रविवार, 28 अगस्त 2022

*छोटी सी दुआ*

किसी ने मुझसे पूछा...
*दुनिया में सबसे मुश्किल काम क्या है??*
"बड़ा कठिन सवाल है"..
मैने मुस्करा कर कहा!
फिर कुछ सोचकर मैंने जबाब दिया....
"मेरी नजर में दुनिया का 
सबसे मुश्किल काम है.... 
*अपनी आंखों के सामने अपने माँ बाप को बूढ़ा होते हुए देखना..!!*
ये वो समय होता है जब हम कुदरत के इस लिखे को टाल नहीं पाते..!!
माँ-बाप के वो खूबसूरत से चेहरे जब झुर्रीयो से भर जाते हैं तो....
दिल भर  आता है..!!
उंगली पकड़कर चलाने वालें जब खुद चलने के काबिल नहीं रहते तो....
दिल भर आता है..!!
सहारा देने वालें जब खुद सहारे की तलाश में घूमते हैं तो....
दिल भर आता है..!!
रास्ता दिखाने वालों को जब अपने ही रास्ते वीरान नजर आते हैं तो....
दिल भर आता है..!!
हंसकर बोलने वालें जब खामोश रहने लगते हैं तो....
दिल भर  आता है..!!
अपने बच्चो की नजर उतारने वालो की जब नजरे धुंधला जाती हैं तो....
दिल भर आता है..!!
अगर ईश्वर मुझे कुछ मांगने के लिए कहें तो मैं ये मांगू.....
हे ईश्वर ....
किसी के भी माँ-बाप को कमजोर..
बीमार ना करना....
उनकी जितनी भी जिंदगी है ,
वो सेहतमंद रहें.!! 
कोई भी औलाद अपने माँ-बाप को बेसहारा ना छोड़े.!!

शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

सारे लड़कों को समर्पित💐

लड़के ! हमेशा खड़े रहे.
खड़े रहना उनकी  मजबूरी नहीं रही बस !
उन्हें कहा गया हर बार,
चलो तुम तो लड़के हो 
खड़े हो जाओ.

छोटी-छोटी बातों पर वे खड़े रहे कक्षा के बाहर.. स्कूल विदाई पर जब ली गई ग्रुप फोटो,लड़कियाँ हमेशा आगे बैठीं,और लड़के बगल में हाथ दिए पीछे खड़े रहे.
वे तस्वीरों में आज तक खड़े हैं..

कॉलेज के बाहर खड़े होकर, 
करते रहे किसी लड़की का इंतज़ार,

या किसी घर के बाहर घंटों खड़े रहे, एक झलक,एक हाँ के लिए. अपने आपको 
आधा छोड़ वे आज भी 
वहीं रह गए हैं...

बहन-बेटी की शादी में 
खड़े रहे, मंडप के बाहर
बारात का स्वागत करने के लिए.
खड़े रहे रात भर 
हलवाई के पास,कभी भाजी में कोई कमी ना रहे.खड़े रहे खाने की स्टाल के साथ,
कोई स्वाद कहीं खत्म न हो जाए.
खड़े रहे विदाई तक 
दरवाजे के सहारे और टैंट के 
अंतिम पाईप के उखड़ जाने तक.

बेटियाँ-बहनें जब तक वापिस लौटेंगी
 वे खड़े ही मिलेंगे...

वे खड़े रहे पत्नी को सीट पर 
बैठाकर,बस या ट्रेन की खिड़की थाम कर,
वे खड़े रहे 
बहन के साथ घर के काम में,
कोई भारी सामान थामकर.

माँ के ऑपरेशन के समय ओ. टी.के बाहर घंटों. वे खड़े रहे 
पिता की मौत पर अंतिम लकड़ी के जल जाने तक. 
वे खड़े रहे ,
अस्थियाँ बहाते हुए गंगा के बर्फ से पानी में.

लड़कों ! रीढ़ तो तुम्हारी पीठ में भी है,
क्या यह अकड़ती नहीं ?

बेटी पर तो बहुत लिखा जाता है,

आज बेटों पर लिखने का मन किया ।❤️

*🌹बेवजह कुण्डी* *खटखटाया करो* 🌹

🌻🌹🍁🌷🌺🌸💐🌼🥀🌻🌹🍁
*आसपास के लोगों से मिलते रहा करो,*
*उनकी थोड़ी खैर खबर भी रखा करो,*
*जाने कौन कितने अवसाद में जी रहा है,*
*पता नहीं कौन बस पलों को गिन रहा है,* 

*कभी निकलो अपने घरोदों से,*
*औरों के आशियानें में भी जाया करो,*
*कभी कभी अपने पड़ोसियों की कुण्डी,*
*तुम बेवजह ही खटखटाया करो,*

*कभी यों ही किसी के कंधे पे हाथ रख,*
*साथ होने का अहसास दिलाया करो,*
*कभी बिन मतलब लोगों से बतियाया करो,*
*बिना जज किये बस सुनते जाया करो,*

*बहुत कुछ टूटे मिलेंगे, कुछ रूठे दिखेंगे,*
*जिन्दगी से मायूस भी मिलेंगे,*
*बस कुछ प्यारी सी उम्मीदें,* 
*कभी उनके दिलों में जगाया करो,*

*ऐसा न हो फिर वक्त ही न मिले,*
*और मुट्ठी की रेत की तरंह लोग फिसलते रहे,*

*तूँ बेवक्त ही सही...*
*लोगों को गले तो लगाया करो ।*


🌻🌹🍁🌷🌺🌸💐🌼🥀🌻🌹🍁
🙏🙏🙏🙏🙏🙏

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

🌷 माँ का कटोरदान 🌿

जब हम छोटे थे तब मम्मी रोटियां एक स्टील के कटोरदान में रखा करती थी.
रोटी रखने से पहले कटोरदान में एक कपड़ा बिछाती वो कपड़ा भी उनकी पुरानी सूती साड़ी से फाड़ा हुआ होता था।वो कपड़ा गर्म रोटियों की भाप से गिरने वाले पानी को सोख लेता था, जैसे मम्मी की साड़ी का पल्लू सोख लेता था हमारे माथे पे आया पसीना कभी धूप में छाँव बन जाता, कभी ठण्ड में कानों को गर्माहट दे जाता।
कभी कपड़ा न होता तो अख़बार भी बिछा लेती थी मम्मी
.....लेकिन कुछ बिछातीं ज़रूर थी.समय बीतता गया और हम बड़े हुए.
एक बार दीपावली पर हम मम्मी के साथ बाजार गए 
तो बर्तनो की दूकान पर देखा केसरोल .....चमचमाते लाल रंग, का बाहर से प्लास्टिक और अंदर से स्टील का था. दुकानदार ने कहा ये लेटेस्ट है  इसमें रोटियां गर्म रहती है.
हम तो मम्मी के पीछे ही पड़ गए अब तो इसी में रोटियां रक्खी जाएँगी, मम्मी की कहाँ चलती थी हमारी ज़िद के आगे 
अब रोटियाँ कैसेरोल में रक्खी जाने लगी.
कटोरदान में अब पापड़ रखने लगी थी मम्मी
अगले महीने, मम्मी की एक सहेली ने ,पापड़ मंगवा के दिए पर, वो तो बहुत बड़े थे, तो कटोरदान में फिट ही नहीं हो पाये इसलिए उन्हें एक दूसरे बड़े डब्बे में रखा गया....
और अब कटोरदान में मम्मी ने परथन (सूखा आटा जिसे लगाकर रोटियाँ बेली जाती है) रख लिया।जैसे जैसे समय बीतता गया कटोरदान की भूमिका भी बदलती गई पर वो मायूस न हुआ जैसा था वैसा ही रहा बस ढलता गया नयी भूमिकाओं में।
कुछ और समय बीता....
मेरी शादी हो गयी और मैं एक नए शहर में आ गयी।मम्मी ने मुझे बहुत सुन्दर कीमती और नयी चीज़ें दी अपनी गृहस्ती को सजाने के लिए.....
पर मुझे हमेशा कुछ कमी लगती
एक बार जब गर्मी की छुटियों में मम्मी से मिलने गई तो मम्मी ने मुझे एक कैसेरोल का सेट दिया.
मैने कहा मुझे ये नहीं वो कटोरदान चाहिए 
मम्मी हंस दी बोली .... उसका क्या करेगी? ये ले जा लेटेस्ट है
मैंने कहा हाँ ठीक है पर वो भी ।
मम्मी मुस्कुरा दी और परथन निकालकर कटोरदान धोने लगी , उसे अपनी साड़ी के पल्लू से सुखाया और उसमे पापड़ का एक पैकेट रख कर मेरे बैग में में रख दिए ।
अब खुश मम्मी बोली, ......मैने कहा हाँ 
मै उस कटोरदान को बहुत काम में लेती हूं सच कहू तो अकेलापन कुछ कम हुआ
कभी बेसन के लाडू भर के रखती हूं ,कभी मठरी
कभी उसमें ढोकला बनाती हूँ 
कभी सूजी का हलवा जमाती हूँ
कभी कभी पापड़ भी रखती हू I नित नयी भूमिका मैं ढल जाता है मम्मी का ये कटोरदान 
यहाँ आने बाद मुझे मम्मी की बहुत याद आती थी ,पर मैं कहती नहीं थी के मम्मी को दुःख होगा 
कभी कभी सोचती हू क्या इस कटोरदान को भी मम्मी की याद आती होगी 
ये भी तो मेरी तरह मम्मी के हाथों के स्पर्श को तरसता होगा आखिर इसने भी तो अपनी लगभग आधी ज़िन्दगी उनके साथ बिताई है ।
बस हम दोनों ऐसे ही अक्सर मम्मी को याद कर लेते हैं
एक दूसरे को ' छू ' कर मम्मी का प्यार महसूस कर लेते है। 
बस ऐसे ही एकदूसरे को सहारा दे देते हैं .....
मैं और मम्मी का कटोरदान। 
सच माँ की कमी कोई पूरा नहीं कर सकता इसलिये आज माँ है तो पल भर भी गंवाये बिना उनके साथ जिन्दगी जी लो.....
🙏🙏🌷🌿
आशीर्वाद बना रहे माँ 😍 💗 💓 💛 ♥️