बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

*असली वारीस*

एक इलाके में एक भले आदमी का देवाहसान हो गया था लोग अर्थी ले जाने को तैयार हुये, और जब उठाकर श्मशान ले जाने लगे तो एक आदमी दौड़ता हुआ आगे आया और अर्थी का एक पांव पकड़ लिया और बोला के मरने वाले ने मेरे 15 लाख देने है, पहले मुझे पैसे दो फिर उसको जाने दूंगा। अब तमाम लोग खड़े तमाशा देख रहे है, बेटों ने कहा के मरने वाले ने ,हमें ,तो कोई ऐसी बात नही की, के वह, कर्जदार है, इसलिए हम नही दे सकतें, मृतक के दूसरे भाइयों और रिश्तेदारों ने भी कहा ,के जब बेटे, जिम्मेदार नही, तो हम क्यों दें। अब सारे खड़े थे और उसने अर्थी ,पकड़ी हुई थी, जब काफ़ी देर गुज़र गई तो बात घर की औरतों तक भी पहुंच गई। मरने वाले कि एकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और अपनी सारी नक़द रकम जमा करके उस आदमी के लिए भिजवा दी और कहा के भगवान के लिए ये रकम और ज़ेवर बेच के उसकी रकम रखो और मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको। में मरने से पहले सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी। और बाकी रकम का जल्दी बंदोबस्त कर दूंगी। अब वह अर्थी पकड़ने वाला शख्स खड़ा हुआ और सारे लोगो से मुखातिब हो कर बोला: असल बात ये है मेने मरने वाले से 15 लाख लेना नही बल्कि उसकाे देना है ,और उसके किसी वारिस को में जानता नही था, तो मैने ये खेल किया। अब मुझे पता चल चुका है के उसकी वारिस एक बेटी है और उसका कोई बेटा या भाई नही है कह कर उसने वो रकम बेटी को दे दी, और अर्थी को कंधा देकर शमशान तक साथ गया! 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

म*ाचिस की तीलियाँ*

अलग  अलग रंग**😅😎😀
एक जैसी ही दिखती थी...माचिस की वो तीलियाँ,
कुछ ने दिये जलाये......और कुछ ने घर,
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कुछ ने महकाई....अगरबत्तियां मंदिरों में,
तो कुछ ने सुलगाये.....सिगरेट के कश,
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कहीं गरमाया चूल्हा...और बनी रोटियाँ,
तो कहीं फटे बम....और बिखरी बोटियाँ,
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जली कहीं शादी में.....बन हवनकुंड की अगन,
तो फूँकी गयी....दहेज़ की कमी से कोई सुहागन,
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काजल कभी....नवजात शिशु का बनाया,
तो शमशान में....किसी चिता को जलाया,

एक सी दिखती थी.....माचिस की वो तीलियाँ पर,
सभी ने अपना....एक अलग ही रंग दिखाया.....!!!

रविवार, 16 अक्टूबर 2022

*अपने हिस्से की ज़िन्दगी*

 ❤️ खुद को भी पहचानो ❤

आज चाय के साथ पकोड़े खाने का मन हुआ, फिर सोचा घर मे किसी को पसंद ही नही पकोड़े खाना तो अपने लिए क्या बनाऊ.... चाय ली और दो बिस्कुट लेकर बैठ गई.... सुबह से शाम तक का सोचने लगी.... घर मे जो भी बनता है बच्चो या फिर पतिदेव की पसंद का बनता है.... अपनी पसंद का कभी नही बनाया.... खाना मै ही परोसती हूँ.... पर सभी को खिलाने के बाद अगर सलाद खत्म हो जाए तो अपने लिए सलाद दोबारा नहीं काटती....सभी की चीजों का  मुझे ही ख्याल रखना है.... पर अपनी ही दवाई भूल जाती हूँ.... रात को सारा काम निपटा कर जैसे ही सोने की तैयारी करो तो आवाज़ आती है एक ग्लास पानी तो दे दो... पर अपने लिए पानी लेने खुद ही उठना पड़ता है..... जब सभी का ख्याल रख सकती हूँ.... तो खुद के लिए कुछ क्यों नही कर सकती....

अब इसका जवाब देना तो हम गृहनियों के लिए मुश्किल हीं होगा। रोज़ सब के लिए फलों का प्लेट सजाते सजाते एक-आध टुकड़ा मुँह में डाल ली तो डाल ली.....खुद की प्लेट भी बनाई होगी, याद हीं नहीं... 

इतनी लीन हुई ये दुनियादारी में, की दुनियाँ ने इनकी रीत हीं बना डाली.......लक्ष्मण रेखा सी खींच डाली.........जकड़ डाला हमने खुद को एक रिवाज में.......इसकी दोषी हम खुद हैं...... 

वर्ना कहाँ लिखा है... किसने कहा है, कि सब की सेहत का खयाल रखो, लेकिन खुद की नहीं?


सजाओ सब की थाली,

वही प्यार वाली।

पर एक और बढ़ा दो,

खुद के नाम की थाली।

काटो तरबूज़, डालो अँगूर,

अपनी प्लेट भी सजाना ज़रूर।

दवाइयाँ देखो है ना सब की,

देखो फिर से एक बार,

अपनी दवाई भूली तो नहीं इस बार।

शाम हुई है,कोई है नहीं पास,

फिर भी बनाओ चाय,

देखो ना, तुम भी हो ख़ास।

कोई कहेगा तब हीं रखोगी,

सेहत है तुम्हारी कई बार कहूँ,

कब अपने हिस्से की ज़िन्दगी चखोगी।

दौड़ते भागते, थोड़ी ठहरा करो,

रखो सब का खयाल तुम...

और अपने ख़ातिर भी खुशियों का पहरा धरो।

शनिवार, 1 अक्टूबर 2022

जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा

 मैं अपनी उम्र,बताना नहीं चाहती हूँ...

जब भी कोई,यह सवाल पूछता है,

मैं सोच में पड़ जाती हूँ...

बात यह नहीं कि,मैं उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,

बात तो यह है कि मैं हर उम्र के पड़ाव को,फ़िर से जीना चाहती हूँ,इसलिए ज़वाब नहीं दे पाती हूँ...

मेरे हिसाब से तो,उम्र बस एक संख्या ही है,

जब मैं बच्चों के साथ बैठ,कार्टून फ़िल्म देखती हूँ,उन्हीं का हम उम्र हो जाती हूँ,उन्हीं की तरह ख़ुश होती हूँ,

जब बड़ों के पास बैठ गप्पे सुनती हूँ,उनकी ही तरह सोचने लगती हूँ...

दरअसल मैं एक साथ,हर उम्र को जीना चाहती हूँ...

इसमें गलत ही क्या है ?

क्या कभी किसी ने,सूरज की रोशनी या,चाँद की चाँदनी से उम्र पूछी ? या फ़िर कल कल करती,बहती नदी की धारा से उमर पूछी ?फ़िर मुझसे ही क्यों  ?

बदलते रहना प्रकृति का नियम है,

मैं भी अपने आप को समय के साथ बदल रही हूँ...

क्योंकि किसी ने सच ही कहा है

ये जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा

स्त्री की जगह

 उसके मांग में सिंदूर आते ही लड़की से वोऔरत बन जाती है।

जब वो शादी के तुरंत बाद दीदी से आंटी बन जाती है जबकि उसका पति दो बच्चों के बाद भी भैया ही बना रहता है।

जब शादी की अगली सुबह बेटे को आराम करने दिया जाता है और उसे रसोई में प्रवेश मिल जाता है। सबकी पसंद का खाना बना के खिलाओ ,अपनी पसंद का कोई पूछेने वाला नही

जब उसकी हर ग़लती भी उसकी और उसके पति की हर ग़लती भी उसी की ग़लती कहलाती है।

जब उसका शादी से बाहर का आकर्षण उसको धोखे बाज़ बना देता है और उसके पति का आकर्षण उसके प्यार की कमी कहलाता है।

जब मायके आने के लिए किसी की इजाजत जरूरी हो जाती है।

जब मायके की यादों की उदासी को उसके काम ना करने का बहाना करार दिया जाता है।

जब जरूरत पड़ने पर ना वो पति से पैसे मांग पाती है और ना ही पिता से।

जब उसकी माँ उसे समझौता करने को कहती रहती है। और अपनी सफल शादी की दुहाई देती रहती है

जब ऑफिस से थक कर आने के बाद कोई पानी तक नहीं पूछता है।

जब रात को पति के बाद सोती है और सुबह पति से पहले उठती है।

जब अपने सपने/ख्वाहिशें भूल जाती है और कोई पुरानी सहेली उसको याद दिलाती है।

शादी सभी के लिए उतनी मीठी नहीं होती जितनी नज़र आती है। महिलाओं के लिए आज भी जीवन मुश्किल है।

वो जो महिला को आप रोज़ देखते है और उससे उसकी आँखों के नीचे काले घेरे होने का कारण पूछते है, मत पूछिए। वो कभी नहीं बताएगी। और अगर बताती भी है तो आप कभी नहीं समझेंगे।

अरे भई! जिसे उसकी माँ ने नहीं समझा, आप क्या खाक समझेंगे?

और भी जाने क्या-क्या बकवास दलीलों के रूप में सुनने को मिलती है।

महिलाओं के शांत चेहरों और फूल से हँसी के पीछे कौन-कौन से तूफ़ान गुज़र रहे होते है, आप कभी नहीं समझोगे। स्त्री को समझने के लिए सात जन्म कम पड़ जायेंगे