रविवार, 11 अगस्त 2019

जैसी भी हूँ.. मैं

मैं, मैं हूँ ,
चाहे जैसी भी हूँ..

खुद से ही खुश हूँ ,
चाहे कैसी भी हूँ..

 न मैं अति सुन्दर न छरहरी,
ना ही नायिकाओ सी काया है मेरी..

   पर खुद पे ही है नाज़,
आत्मविश्वास और संबल ही
 छाया है मेरी..

   क्या करुँ क्या नहीं,
अब नही करनी किसी की परवाह..

   अब तो लगता है वही करुँ,
जो दिल मे दबा के रखी थी चाह..

   बच्चे उड़ चुके या उड़ने वाले हैं,
घोसलों से नई दिशाओं में..

   हम भी चुनेगें अब अपने पसंद की जमीं,
और आसमां नई आशाओं में..

   अब अपने घोंसले को ही नही,
खुद को भी सजाना है..

   बहुत मनाया सबको,
अब खुद को भी मनाना है..

   सूख चुकी उम्मीदों को,
फिर से सींचना है..

   रुठी हुई ख्वाहिशों को ,
गले लगा भींचना है..

   जीऊँगी जिंदगी को फिर से,
अब नए उमंग मे..

   लिए अपनी तमन्नाओं को ,
अपने संग में..

  थाम हाथ में जुगनुओं को ,
फिर से खिलखिलाऊँगी..

   नए सफर को नई उम्मीदों की,
रौशनी से जगमगाऊँगी

  फिर से बचपने के करीब हूँ,
लिखूँगी फिर से अपनी ज़िन्दगी..

 मैं अब खुद ही, अपना
नसीब हूँ मैं

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