गुरुवार, 23 जनवरी 2020

***खुशी की असली वजह***

उसने कहा- बेवजह ही
खुश हो क्यों?
मैंने कहा- हर वक्त
दुखी भी क्यों रहूँ !

उसने कहा- जीवन में 
बहुत गम हैं,
मैंने कहा -गौर से देख,
खुशियां भी कहाँ कम हैं।

उसने तंज़ किया -
ज्यादा हँस मत,
नज़र लग  जाएगी,
मेरा ठहाका बोला-
चिकनी हूँ, 
फिसल जाएगी।

उसने कहा- नहीं होता
क्या तनाव कभी ?
जवाब दिया- मैंने ऐसा
तो कहा नहीं!

उसकी हैरानी बोली-
फिर भी यह हँसी?
मैंने कहा-डाल ली आदत
हर घड़ी मुसकुराने की!

फिर तंज़ किया-अच्छा!!
बनावटी हँसी, इसीलिए
परेशानी दिखती नहीं।
मैंने कहा-
अटूट विश्वास है,
प्रभु मेरे साथ है,
फिर चिंता-परेशानी की
क्या औकात है।
कोई मुझसे "मैं दुखी हूँ"
सुनने को बेताब था,
इसलिए प्रश्नों का
सिलसिला भी
बेहिसाब था

पूछा - कभी तो
छलकते होंगे आँसू ?
मैंने कहा-अपनी
मुसकुराहटों से बाँध
बना लेती हूँ,
अपनी हँसी कम पड़े तो
कुछ और लोगों को
हँसा देती हूँ ,
कुछ बिखरी ज़िंदगियों में
उम्मीदें जगा देती हूँ...
यह मेरी मुसकुराहटें
दुआऐं हैं उन सबकी
जिन्हें मैंने तब बाँटा,
जब मेरे पास भी
कमी थी।

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