ने हारकर उनका ये खाने का पैकेट अपने हैंड बैग में रख लिया,सोच रही थी ये ऐसे नही मानेगी ,बाहर जा कर डस्ट बीन में फेक दूंगी,मम्मी के भाषण जेसी बातें सुनती रही,वो कहे जा रही थीं के .. ऐसे सब्जी पराठा हमें बैलगाड़ी , घोड़ा गाड़ी या रिक्शा बस या ट्रेन में ही खाना चाहिए  ।  मुंह हमारा , स्वाद हमारा , पेट हमारा , फायदा - नुकसान हमारा फिर हम सिर्फ केवल आधुनिकता और प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए घर के खाने को दरकिनार कर उसकी उपेक्षा कैसे कर सकती हो?

    खैर  !  एयरपोर्ट को निकली ही थी के , रास्ते में उसके फोन पर मैसेज आया के उसकी  फ्लाइट अभी चार घंटा लेट जायेगी, रास्ते  में  थी ज्योती, जल्दी के चक्कर में उसने नाश्ता भी ठीक से नही किया था,अब वह वोही सब्जी पराठा निकलकर खाने लगी ,और अपने द्वारा किए बर्ताव के कारण उसे पछतावा भी हो रहा था अपने द्वारा किए व्यवहार के लिए पश्चाताप साफ दिखाई दे रहा था ,उसने तुरंत अपनी मम्मी को फोन लगाया तब जाकर उसे सकून मिला !

   "  आधुनिकता और पारंपरिकता का सही तरीके से तालमेल ही श्रेष्ठता की ओर ले जाते हैं "

 


शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

*एक अटूट रिश्ता*

 * मम्मी पापा बूढ़े हुए हैं पर पति-पत्नी तो हैं*

" बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम" 

शायद यही कहा बड़ी बहू ने। सुनते ही सासू मां ठिठक गई। और पलट कर बोली

" कुछ कहा तुमने बड़ी बहू"

" नहीं नहीं, मैंने तो कुछ भी नहीं कहा मम्मी जी"

" हां हां सच में" छोटी बहू ने झिझकते हुए कहा।

" अच्छा है कि तुमने कुछ नहीं कहा। अगर कहा होता तो शायद जवाब भी मिल जाता"

बड़ी बहू नज़रें नीची कर खड़ी हो गई और सासू मां उसे घूरती हुई वहां से निकल गई। सासू मां के जाते ही बड़ी बहू ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया,

" क्या गलत कहती हूं मैं? मुझे तो रोक लेंगी, पर बाहर और भी तो लोग हैं, जो बातें करते हैं। उनका क्या? उनकी जबान पकड़ो तो माने "

" सही कहा भाभी, क्या जरूरत है मम्मी जी को पार्लर जाने की? इस उम्र में यह सब शोभा देता है क्या?"

" अरे बुढ़ापे में सठिया गई है। कौन समझाएं इन्हें? जब कोई बाहर वाला मजाक उड़ाएगा, तब समझ में आएगा। फिर रोती हुई आएगी घर पर"


" हां हमें क्या? इन्हें खुद का मजाक उड़ाने की लगी है तो शौक से उड़ाए। हम तो खुश है अपनी जिंदगी में"

" वैसे भी किसे फर्क पड़ता है? पापा जी तो कुछ कहते नहीं। और इस उमर में कौन सा पापा जी निहार रहे हैं उन्हें, जो इतना सज धज कर तैयार हो रही है"

" यह तो है भाभी। दीया बुझने से पहले फड़फड़ाता है ना, वही हालत इंसान की बुढ़ापे में हो जाती है"

छोटी बहू ने भी बड़ी बहू की हां में हां मिलाई। और दोनों जोर जोर से हंसने लगी।


दरअसल बात यह थी कि मधु जी के पति सोमेश जी का आज सत्तरवाँ जन्मदिन था, जिसे वे धूमधाम से ना मनाकर सिर्फ अपनी पत्नी के साथ मनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक रेस्टोरेंट में टेबल भी बुक कर ली थी। उसके बाद मूवी देखने का प्रोग्राम था।


मतलब यह कह सकते हैं कि आज का पूरा दिन मधु जी और सोमेश जी साथ बिताना चाहते थे। और मधु जी इस दिन को यादगार बनाना चाहती थी इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना पार्लर जाकर थोड़ा लाइट मेकअप ही करवा लूँ। सोमेश जी को अच्छा लगेगा।

बस यही सोचकर वे पार्लर निकल गई और यही बात दोनों बहुओं को खटक रही थी कि देखो तो मम्मी जी और पापा जी बुढ़ापे में कैसे-कैसे गुल खिला रहे हैं।


खैर दोपहर के 1:00 बज रहे थे। सोमेश जी अपने कमरे से तैयार होकर बाहर निकले तो एक पल के लिए बेटे बहू पोते पोती उन्हें देखते ही रह गए। हमेशा कुर्ता पजामा पहने रहने वाले पापा जी आज सूट टाई में तैयार होकर जँच रहे थे। पापा जी बार-बार घड़ी की तरफ देख रहे थे फिर उन्होंने अपने बड़े बेटे से पूछा,


"अरे बेटा तुम्हारी मम्मी आ गई क्या?"

" नहीं पापा बस आने में ही होगी "

थोड़ी देर बाद डोर बेल बजी। बड़ी बहू ने जाकर दरवाजा खोला तो मम्मी जी को देखकर एकटक निहारती ही रह गई। हरी बंधेज की साड़ी, उस पर मैचिंग ब्लाउज, साथ ही बालों का सुंदर सा जुड़ा बना रखा था और हल्का सा मेकअप। आज वाकई मम्मी जी कहर ढा रही थी।

सोमेश जी तो मधु जी को निहारते ही रह गए। इतने में दोनों बेटे एक साथ ही बोल पड़े,

" वाह! क्या बात है मम्मी, आज तो बहुत सुंदर लग रही हो"

दोनों बेटों की बात सुनकर मधु जी मुस्कुरा दी। इतने में सोमेश जी बोले,

" तो मधु जी, तैयार है आप साथ चलने के लिए"

" जी जरूर"

कहकर दोनों पति पत्नी वहां से निकल गए। उनके जाते ही दोनों बहुओं ने फिर से बड़बड़ाना शुरू कर दिया,


" यह क्या शोभा देता है मम्मी जी और पापा जी को? इस उमर में एक दूसरे का हाथ पकड़े घूमने जा रहे हैं। और तुम दोनों भाई कुछ कहते भी नहीं"

"और देखा नहीं, कैसे तैयार होकर जा रहे हैं। इनके पोते पोतियो की शादी की उम्र होने को आई और इन्हें देखो, कल को यह सब सिखाएंगे अपनी पोता बहुओं को। कम से कम पूछ तो लेना चाहिए था हमसे"

" क्यों इसमें गलत क्या है? मम्मी और पापा दोनों पति-पत्नी है। एक दूसरे के साथ समय बिताना उनका हक है। इसके लिए भला किसी की इजाजत की क्या जरूरत है"

" और रही बात उम्र की, तो उम्र का क्या है? वह तो सिर्फ एक अंक है। उम्र के साथ क्या भावनाएं बदल जाती है। तुम लोगों के हिसाब से तो कल को हम लोग पति पत्नी ही नहीं रहेंगे। और हमारे बेटे बहू डिसाइड करेंगे कि हमें क्या करना है और क्या नहीं"

दोनों भाईयों ने एक साथ सुर मिलाकर कहा। जब बात खुद पर आई तो दोनों बहूए एक बार सोचने को मजबूर हो गई कि गलत तो कुछ भी नहीं है। आखिर पति पत्नी का रिश्ता तो उम्र के साथ प्रगाढ़ होता है, तो उसे उम्र के बंधन में बांधने की क्या जरूरत है।

मौलिक व स्वरचित

✍️लक्ष्मी कुमावत द्वारा लिखी गई



रविवार, 1 अक्टूबर 2023

*खुद को खोजना *

  इस घर की चार दिवारी में, मै सब कुछ ढूंढ लेती हूं,सभी के 

रुमाल, घड़ी,मोज़े, किताबें,

पिन, सुई..खोई हुई बालियां….

इधर उधर रखी गई चाबियां..

सब कुछ ...जैसे मुझे ही  सब कुछ पता होती है,

हर एक चीज़ जो घर में, किसी को भी, टाइम पर ,नहीं मिलती है

मैं सब को खोज के उन्हें देती हूं।

पर मैं ढूंढ ही नहीं पा रहीं हूं  ख़ुद को ...

 क्यों न अचानक ,

ऐसा कभी हो जाए कि ,मैं मिल जाऊं किसी रोज़,

अपने आप को,भी, घर के किसी कोने में,

और कहूं ,अपने आप से ,

देखो ,अब में खुद को मिल गई हूं, खुद को में खुद से

अब खोना नहीं चाहती हूं  ।।

सच बात ये हुई के

दूसरों के कामों में अपने आपको इतना उलझा लिया,कि,खुद को,अपने लिए, खोजने का वक्त ही नहीं मिला,

अब आज जब अपने लिए वक्त ही वक्त है,तो सब को, हमारा,ये, अमूल्य वक्त ,फिजूल सा लगता है,

हमे ,अब,अपने, तरीके से ,जीने में भी , सोचना पड़ता है

 न  जाने ऐसा   क्यों होता है ?

कभी कभी ,ऐसा मन पसंद काम को करने में भी   एक, डर  सा विचार ,दिल के कोने से आता है,क्या ये काम मेरे लिए किसी को फिजूल तो नही लगेगा,

जीवन के आखरी पड़ाव में भी क्या जीवन जीने की कला सीखनी पढ़ेगी? बस मन ही है ना,तो

ऐसा विचार भी आता है ,ऐसा क्यों होता है?प्रश्न सा मन में आता है 




सोमवार, 25 सितंबर 2023

*मैं स्त्री हूँ...*

मैं स्त्री हूँ...सहती हूँ...

तभी तो आप कर पाते हो गर्व,अपने पुरुष होने पर।।

मैं झुकती हूँ......

तभी तो ऊँचा उठ पाता है आपके अहंकार का आकाश।।

मैं सिसकती हूँ......

तभी तो आप मुझ पर कर पाते हो खुल कर अट्टहास।।

व्यवस्थित हूँ मैं......

इसलिए तो आप रहते हो मस्त।।।।।

मैं मर्यादित हूँ.........

इसलिए आप लाँघ जाते हो सारी सीमाएं!!

स्त्री हूँ मैं...

हो सकती हूँ पुरुष भी...पर नहीं होती।

रहती हूँ स्त्री इसलिए...ताकि जीवित रहे आपका पुरुष।।।।।

मेरे ही त्याग से पलता आपका पौरुष।।

मैं समर्पित हूँ....

इसलिए हूँ...अपेक्षित,तिरस्कृत!!!

त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान,ताकि आहत न हो आपका अभिमान।

सुनो मैं नहीं व्यर्थ...

मेरे बिना भी आपका नहीं कोई अर्थ!



रविवार, 13 अगस्त 2023

**वो समझदार बहु **

शाम को गरमी थोड़ी थमी तो मैं पड़ोस में जाकर निशा के पास बैठ गई। 

आखिर ,उसकी सासू माँ भी तो कई दिनों से बीमार है..... सोचा ख़बर भी ले आऊँ और निशा के पास बैठ भी आऊँ। मेरे बैठे-बैठे पड़ोस में रहने वाली उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गईं। निशा से पूछा ‘‘अम्मा जी, कैसी हैं?’’ 

और पूछ कर इतमीनान से चाय-पानी पीने लगी।.......फिर एक-एक करके अम्माजी की बातें होने लगी। सिर्फ़ शिकायतें.......... ‘‘जब मैं आई तो अम्माजी ने ऐसा कहा, वैसा कहा, ये किया, वो किया।’’

आधे घंटे तक शिकायते करने के बाद सब ये कहकर चली गईं....... कि उनको शाम का खाना बनाना है....बच्चे इन्तज़ार कर रहे हैं। 

उनके जाने के बाद मैं निशा से पूछ बैठी,

निशा अम्माजी, आज एक साल से बीमार हैं और तेरे ही पास हैं। तेरे मन में नहीं आता कि कोई और भी रखे या इनका काम करे, माँ तो सबकी है।’’

उसका उत्तर सुनकर मैं तो जड़-सी हो गई। 

वह बोली, ‘‘बहनजी, मेरी सास सात बच्चों की माँ है। अपने बच्चो को पालने में उनको अच्छी जिंदगी देने में कभी भी अपने सुख की परवाह नही की.... सबकी अच्छी तरह से परवरिश की ......ये जो आप देख रही हैं न मेरा घर, पति, बेटा....बेटी , शानो-शौकत सब मेरी सासुजी की ही देन है।......

अपनी-अपनी समझ है बहनजी । मैं तो सोचती हूँ इन्हें क्या-क्या खिला-पिला दूँ, कितना सुख दूँ, मेरे दोनों बेटे बेटी अपनी दादी मां के पास सुबह-शाम बैठते हैं..... उन्हे देखकर वो मुस्कराती हैं, अपने कमजोर हाथो से वो उन दोनों का माथा चेहरा ओर शरीर सहलाकर उन्हे जी भरकर दुआएँ देती हैँ।

जब मैं सासु माँ को नहलाती, खिलाती-पिलाती हूँ, ओर इनकी सेवा करती हूँ तो जो संतुष्टि के भाव मेरे पति के चेहरे पर आते है उसे देखकर मैं धन्य हो जाती हूँ၊ मन में ऐसा अहसास होता है जैसे दुनिया का सबसे बड़ा सुख मिल गया हो.......

मेरी सासु माँ तो मेरा तीसरा बच्चा बन चुकी हैं.........

और ये कहकर वो सुबकसुबक कर रो पड़ी।

मैं इस ज़माने में उसकी यह समझदारी देखकर हैरान थी, मैने उसे अपनी छाती से लगाया और मन ही मन उसे नमन किया और उसकी सराहना की .......

कि कैसे कुछ निहित स्वार्थी ओर अपने ही लोग तरह-तरह के बहाने बना लेते है तथा अपनी आज़ादी और ऐशो अय्याशी के लिए,अपनी प्यार एवं ममता की मूरत को ठुकरा देते हैं








बुधवार, 2 अगस्त 2023

*मेरे जाने के बाद*


जिस रात मूँद लूँ आँख अपनी

और न फिर मेरी सुबह हो

होंगीं ज़रूर आँखें नम तुम्हारी 

पर बहुत न तुम दुखी हो



मेरी हँसती तस्वीर टाँग देना 

तुम हर कमरे मे

साथ दिखूँगी तुम्हें मैं 

घर के हर कोने में 



सुबह जाओगे जब बाहर 

हँस के विदा करूँगी तुम्हें 

शाम लौटोगे जब थक कर

इंतजार करती मिलूँगी मैं



मेरी तस्वीर पर न तुम

फूल माला चढ़ाना 

नहीं हूँ मैं साथ तुम्हारे 

खुद को याद न दिलाना



जब मिलकर बैठोगे साथ

इक कुर्सी ख़ाली रख लेना 

मैं भी शामिल हूँ गपशप में

मन में यह यकीन कर लेना



सुनाना चुटकुले मुझे 

बेआवाज साथ हसूँगी मैं भी

पहले सुना है मैंने

यह भी नहीं कहूँगी मैं



जैसे बात करते हो मुझसे आज

कल भी वैसे ही करना

मैं हूँ तुम्हारे आस पास

इस बात का यकीन रखना



मुझसे करते हो गर प्यार 

इक दूजे का रखना खयाल 

अगर दुखा दिल किसी का भी

दुखी होंगीं तुम्हारे साथ मैं भी



मेरी याद को बोझिल न बना लेना

मेरा नाम लेकर ज़रा मुस्करा देना

न दिखूँ तुम्हें तो मूँद लेना आँखें 

अपने भीतर मुझे साथ पा लेना



तुम्हारी हँसी में खिलखिलाऊँगी मैं भी

तुम्हारी खुशी में ख़ुश हो जाऊँगी मैं भी

तुम्हारे साथ साथ के गानों को

गुनगुनाऊंगी में,

गा के मुझे यूं ही सुनाना

में आसपास ही बैठी रहूंगी तुम्हारे

बस महसूस यही करना होगा

जीना जिंदगी को हर घड़ी भरपूर तुम

तुम्हारे साथ जीती जाऊँगी मैं भी


अनिता सुखवाल




शनिवार, 22 जुलाई 2023

*मां की याद*

 आज यूही बैठे बैठे आंखे भर आई हैं,

कहीं से मां की याद दिल को छूने चली आई है,

वो अपने आंचल से उसका ही मुंह पोछना और भाग कर गोदी मे, मुझे गिरते ही उठा लेना,

रसोई से आती वोही पुरानी भीनी भीनी सी खुशबु ,

आज फिर मुंह में पानी ले आई है,

कौन मुझे ऐसे अब प्यार दुलार से खाना परोसेगा, 

सोचती हूं, है वो मुझसे मां मीलों दूर हैं,इधर मेने भी तो 

 वैसे ,बसा लिया है अपना एक नया घर संसार,और अपना एक परिवार,

बन गई हूं  जैसे मैं ,खुद ही उसी, मां का एक  अवतार,

फिर भी न जाने क्यों आज मन यूं ऐसा क्यो चाह रहा है

बन जाऊं मै फिर से वो नादान् बच्ची सी,,

कभी स्वेटर बुनती, तो कभी कुर्ती पर कढाई  करती ,,कभी वो अपने कमरे मे,नाक से फिसलती ऍनक की परवाह किये बिना,

पर जब सुनेगी कि रो रही है उसकी बेटी

फट से कहेगी उठकर,"बस कर रोना अब तो हो गई है तू बडी"

फिर प्यार से ले लेगी अपनी बाहों मे मुझको

एक एह्सास दिला देगी मुझे ,खुदाई का, 

जाडे की नर्म धूप की तरह ,आगोश मे ले लिया करती थी मुझे वो,

इस ख्याल से ही रुक गये,मेरे आंसू

और खिल उठी मुस्कान मेरे होठों पर...उसका ये अहसास मुझे उसकी मौजूदगी दे गया,में वापस सुखद ताजगी सी महसूस करने लगी,मजबूर थी मैं,

कहीं से मां की याद आज फिर यूं दिल को छूने चली आई है













गुरुवार, 15 जून 2023

*मुस्कुराहट का महत्व*

 

👍अगर आप एक अध्यापक हैं और जब आप मुस्कुराते हुए कक्षा में प्रवेश करेंगे तो देखिये सारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा जाएगी।

👍अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वास दोगुना हो जायेगा।

👍अगर आप एक ग्रहणी हैं तो मुस्कुराते हुए घर का हर काम कीजिये फिर देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

👍अगर आप घर के मुखिया है तो मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

👍अगर आप एक बिजनेसमैन हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा।

👍अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।

👍कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।

मुस्कुराइए

😊क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो खुशी और संपन्नता की पहचान है।

मुस्कुराइए

😊क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।

मुस्कुराइए

😊क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।

मुस्कुराइए

😊क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

मुस्कुराइए

😊क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।

मुस्कुराइए

😊क्योंकि आपकी हँसी किसी की खुशी का कारण बन सकती है।

मुस्कुराइए

😊 क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है

                    और सबसे बड़ी बात

मुस्कुराइए

😊 क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता।

इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और औराें के चहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं

यही जीवन है आनंद ही जीवन है।🌷🙏🌷🙏

"खुशियां बांटे*

  

एक औरत बहुत महँगे कपड़े में अपने मनोचिकित्सक के पास गई और बोली"डॉ साहब ! मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन बेकार है उसका कोई अर्थ नहीं है क्या आप मेरी खुशियाँ ढूँढने में मदद करेंगें? मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला - मैं इस बूढी औरत से तुम्हें यह बताने के लिए कहूँगा कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी मैं चाहता हूँ कि आप उसे ध्यान से सुनें,तब उस बूढ़ी औरत ने अपना झाड़ू नीचे रखा कुर्सी पर बैठ गई और बताने लगी - मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके 3 महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई मेरे पास कोई नहीं था मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था मैं सो नहीं पाती थी खा नहीं पाती थी मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था।मैं स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीबें सोचने लगी थी तब एक दिन एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया जब मैं काम से घर आ रही थी।बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे ख़ुशी मिल सकती है तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी खुशी मिले।इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी जो कि बीमार था के लिए कुछ बिस्किट्स बना कर ले गई।हर दिन मैं कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिससे दूसरों को खुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे खुशी मिलती थी।आज मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं दूसरों को ख़ुशी देकर।यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी।लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।तो आईये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें

शनिवार, 3 जून 2023

औरत तेरी यही कहानी

 सच में,मेनटेन नहीं रह पाती हैं  ,ओरतें

पूरा घर समेटते समेटते ,

खुद बिखर सी जाती हैं

हां ,अब वो औरतें खुद  मेन्टेन नहीं रह पाती हैं,

आधी रात में भी ,

दूध की बोतलों से बतियाती हैं,

एक आवाज पर,

गहरी नींद छोड़ आती हैं,

 टिफिन के पराठों संग, 

स्कूल पहुँच जाती हैं,

हां ,अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं।

कमर दर्द, पीठ दर्द, 

हंस  के टाल जाती हैं,

जूड़े में उलझी हुई,

लटों को छुपाती हैं

हल्दी लगे हाथों को,

साड़ी में छुपाती हैं

हां, अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं

सुबह शाम रोटियों में

प्यार  से बेलते  उसमें ही, खो सी जाती हैं,

बारिश में  खुद भीग कर ,

सूखे कपड़ो को बचाती हैं

अपनी फटी एड़ियों पे,

 साड़ी लटकाती हैं,

हां, ,अब वो औरतें, मेंटेन नहीं रह पाती हैं।

अपनी ख्वाइशों से, 

ख्वाब में ही मिल आती हैं

हर किरदार,में वो,

 फिट बैठ जाती हैं

कभी प्रिंसिपल,  कभी बहन

कभी बहु तो कभी सास बन जाती हैं 

  हां,अब वो औरतें मेंटेन नहीं रह पाती हैं।



शनिवार, 27 मई 2023

*खुशनुमा लम्हें*

 अब लोग बुढ़ापा एंजॉय करने लगे,

खुलकर जीने और हंसने लगे,

खुद को पोते पोतियों में नहीं उलझाते,

अपने जैसे दोस्तों संग ये वक्त बिताते।

कोई लाचारी बेबसी अब नहीं दिखती,

इनकी जिंदगी इनकी शर्तों पर गुज़रती,

कभी ये गाने गाते, कभी ठुमके लगाते,

अपनी कहानी सुनाते, खुलकर मुस्कुराते।

इनकी किट्टीयां होती, जन्मदिन मनाते,

अपनी पेंशन खुद पर ही ये लूटाते,

ना ताना मारते, ना बहुओं की सुनते,

अपने अधूरे सपने इस उम्र में बुनते।

फेस बुक यू ट्यूब और स्टार मेकर्स स्मुल के ये दीवाने होते,

इनके भी किस्से फंसाने होते,

इनको भी दोस्तों का इंतजार होता,

पार्क में रोज़ जमघट यार होता।

अब के बुजुर्ग समझने लगे,

जिंदगी के बचे लम्हें जीने लगे,

समझ गए साथ कुछ नहीं जाने वाला,

तो खुशनुमा लम्हें ये सहेजने लगे।


रविवार, 14 मई 2023

*मातृ दिवस*

 *माँ चली गई...* 

*कहीं बादलों के पार...* 

*उसका  श्रीनगर का कमरा खाली हो गया* 

*और घर का मंदिर सूना  हो गया. .*

*माँ के लिए मंदिर में दिया ज़रूर जलाती हूँ,*

*जो जो माँ करती थी* 

*सबकुछ वेसे ही दुहराती हूं . .*

*लेकिन ईश्वर से कभी*

*कुछ मांग नहीं पाती  हूँ,*

*क्या मांगूं और कैसे मांगती ,* 

*किसी को भी कैसे समझाती* 

*कि मेरी आवाज को आसमान तक* 

*जाने की आदत ही नहीं पड़ी,* 

*जब तक माँ थी,* 

*अपने लिए मांगने की* 

*जरुरत ही नहीं पड़ी. .*

*अब मैं जानती   हूं*

*मेरी आवाज उस लोक में*

*ईश्वर तक नहीं पहुंचेगी*

*लेकिन फिक्र क्या,* *मुझे विश्वास है*

*मेरी माँ है वहाँ,* 

*इसीलिए बेफिक्र हूं,वो सब देख लेगी..*












 

रविवार, 30 अप्रैल 2023

*कोशिश न कर*

तू 

जिंदगी को जी

उसे समझने की 

कोशिश न कर


सुन्दर सपनो के 

ताने बाने बुन

उसमे उलझने की 

कोशिश न कर


चलते वक़्त के साथ 

तू भी चल

उसमे सिमटने की 

कोशिश न कर


अपने हाथो को फैला, 

खुल कर साँस ले

अंदर ही अंदर घुटने की 

कोशिश न कर


मन में चल रहे 

युद्ध को विराम दे

खामख्वाह खुद से 

लड़ने की कोशिश न कर


कुछ बाते 

भगवान् पर छोड़ दे

सब कुछ खुद सुलझाने की 

कोशिश न कर


जो मिल गया 

उसी में खुश रह

जो सकून छीन ले 

वो पाने की कोशिश न कर


रास्ते की सुंदरता का 

लुत्फ़ उठा

मंजिल पर जल्दी 

पहुचने की कोशिश न कर....

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

*बेवक़ूफ़ गृहणी*

 वह एक गृहणी थी,वो रोज़ाना की तरह आज फिर इश्वर का नाम लेकर उठी थी । 

किचन में आई और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया। 

फिर बच्चों को नींद से जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें ।

कुछ ही पलों मे वो अपने सास ससुर को चाय देकर आयी फिर बच्चों का नाश्ता तैयार किया और इस बीच उसने बच्चों को ड्रेस भी पहनाई। 

फिर बच्चों को नाश्ता कराया। 

पति के लिए दोपहर का टिफीन बनाना भी जरूरी था।     

इस बीच स्कूल का रिक्शा आ गया और वो बच्चों को रिक्शा तक छोड़ने चली गई ।

वापस आकर पति का टिफीन बनाया और फिर मेज़ से जूठे बर्तन इकठ्ठा किये ।

इस बीच पतिदेव की आवाज़ आई की मेरे कपङे निकाल दो ।  

उनको ऑफिस जाने लिए कपङे निकाल कर दिए।

अभी पति के लिए उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था की छोटी ननद आई और ये कहकर ये कहकर गई की भाभी आज मुझे भी कॉलेज जल्दी जाना, मेरा भी नाश्ता लगा देना। 

तभी देवर की भी आवाज़ आई की भाभी नाश्ता तैयार हो गया क्या?

अभी लीजिये नाश्ता तैयार है।

पति और देवर ने नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने अपने ऑफिस के लिए निकल चले ।

उसने मेज़ से खाली बर्तन समेटे और सास ससुर के लिए उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी ।

दोनों को नाश्ता कराने के बाद फिर बर्तन इकट्ठे किये और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी ।

इस बीच सफाई वाली भी आ गयी । 

उसने बर्तन का काम सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगेरा इकट्ठा करने पहुँच गयी और फिर सफाई वाली के साथ मिलकर सफाई में जुट गयी ।

अब तक 11 बज चुके थे, अभी वो पूरी तरह काम समेट भी ना पायी थी की काल बेल बजी । 

दरवाज़ा खोला तो सामने बड़ी ननद और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे । 

उसने ख़ुशी ख़ुशी सभी को आदर के साथ घर में बुलाया और उनसे बाते करते करते उनके आने से हुई ख़ुशी का इज़हार करती रही ।

ननद की फ़रमाईश के मुताबिक़ नाश्ता तैयार करने के बाद अभी वो नन्द के पास बेठी ही थी की सास की आवाज़ आई की बहु खाने का क्या प्रोग्राम हे । 

उसने घडी पर नज़र डाली तो 12 बज रहे थे ।   

उसकी फ़िक्र बढ़ गयी वो जल्दी से फ्रिज की तरफ लपकी और सब्ज़ी निकाली और फिर से दोपहर के खाने की तैयारी में जुट गयी ।   

खाना बनाते बनाते अब दोपहर का दो बज चुके थे ।

बच्चे स्कूल से आने वाले थे, लो बच्चे आ गये ।

उसने जल्दी जल्दी बच्चों की ड्रेस उतारी और उनका मुंह हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया ।

इस बीच छोटी नन्द भी कॉलेज से आगयी और देवर भी आ चुके थे । 

उसने सभी के लिए मेज़ पर खाना लगाया और खुद रोटी बनाने में लग गयी ।

खाना खाकर सब लोग फ्री हुवे तो उसने मेज़ से फिर बर्तन जमा करने शुरू करदिये

इस वक़्त तीन बज रहे थे । 

अब उसको खुदको भी भूख का एहसास होने लगा था ।

उसने हॉट पॉट देखा तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी । 

उसने फिर से किचिन की और रुख किया तभी पतिदेव घर में दाखिल होते हुये बोले की आज देर होगयी भूख बहुत लगी हे जल्दी से खाना लगादो ।

उसने जल्दी जल्दी पति के लिए खाना बनाया और मेज़ पर खाना लगा कर पति को किचिन से गर्म रोटी बनाकर ला ला कर देने लगी ।

अब तक चार बज चुके थे ।

अभी वो खाना खिला ही रही थी की पतिदेव ने कहा की आजाओ तुमभी खालो । 

उसने हैरत से पति की तरफ देखा तो उसे ख्याल आया की आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं ।

इस ख्याल के आते ही वो पति के साथ खाना खाने बैठ गयी । 

अभी पहला निवाला उसने मुंह में डाला ही था की आँख से आंसू निकल आये  

पति देव ने उसके आंसू देखे तो फ़ौरन पूछा की तुम क्यों रो रही हो ।

वो खामोश रही और सोचने लगी की इन्हें कैसे बताऊँ की ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता हे और लोग इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं ।

पति के बार बार पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा की कुछ नहीं बस ऐसे ही आंसू आगये ।   

पति मुस्कुराये और बोले कि तुम औरते भी बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो, बिना वजह रोना शुरू करदेती हो। समझ गई वो की एक बेवक़ूफ़ गृहणी हूं मैं तो


गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

*अनूठा जश्न *



इंसान का शरीर नश्वर है, परंतु अपने  विचार और कर्म कभी मरते नही हैं, ये प्रेरणा बनकर लाखों लोगो के उत्साह की ज्योति बन जाते है. वास्तव में  मृत्यु के दिन ,जो मृत्यु होती है वो भावमृत्यु  होती ही जो जीवन का सबसे खूबसूरत सत्य है.मैं जानती हूं , परिवर्तन प्रकृति का नियम है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ विचारों में  स्वाभाविक तौर से बदलाव आता ही है. मैं भी यह एक *पुण्यकार्य*  मेरी आत्मा की शांति के‌ लिऐ  करवाना चाहती हूं ,जब मैं इस दुनिया से चली जाऊं, तब मेरे मृत शरीर का  *देह दान* किया जाए,क्योंकि व्यर्थ इसे जलाकर भस्म करने से अच्छा है की कोई इस मृत शरीर से पढ़ लिख कर  डॉक्टर बनकर ,किसी और की ,जान को बचाए ,और  मुझे  जब खूब ,खुशी होगी की मेरे सारे ,चाहने वाले,मेरे मृत शरीर को ,नाचते,गाते ,बारात की तरह,अस्पताल तक ले जाएं, घर आकर 11 घी के दिए भी जलाए, खूब मिठाईयां और पकवान  बनाएं ,एक जश्न जैसा माहौल बनाया जाए, और  मेरे , उठावने वाले, तीसरे दिन, मेरे सारे,हर तरह के शोक, खत्म किए जाएं ,इस रोज भी पूरे घर में, खुशियों जैसा, माहौल बनाकर रखें, कोई भी मेरे लिए दुखी नहीं होवे, क्योंकि मैं इस सबके साथ बहुत रही हूं ,मेरा सभी से लगाव,जो,ही,वो, मरने के बाद भी, बना रहेगा, मैं सबको नजदीक महसूस करती रहूंगी, उठावने वाले दिन के बाद ही, सारे कार्यक्रम को  पूर्ण रूप से विराम दे दिया जाए,और सब अपनी अपनी जिंदगी जैसे जी रहे थे वैसे ही जीना शुरु कर देवें, मैं चाहती हूं कि  जैसे जब परिवार में कोई जन्म लेता है तो बड़ी  ख़ुशी होती है. उत्सव मनाया जाता है. वैसा ही मेरी मृत्यु को भी एक जश्न का रूप दिया जाए शरीर तो नश्वर है एक दिन इसे सबकों छोड़कर जाना है,तो क्यों इस दिन को दुखी होकर रोया धोया जाए,जश्न के रूप में,मेरे इन दिनों को भी इस तरह  यादगार बनाया जाए 🙏🌹


(स्वरचित)

अनीता सुखवाल

उदयपुर

19 अप्रैल 2023

 


रविवार, 16 अप्रैल 2023

*मन का चिंतन*

 एक लड़की अपनी माँ के पास आकर अपनी परेशानियों का बखान कर रही थी बोली मां देखो ना 

आजकल मैं,हर काम में फेल होने लगी हूं,,मेरा प्यारी सहेली से झगड़ा हो गया ,और तो और आज मनपसंद ड्रेस प्रैस कर रही थी तो वो भी जल गई ,बताते हुए वो रो पड़ी और रोते हुए बोली, मम्मी ,देखो ना ,मेरी जिन्दगी के साथ सब कुछ उलटा - पुल्टा ही क्यों हो रहा है l माँ ने मुस्कराते हुए कहा,

यह उदासी और रोना छोड़ो, चल मेरे साथ रसोई में ,आज"तुम्हारा मनपसंद केक बनाकर खिलाती हूँ" l

लड़की का रोना बंद हो गया और हंसते हुये बोली,"केक तो मेरी मनपसंद मिठाई है" फिर वो दोनो रसोई की तरफ जाने लगे, कितनी देर में बनेगा,बेटी ने चहकते हुए पूछा ,

माँ ने सबसे पहले मैदे का डिब्बा उठाया और प्यार से कहा, ले पहले मैदा खा ले ,लड़की मुंह बनाते हुए बोली, इसे कोई खाता है भला?

माँ ने फिर मुस्कराते हुये कहा, "तो ले सौ ग्राम चीनी ही खा ले" ,एसेंस और मिल्कमेड का डिब्बा दिखाया और कहा लो इसका भी स्वाद चख तो ले,

लड़की हंसते हुए बोली "माँ" आज तुम्हें क्या हो गया है?जो मुझे इस तरह की चीजें खाने को दे रही हो ?

माँ ने बड़े प्यार और शांति से जवाब दिया, "बेटी"केक इन सभी बेस्वादी चीजों से ही बनता है और ये सभी

मिलकर ही तो केक को स्वादिष्ट बनाती हैं .मैं तुम्हें सिखाना चाह रही थी कि"जिंदगी का केक"

भी इसी प्रकार की बेस्वाद घटनाओं को मिलाकर बनाया जाता है ,हर काम में अगर फेल हो रही हो तो इसे चुनौती समझो मेहनत करने मेंजुट जाओ ,सहेली से झगड़ा हो गया है तो अपना व्यवहार इतना मीठा बनाओ  ताकिफिर कभी किसी से झगड़ा न हो ,यदि मानसिक तनाव के कारण "ड्रेस" जल गईतो आगे से सदा ध्यान रखो कि मन की स्थिति हर परिस्थिति में अच्छी रखना चाहिए ,बिगड़े मन से काम भी तो बिगड़ेंगे ,कार्यों को कुशलता से करने के लिए मन के चिंतन को कुशल बनाना अनिवार्य है ,बेटी को मां की बातों से बहुत सकून मिला,वह प्यार से मां के गले लग गई |

सोमवार, 10 अप्रैल 2023

*मन की गाँठ*

 एक बुर्जुग व्यक्ति अपने जीवन से बहुत निराश हो गया था। उसे ऐसा लगता था कि वह इतनी बड़ी इस दुनियाँ में बिलकुल अकेला हैं। न तो कोई उसे चाहता हैं और न ही प्यार करता हैं। वह किसी का प्यार पाने के काबिल भी नहीं हैं। यही सोच-सोचकर वह हमेशा दुखी रहा करता था। बसंत के मौसम में सुंगंधित फूलों से सारा वातावरण सुंदर व सुंगंधित हो रहा था, परंतु वह व्यक्ति ज्यादातर अपने घर में बंद ही रहता था। एक दिन पड़ोस में रहने वाली लड़की अचानक उसके घर का द्वार खोलकर अंदर आई। उस व्यक्ति को गुमसुम देखकर उसने पूछा- आप इतने उदास क्यों हैं ? वह व्यक्ति बोला- मुझे कोई प्यार नहीं करता। कोई मेरी परवाह नहीं करता। मैं बिलकुल अकेला हूँ। लड़की ने कहा- यह तो बहुत दुख की बात हैं कि कोई आपको प्यार नहीं करता, कोई आपकी परवाह नहीं करता। किन्तु यह तो बताइए कि आप कितने लोगोंb से प्यार और उनकी परवाह करते हैं। उस व्यक्ति के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। तब लड़की बोली -आप बाहर आइए और देखिए कि आपके द्वार पर ही कितना प्यार हैं। आप प्यार चाहते हैं, तो इन फूलों से लीजिए। ये आपको अटूट स्नेह करेंगे। बस बदले में आप भी थोड़ा सा इनका खयाल रखना,इन्हे थोड़ा सा प्यार देना। लड़की की बातें सुनकर उस व्यक्ति के मन की गाँठे खुल गई। उसे अपनी गलती का व सांसरिक नियम का अहसास हो गया। उसे पता चल गया कि बिना कुछ भी दिए, पाने की अपेक्षा रखना मूर्खता हैं।

 हम लोगों की भी यही आदत हैं हम चाहते हैं कि सब हमें महत्व दे, सम्मान दे, प्रेम करें परंतु स्वयं न तो किसी को महत्व देना चाहते हैं, न सम्मान देना और न प्रेम करना। मित्रों, अधिकाधिक मेल-जोल और सारगर्भित संवाद प्रसन्नता को बढ़ावा देते हैं आसपास का वातावरण मजबूत बनाते हैं, जबकि इनका अभाव एकाकीपन व निराशा को जन्म देता हैं।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

*जी लो अपनी जिंदगी*

 *जी लो अपनी जिंदगी*


ओरतों के लिए 

पचास का आंकड़ा मतलब  *हाफ सेंचुरी*  बड़ा जादुई होता है,इस वक्त 

एक अलग ख़ूबसूरती होती है इसकी,

तजुर्बे की लकीरें माथे पे होती है,

पर गाल अब भी गुलाबी होते हैं,इनके,

बच्चों से बेफ़िक्री का आलम जरूर होता है,पर फिक्र हर रोज करी जाती है,

खुद के लिए जीने का मन करता है

रंग भरने लगते है इसके अपने सपनों में,

रंगते हुए अपने बालों को, जिंदगी एक अलग  तरह, गुनगुनाती हुई सी  लगती है,, आईना भी अब इसको देखकर  मुस्कुराने लगता है,हाफ सेंचुरी आते आते

 नीला,पीला,चटकीला सब पहनने का मन करता है

 जिम में पसीना बहाते,पसंद का खा आते हैं, जिम जो किया है, ऐसा मन करता है,

 साड़ी, मिनी,गाऊन सब अपने ऊपर पहन कर इठलाने  का  मन करता है,

ये उम्र बहुत कुछ कहती है,

कभी कान में इयरफोन लगाकर गाना गाने को इच्छा होती है,तो कभी किसी ,म्यूजिक पार्टी में हल्का सा ठुमका  लगाने को मन करता है,कभी बच्चो के साथ मस्ती करते हुए बचपन में खो जाने का मन करता है, सुनना कभी तुम भी इन्हें,ध्यान से,

कहते हुए ही सुनोगे,मरने से पहले जी लेना चाहिए,जी लेने दो जिंदगी अब,

मौका मिला है जब इसे न खो  देना चाहिए,न , वैसे सच ये है की

ये दीपक की वो *लौ* की तरह होती है

जो बुझने से पहले पूरा ज़ोर लगा देना चाहती  है

पूरी ताकत से  अपना ज़ोर केवल  खुद पर  आजमाना  चाहती है,

और फ़िर ख़ुशी, ख़ुशी अपनी बची हुई जिंदगी को भरपूर  मस्ती में जीना चाहती है


स्वरचित ✍️

अनिता सुखवाल


मंगलवार, 24 जनवरी 2023

🙏 ध्यान🙏

एक महिला रोज मंदिर जाती थी l

एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी ।

इस पर पुजारी ने पूछा क्यों ???


तब महिला बोली मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर मे अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं l


कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है l

कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं l

इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा सही है..

परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं।


महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?

पुजारी ने कहा- एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नही चाहिये।

महिला बोली-मैं ऐसा कर सकती हूँ फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा कर दिखाया।


उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे :-

1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा l

2.क्या आपने किसी को मंदिर मे गपशप करते देखा l

3.क्या किसी को पाखंड करते देखा l

महिला बोली-नही मैंने कुछ भी नही देखा l

फिर पुजारी बोले- जब आप परिक्रमा लगा रही थी तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमे से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नही दिया।

अब जब भी आप मंदिर आये तो सिर्फ अपना ध्यान भगवान

में ही लगाना

फिर आपको कुछ दिखाई ही नही देगा ।

सिर्फ भगवान ही सर्ववृत दिखाई देगा

जब ऐसा होगा तो स्वयं ही कल्पना कर लीजियेगा।

रविवार, 22 जनवरी 2023

दहल़ीज

उम्र की दहलीज पर आकर

अब जाकर एहसास हुआ

जीवन के इस अंतराल में

हमने़ बहुत कुछ खोया

और बहुत कुछ है पाया


मन की दहलीज तो ख्वाहिशें बन

तितलियों के संग उड़ती है

आसमा के इंद्रधनुषी रंगों के संग

यूं ही विचरती है


तन की दहलीज सीमा में रहती

हिदायतें ,फर्ज ,जिम्मेदारी निभाती

समाज के बंधन में बॅंधी रहतीं

कभी अधूरी सी यूं खड़ी रहती


वक्त की दहलीज पर 

कभी हम रुक जाते हैं

कभी फैसलों के समक्ष

मूक बधिर हो जाते हैं

 अपने कर्मों के जाल में

खुद ही फॅंस जाते हैं


घर की दहलीज पर खड़े होकर

कई चिंताएं सताती हैं

कभी घर के अंदर 

कभी घर के भीतर औरत

बीच में ही फंस जाती है


मायकें की दहलीज

लड़कियों के लिए

बेहद अज़ीज़ होती है

सपने कई बुनती हैं

उड़ाने नई भरती हैं


ससुराल की दहलीज पर

मां के संस्कारों को ओढ़

आती हैं बेटियॉं

नए रूप में फिर से

 ढल जाती हैं बेटियां


आंखों की दहलीज पर

कभी सपने सुहाने आते हैं

कभी उदासी और दुख में

भरकर आंसू आ जाते हैं


पलकों की दहलीज पर

इंतजार सब ने देखा है

ए जिंदगी तुझ पर हमने 

सिर्फ एतबार रखा है


इश्क की दहलीज पर

कभी लड़खड़ाते कभी चलते हैं

कभी गिरते कभी संभलते हैं

कभी आग को भी पानी समझते हैं


यौवन की दहलीज पर

धैर्य और विवेक का 

दीपक जलाना पड़ता है

मन हताश निराश ना हो कभी

इसके लिए वर्चस्व 

कायम रखना पड़ता है


दिल की दहलीज 

खुशी में दिखाती कई रंग

और मुसीबत में 

हो जाती है तंग


जिंदगी की दहलीज पर

जब शाम की आहट होती है

मन की ख्वाहिशें थम जाती हैं

तलाश सुकून की बढ़ जाती है


मौत की दहलीज पर 

खड़े शख्स़ ही बता सकते

जिंदगी की तलब क्या होती है

खुद पर लेकर खुद को सोचो

जिंदगी क्या होती है


औरत को मिलता मशवरा

रहनें आंगन की दहलीज पर

कौन कितना टिक पाता है

किसी भी दहलीज पर


शब्दों की दहलीज पर

जाने क्या क्या लिखते हैं

कभी कागज कोरा रह जाता है

कभी बहुत कुछ लिख जाते हैं


Ajana Singh ki post

सोमवार, 9 जनवरी 2023

कुछ पंक्तियां, एक अपनी उम्र के लिए

 

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।

अब मैं 50 पार कर,सबकी " माँ " हो गई हूँ ।

चांदी बालो में उतर आई,

नज़र पर ऐनक चढ़ गई,

नज़ाकत दूर जा रही,

कहते हें  सब 'मोटी' हो गई हूँ ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूँ।

सुबह जल्दी नही होती उठने की,

रात की भी चिंता नही होती

नये नये पकवानो की अब फरमाईश भी नही होती ।

"परिंदे"उड़ान भर कर दूर है जा बसे

अब तो रोज उनसे भी बाते नही होती ।

चिड़ियों  से बाते करती हूँ  पौधों को नहलाती धुलाती हूँ 

शामो को विचरती हूँ आवरगी से,

किसी से नही डरती

कहते " वो "भी अब तो,

'''''::::मैं बदल गई हूँ ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।

लिखने लगी कहानी,करने लगी कविता

फिर भी आईने में देख खुद को जब-तब संवरती हूं

"वक्त" नही था पहले,

अब पहले सा "वक्त" नही

खोजती हूं नित दोस्त नये मशगूल रहती हूं ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।।।

मन "सबल" हुआ मेरा ,अहसास "निर्बल" हो गये ।

पीड़ा देख हर किसी की मैं भी सिसकती हूं ।।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारयों से  मुक्त हो गई हूँ ।।