*एक गरीब बेटी की दास्तान*
चौदह साल की मुनिया पड़ोस के घर से झाड़ू- पोंछा करके
अपने घर आई।
चारपाई पे लेटा उसका बाप गुस्से से आग- बबूला होके बोलाः
"रे करमजली! कहाँ मुँह काला करवा रही थी। एक घंटा देर से आ
रही है।"
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"बापू! वो उनके घर कूछ मेहमान आने वाले थे, तो पोंछा लगाने
का काम आज
ज्यादा करना पड़ा। इसलिये देर हो गई।"
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"अबे! भाग करमजली जाकर घर के काम अपने निपटा"
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अभी मुनिया रूम मेँ ही आई की छोटे भाई ने नाश्ता माँगा।
मुनिया के बताने पे कि नाश्ता नहीँ बना
,
भाई ने उसकी पीठ पे एक मुक्का तान के मार दिया।
"कमीनी मुझे खेलने जाना है भूख लगी है, जल्दी रोटी बना।"
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दोपहर मेँ जब कोई नहीँ था तो मुनिया अकेले मेँ
रो रही थी,
पालतू कुत्ता शेरू उसके समीप आके जीभ से दुलार करने लगा।
मुनिया शेरू से लिपट के रो पड़ी और बोलीः
"भगवान! किसी भी जन्म मेँ मुझे गरीब घर की बेटी मत बनाना,
अगर गरीब की बेटी बनाना तो माँ के साथ ही मुझे भी ऊपर बुलाना !"
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