गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

धर्म भ्रष्ट

माँ 6 साल के बच्चे को पीटते हुये
नालायक तूने भँगी के घर की रोटी खायी तू भँगी हो गया,
तूने अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया अब क्या होगा ?
बच्चे का मासूम सवाल>>
माँ मैने एक बार उनके घर की रोटी खा ली तो मैं भँगी हो गया
लेकिन वो लोग तो हमारे घर की रात की बची रोटी बर्षो से खा रहे हैं,
तो वो ब्राह्राण क्यों नही हो पाये??????
जो इंसान जाति और जातिवाद को मानता है
वह इंसान कहलाने के लायक नहीं है !

ज्ञान दौलत और इज्ज़त

ज्ञान दौलत और इज्ज़त …य़े तीनो दोस्त एक जगह जमा हुए , जब बिछड़ने का वक़्त आया तो उन तीनो के बीच कुछ इस तरह से बात हुई :-
ज्ञान …. मै जा रहा हूँ अगर मुझे मिलना हो तो विद्वानों की सोहबत और उनकी किताबों में मिलूँगा ।
दौलत …. मै भी जा रही हूँ अगर मुझे मिलना हो तो अमीरों के महलों में मिलना । 
इज्ज़त ने कुछ नही कहा तो ज्ञान और दौलत ने पूछा , तुम खामोश क्यों हो ? अब तुम दोबारा कहाँ मिलोगी ।
इज्ज़त …. अफ़सोस है कि जब मैं एक बार चली जाती हूँ तो दोबारा कहीं नही मिलती ।

स्त्री हूँ मैं !



व्यर्थ नहीं हूँ मैं!
जो तुम सिद्ध करने में लगे हो
बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान
अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम।
मैं स्त्री हूँ!
सहती हूँ
तभी तो तुम कर पाते हो गर्व अपने पुरूष होने परमैं झुकती हूँ!
तभी तो ऊँचा उठ पाता है
तुम्हारे अंहकार का आकाश।
मैं सिसकती हूँ!
तभी तुम कर पाते हो खुलकर अट्टहास
हूँ व्यवस्थित मैं
इसलिए तुम रहते हो अस्त व्यस्त।
मैं मर्यादित हूँ
इसीलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमायें।
स्त्री हूँ मैं!
हो सकती हूँ पुरूष
पर नहीं होती
रहती हूँ स्त्री इसलिए
ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरूष
मेरी नम्रता, से ही पलता है तुम्हारा पौरुष
मैं समर्पित हूँ!
इसीलिए हूँ उपेक्षित, तिरस्कृत।
त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान
ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान
जीती हूँ असुरक्षा में
ताकि सुरक्षित रह सके
तुम्हारा दंभ।
सुनो!
व्यर्थ नहीं हूँ मैं!
जो तुम सिद्ध करने में लगे हो
बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान
अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम।

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

*एक गरीब बेटी की दास्तान*




 *एक गरीब बेटी की दास्तान*



चौदह साल की मुनिया पड़ोस के घर से झाड़ू- पोंछा करके


 
अपने घर आई।


 
चारपाई पे लेटा उसका बाप गुस्से से आग- बबूला होके बोलाः


 
"रे करमजली! कहाँ मुँह काला करवा रही थी। एक घंटा देर से आ




रही है।"


.
"बापू! वो उनके घर कूछ मेहमान आने वाले थे, तो पोंछा लगाने




का काम आज




ज्यादा करना पड़ा। इसलिये देर हो गई।"


.
.
"अबे! भाग करमजली जाकर घर के काम अपने निपटा"


.
.
अभी मुनिया रूम मेँ ही आई की छोटे भाई ने नाश्ता माँगा।





मुनिया के बताने पे कि नाश्ता नहीँ बना


,
भाई ने उसकी पीठ पे एक मुक्का तान के मार दिया।





"कमीनी मुझे खेलने जाना है भूख लगी है, जल्दी रोटी बना।"


.
.
दोपहर मेँ जब कोई नहीँ था तो मुनिया अकेले मेँ





रो रही थी,



पालतू कुत्ता शेरू उसके समीप आके जीभ से दुलार करने लगा।



मुनिया शेरू से लिपट के रो पड़ी और बोलीः




"भगवान! किसी भी जन्म मेँ मुझे गरीब घर की बेटी मत बनाना,



अगर गरीब की बेटी बनाना तो माँ के साथ ही मुझे भी ऊपर बुलाना !"



























































रविवार, 22 सितंबर 2013

छोटी छोटी खुशिया

एक दिन किसी निर्माण के दौरान भवन की छटी मंजिल से सुपर वाईजर ने नीचे कार्य करने वाले मजदूर को आवाज दी.
निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण नीचे काम करने वाला मजदूर कुछ समझ नहीं सका की उसका सुपरवाईजर उसे आवाज दे रहा है.
फिर
सुपरवाईजर ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक १० रु का नोट नीचे फैंका, जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा
मजदूर ने नोट उठाया और अपनी जेब मे रख लिया, और फिर अपने काम मे लग गया .
अब उसका ध्यान खींचने के लिए सुपर वाईजर ने पुन: एक ५०० रु का नोट नीचे फैंका .
उस मजदूर ने फिर वही किया और नोट जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया .
ये देख अब सुपर वाईजरने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और मजदूर के उपर फैंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा. अब मजदूर ने ऊपर देखा और उसकी सुपर वाईजर से बात चालू हो गयी.
ये वैसा ही है जो हमारी जिन्दगी मे होता है.....
भगवान् हमसे संपर्क करना ,मिलना चाहता है, लेकिन हम दुनियादारी के कामो मे व्यस्त रहते है, अत: भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है, लेकिन हम उसे याद नहीं करते, और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये ये ना देखते हुए,उनका उपयोग कर लेते है, और भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है, लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते है, भगवान् का धन्यवाद नहीं करते ,उसे भूल जाते है.
तब भगवान् हम पर एक छोटा सा पत्थर फैंकते है , जिसे हम कठिनाई कहते है, और तुरंत उसके निराकरण के लिए भगवान् की और देखते है,याद करते है.
यही जिन्दगी मे हो रहा है.
यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान् के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें, तो हमें भगवान् के द्वारा फैंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा...!!!!!

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

सच्चाई

बेटे ने जॉब के खातिर घर ही छोड़ा था , लेकिन जॉब लगने के बाद शादी हुई, और शादी होने के बाद उसने घर के साथ साथ , रिश्ते भी छोड़ दिए थे , जिन रिश्तों ने उसे जन्म दिया था , वो अब उसकी जिन्दगी में कोई मायने नहीं रखते थे |
लेकिन आज बेटे ने माँ से फ़ोन पर लगभग आधा घंटा बात करी , बेटे के साथ साथ उसकी बहु ने उसके पोते पोतियों ने भी | माँ की अचरज का कोई ठिकाना ना रहा , पोता बड़े प्यार से कह रहा था , दादी आप यहाँ आओ ना हमारे साथ रहने, .. आज ऐसा महसूस हो रहा था उस बूढी माँ को , जैसे कानों में किसी ने मिश्री घोल दी हो  |

उसने अपने पति से कहा , अजी सुनते हो चलिए ना कुछ दिन बेटे के घर हो आते है , अभी उसके बच्चों की छुटियाँ भी है , तो उन्हें परेशानी भी नही होगी  वो बुजुर्ग दंपत्ति अगले दिन की ट्रेन पकड़ कर  बेटे के घर जा पहुंचे

सभी  उनकी , आवभगत में लगे हुए थे , 
कुछ दिनों के के बाद, बेटे ने माँ से कहा, माँ गाँव का अपना मकान और दुकान बेच दो , एक करोड़ से ऊपर की संपत्ति है , वो बेच कर, आप दोनों मेरे साथ यही रहने आ जाओ, मै आप के रहने का इंतजाम ऊपर किए देते हूँ , वही पर रसोई बना देता हूँ , आप दोनों ऊपर ही रहिये और बचा हुआ जीवन आराम से बिताइए , पिता जी ने सुन कर कहा ....बेटा , मेरे जीते जी ये संपत्ति बिकेगी नहीं , और यदि हमे यहाँ आ कर भी अकेले रहना है , तो गाँव में रहने में क्या बुराई है ? गुस्से से पिताजी ने बेटे को डांट दिया , बेटा माँ की और बड़ी हसरत से देख रहा था , लेकिन माँ के हाथ में कुछ था नहीं

जैसे तैसे रात ढली और सुबह होते ही बेटे ने कहा ....माँ आज हम लोग तीन दिन के लिए बाहर जा रहें है , मेरे ससुराल में कोई काम
अचानक आ गया है  , तो आप लोग गाँव चले जाइए , यहाँ आप की देखभाल करने वाला, कोई रहेगा नहीं, और वैसे भी आप लोगों को आलीशान बंगले से ज्यादा सुकून गाँव के उस टूटे फूटे से मकान में मिलता है , माँ को अब सुबह की सच्चाई साफ़ नजर आ चुकी थी, उसे पता चल चुका था की इस रिश्ते की जान , सिर्फ उस संपत्ति में निहित है |

माँ ने भारी मन से , अपना सामान उठाया , एक रात में द्रश्य एक दम बदल चुका था , कल जो बहु और पोते पोती दरवाजे तक लेने आये थे , आज वो लोग उस बुजुर्ग दंपत्ति को विदा करने के लिए, अपने कमरों से बाहर भी नहीं निकलें , माँ ने सामान , उठाते हुए कहा बेटा, उस टूटे हुए , मकान की हर ईंट पर हमारा अधिकार है , और देखना , इस आलिशान बंगले का क़र्ज़ भी , उसी से चुकेगा एक दिन अब सिर्फ सन्नाटा था रिश्तों के बीच ||

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

बड़ा छोटा


एक थे पण्डित जी और एक थी पण्डिताइन। पण्डित जी के मन मेंजातिवाद कूट-कूट कर भरा था। परन्तु पण्डिताइन समझदार थी। समाज की विकृत रूढ़ियों को नही मानती थी।एक दिन पण्डितजी को प्यास लगी।संयोगवश् घर मेंपानी नही था। इसलिए पण्डिताइन पड़ोस सेपानी ले आयी। पानी पीकर पण्डित जी नेपूछा।) पण्डित जी- कहाँ से लाई हो। बहुतठण्डा पानी है। पण्डिताइन जी- पड़ोस केकुम्हार के घर से।(पण्डित जी ने यह सुन करलोटा फेंक दिया और उनके तेवर चढ़गये। वे जोर-जोर से चीखनेलगे।)पण्डित जी- अरी तूनेतो मेरा धर्म भ्रष्ट करदिया। कुम्हार के घरका पानी पिला दिया।(पण्डिताइन भय से थर-थरकाँपने लगी, उसनेपण्डित जी से माफी माँग ली।) पण्डिताइन- अब ऐसी भूल नही होगी।(शाम को पण्डित जी जबखाना खाने बैठेतो पण्डिताइन ने उन्हें सूखी रोटियाँ परस दी।)पण्डित जी- सागनही बनाया।पण्डिताइन जी-बनाया तो था, लेकिन फेंक दिया। क्योंकि जिसहाँडी में वो पकाया था,वो तो कुम्हार के घर की थी।पण्डित जी- तू तो पगली है।कहीं हाँडी में भी छूतहोती है?(यह कह कर पण्डित जी नेदो-चार कौर खायेऔर बोले-)पण्डित जी- पानी तो ले आ।पण्डिताइन जी-पानी तो नही है जी।पण्डित जी- घड़े कहाँ गये?पण्डिताइन जी- वो तो मैंने फेंक दिये। कुम्हार केहाथों से बने थे ना।(पण्डित जी ने फिर दो-चार कौर खाये औरबोले-)पण्डित जी- दूध ही ले आ।उसमें ये सूखी रोटी मसल करखा लूँगा।पण्डिताइन जी- दूध भी फेंकदिया जी। गाय को जिस नौकर ने दुहा था, वह भी कुम्हार ही था।पण्डित जी- हद कर दी! तूने तो, यह भी नही जानती दूध में छूत नही लगती।पण्डिताइन जी- यहकैसी छूत है जी! जो पानी में तो लगती है,परन्तु दूध में नही लगती।(पण्डित जी के मन में
आया कि दीवार से सरफोड़ ले, गुर्रा करबोले-)पण्डित जी- तूने मुझे चौपटकर दिया। जा अब
आँगन में खाट डालदे। मुझे नींद आ रही है।पण्डिताइन जी- खाट! उसेतो मैंने तोड़ कर फेंक
दिया। उसे नीची जात के आदमी ने बुना था ना।(पण्डित जी चीखे!)पण्डित जी- सब मे आग
लगा दो। घर में कुछ बचा भी है या नही।पण्डिताइन जी- हाँ! घर बचा है। उसेभी तोड़ना बाकी है।
क्योकि उसे भी तो नीची जाति केमजदूरों नेही बनाया है।(पण्डित जी कुछ देर गुम-सुम खड़े रहे! फिर
बोले-)पण्डित जी- तूने मेरी आँखेंखोल दीं। मेरी ना-समझी से ही सब गड़-बड़ हो रही थी।
कोईभी छोटा बड़ा नही है।सभी मानव समान हैं ।

प्रेम ,धन और सफलता

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन
संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।
औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब
बताया।
औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और
उनको आदर सहित बुलाओ।”
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”
“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।
उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे
संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और
प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य
सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया।
उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – “यदि ऐसा है
तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से
भर जाएगा।”
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें
सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई
और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित
करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके
माता-पिता ने कहा।
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से
जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने
लगे।
औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम
को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?”
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक
को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम
को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-
जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

***विनम्रता का रहस्य***

एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे। उनके जीवन का आखिरी क्षण आ पहुँचा। आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों और चेलों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुँह पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले-'देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?' शिष्यों ने उनके मुँह की ओर देखा।

कुछ टटोलते हुए वे लगभग एक स्वर में बोल उठे-'महाराज आपका तो एक भीदाँत शेष नहीं बचा। शायद कई वर्षों से आपका एक भी दाँत नहीं है।' साधु बोले-'देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।'

सबने उत्तर दिया-'हाँ, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।' इस पर सबने कहा-'पर यह हुआ कैसे?' मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूँ तो भी यह जीभ बची हुईहै। ये दाँत पीछे पैदा हुए, ये जीभसे पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?'

शिष्यों ने उत्तर दिया-'हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।'

उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- 'यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है परंतु.......मेरे दाँतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए, अपनी कठोरता के कारण ही ये दीर्घजीवी नहीं हो सके।

दीर्घजीवी होना चाहते हो तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।'

बुधवार, 24 जुलाई 2013

एक छोटा सा पैगाम

माता  का एक छोटा सा पैगाम :- बेटे के नाम

1. जिस दिन तुम हमे बूढ़ा देखो तब सब्र करना और हमे समझने की कोशिश करना.

2. जब हम कोई बात भूल जाए तो हम पर गुस्सा ना करना और अपना बचपन याद करना.

3. जब हम बूढ़े होकर चल ना पाए तो हमारा सहारा बनना और अपना पहला कदम याद करना.

4. जब हम बीमार हो जाए तो वो दिन याद करके हम पर अपने पैसे खर्च करना जब हम तुम्हारी ख्वाहिशे पूरी करने के लिए अपनी ख्वाहिशे कुर्बान करते थे.

5. जब हमारे आँखों मे आँसू देखना तो वह दिन याद करना , जब तुम रोते थे , तो सीने से लगाकर चुप कराते थे ।

6. जब हम ठंड से ठिठुर रहें हो तो , और गुहार लगा रहें हों , तो बिना कोई देर किये हमारे ऊपर रजाई और कम्बल डालना ।वह दिन याद करना जब ठंड के दिनों मे पैरों से रजाई नीचे गिरा देते थे और ठंड लगने पर रोते थे , तो अपने कलेजे लगाकर फिर रजाई ओढाते थे ।

इस खूबसूरत संदेश को ,सभी के साथ ,शेयर करनाऔर अपने अभिभावको का सम्मान
करना.
....

सोमवार, 22 जुलाई 2013

दो भाई

किसी शहर  में  दो  भाई  रहते  थे .  उनमे  से  एक  शहर  का  सबसे  बड़ा  बिजनेसमैन था तो दूसरा एक ड्रग -एडिक्ट  था  जो  अक्सर  नशे  की  हालत  में  लोगों  से  मार -पीट  किया  करता  था .  जब  लोग  इनके  बारे  में  जानते  तो  बहुत  आश्चर्य  करते  कि आखिर  दोनों  में  इतना  अंतर  क्यों  है  जबकि  दोनों  एक  ही  माता-पिता  की  संताने  हैं , एक जैसी शिक्षा प्राप्त  हैं  और  बिलकुल  एक  जैसे  माहौल  में पले -बढे  हैं . कुछ  लोगों  ने  इस  बात  का  पता  लगाने  का  निश्चय  किया  और  शाम  को  भाइयों  के  घर  पहुंचे .
अन्दर घुसते ही उन्हें नशे  में  धुत  एक  व्यक्ति  दिखा  , वे  उसके  पास  गए  और  पूछा , “ भाई तुम  ऐसे  क्यों  हो ??..तुम  बेवजह लोगों  से  लड़ाई -झगडा  करते  हो , नशे  में  धुत  अपने  बीवी -बच्चों  को  पीटते  हो …आखिर  ये  सब  करने  की  वजह  क्या  है ?”
“मेरे  पिता ” , भाई  ने  उत्तर  दिया .
 “पिता !! ….वो  कैसे ?” , लोगों  ने  पूछा
भाई  बोल , “ मेरे  पिता  शराबी   थे , वे  अक्सर  मेरी  माँ  और  हम  दोनों भाइयों को  पीटा  करते  थे …भला  तुम  लोग  मुझसे  और  क्या  उम्मीद  कर  सकते  हो  …मैं  भी  वैसा  ही  हूँ ..”
फिर  वे  लोग दूसरे  भाई  के  पास  गए , वो  अपने  काम  में  व्यस्त  था  और  थोड़ी  देर  बाद  उनसे  मिलने  आया ,
“माफ़  कीजियेगा , मुझे  आने  में  थोड़ी  देर  हो  गयी .” भाई  बोल , “ बताइए  मैं  आपकी  क्या  मदद  कर  सकता  हूँ ? ”
लोगों  ने  इस  भाई  से  भी  वही  प्रश्न  किया , “ आप  इतने  सम्मानित  बिजनेसमैन  हैं , आपकी  हर  जगह  पूछ  है , सभी  आपकी  प्रशंसा  करते  हैं , आखिर  आपकी  इन  उपलब्धियों  की  वजह  क्या  है ?”
“ मेरे  पिता  “, उत्तर  आया .
लोगों  ने  आश्चर्य  से पूछा , “ भला  वो  कैसे ?”
“मेरे  पिता  शराबी  थे , नशे  में  वो  हमें मारा- पीटा करते  थे  मैं  ये  सब चुप -चाप  देखा  करता  था , और  तभी  मैंने  निश्चय कर  लिया  था  की  मैं  ऐसा  बिलकुल नहीं  बनना  चाहता  मुझे  तो  एक  सभ्य  , सम्मानित  और  बड़ा  आदमी  बनना  है , और  मैं  वही  बना .” भाई  ने  अपनी  बात  पूरी  की .

 हमारे साथ  जो कुछ भी  घटता है  उसके  positive और  negative aspects हो सकते हैं . ज़रुरत  इस  बात  की  है  की  हम  positive aspect  पर  concentrate करें  और  वहीँ  से  अपनी  inspiration draw  करें .

बुरी आदत

एक अमीर आदमी अपने बेटे की किसी बुरी आदत से बहुत परेशान था. वह जब भी बेटे से आदत छोड़ने को कहते तो एक ही जवाब मिलता , ” अभी मैं इतना छोटा हूँ..धीरे-धीरे ये आदत छोड़ दूंगा !” पर वह कभी भी आदत छोड़ने का प्रयास नहीं करता.
उन्ही दिनों एक महात्मा गाँव में पधारे हुए थे, जब आदमी को उनकी ख्याति के बारे में पता चला तो वह तुरंत उनके पास पहुँचा और अपनी समस्या बताने लगा. महात्मा जी ने उसकी बात सुनी और कहा , ” ठीक है , आप अपने बेटे को कल सुबह बागीचे में लेकर आइये, वहीँ मैं आपको उपाय बताऊंगा. “
अगले दिन सुबह पिता-पुत्र बागीचे में पहुंचे.
महात्मा जी बेटे से बोले , ” आइये हम दोनों बागीचे की सैर करते हैं.” , और वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे .
चलते-चलते ही महात्मा जी अचानक रुके और बेटे से कहा, ” क्या तुम इस छोटे से पौधे को उखाड़ सकते हो ?”
” जी हाँ, इसमें कौन सी बड़ी बात है .”, और ऐसा कहते हुए बेटे ने आसानी से पौधे को उखाड़ दिया.
फिर वे आगे बढ़ गए और थोड़ी देर बाद महात्मा जी ने थोड़े बड़े पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ” क्या तुम इसे भी उखाड़ सकते हो?”
बेटे को तो मानो इन सब में कितना मजा आ रहा हो, वह तुरंत पौधा उखाड़ने में लग गया. इस बार उसे थोड़ी मेहनत लगी पर काफी प्रयत्न के बाद उसने इसे भी उखाड़ दिया .
वे फिर आगे बढ़ गए और कुछ देर बाद पुनः महात्मा जी ने एक गुडहल के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए बेटे से इसे उखाड़ने के लिए कहा.
बेटे ने पेड़ का ताना पकड़ा और उसे जोर-जोर से खींचने लगा. पर पेड़ तो हिलने का भी नाम नहीं ले रहा था. जब बहुत प्रयास करने के बाद भी पेड़ टस से मस नहीं हुआ तो बेटा बोला , ” अरे ! ये तो बहुत मजबूत है इसे उखाड़ना असंभव है .”
महात्मा जी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा , ” बेटा, ठीक ऐसा ही बुरी आदतों के साथ होता है , जब वे नयी होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, पर वे जैसे जैसे  पुरानी होती जाती हैं इन्हें छोड़ना मुशिकल होता जाता है .”
बेटा उनकी बात समझ गया और उसने मन ही मन आज से ही आदत छोड़ने का निश्चय किया.

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

साक्षात भगवान

साक्षात भगवान

मानव भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूजा कर रहा था । पूजा करते-करते वह बोला -
" हे भगवान,मैं न जाने कितने विधि-विधानों से तुम्हारी पूजा करते आया हूँ पर आज तक जान नहीं पाया हूँ कि किस तरह की पूजा से तुम प्रसन्न होते हो । क्योंकि तुम
अदृश्य हो इसलिए कभी बता नहीं पाते। काश कि तुम साक्षात् होते,प्रत्यक्ष होते तो जरुर बोल पाते कि तुम किस तरह से प्रसन्न होते हो।
अब भगवान बिना बोले न रह सके। बोले -
" पुत्र ! भगवान अदृश्य भी होते हैं और प्रत्यक्ष भी । अगर तुम प्रत्यक्ष भगवान को सुख दोगे तो मैं तुरंत प्रसन्न हो जाऊंगा । तुम्हें किसी भी तरह की पूजा की जरुरत ही
न होगी । "
मानव हर्षित हो बोला -
" हे भगवान ! फिर शीघ्र बताइए प्रत्यक्ष भगवान कहाँ हैं ? मैं उन्हें तुरंत सुख देकर तुम्हें प्रसन्न करना चाहता हूँ ।
भगवान शांत मुस्कान के साथ बोले -
" पुत्र ! साक्षात् भगवान तुम्हारे माता-पिता हैं । तुम उन्हें सुखी रखो,मैं अपनेआप प्रसन्न हो जाऊँगा । फिर तुम्हें किसी भी विधि से पूजा करने की जरुरत नहीं रहेगी ।

रविवार, 7 जुलाई 2013

भारत और इंडिया

भारत में गॉंव है, गली है, चौबारा है.
इंडिया में सिटी है, मॉल है, पंचतारा है.

भारत में घर है, चबूतरा है, दालान है.
इंडिया में फ्लैट और मकान है.

भारत में काका है, बाबा है, दादा है, दादी है. इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है.

भारत में खजूर है, जामुन है, आम है.
इंडिया में मैगी, पिज्जा, माजा का नकली आम है.

भारत में मटके है, दोने है, पत्तल है.
इंडिया में पोलिथीन, वाटर व वाईन की बोटल है.

भारत में गाय है, गोबर है, कंडे है.
इंडिया में सेहतनाशी चिकन बिरयानी अंडे है.

भारत में दूध है, दही है, लस्सी है.
इंडिया में खतरनाक विस्की, कोक, पेप्सी है.

भारत में रसोई है, आँगन है, तुलसी है.
इंडिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है.

भारत में कथडी है, खटिया है, खर्राटे हैं. 
इंडिया में बेड है, डनलप है और करवटें है.

भारत में मंदिर है, मंडप है, पंडाल है.
इंडिया में पब है, डिस्को है, हॉल है.

भारत में गीत है, संगीत है, रिदम है.
इंडिया में डान्स है, पॉप है, आईटम है.

भारत में बुआ है, मौसी है, बहन है.
इंडिया में सब के सब कजन है.

भारत में पीपल है, बरगद है, नीम है.
इंडिया में वाल पर पूरे सीन है.

भारत में आदर है, प्रेम है, सत्कार है.
इंडिया में स्वार्थ, नफरत है, दुत्कार है.

भारत में हजारों भाषा हैं, बोली है.
इंडिया में एक अंग्रेजी एक बडबोली है.

भारत सीधा है, सहज है, सरल है.
इंडिया धूर्त है, चालाक है, कुटिल है.

भारत में संतोष है, सुख है, चैन है.
इंडिया बदहवास, दुखी, बेचैन है.

क्योंकि …
भारत को देवों ने, वीरों ने रचाया है.
इंडिया को लालची, अंग्रेजों ने बसाया है.

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

सपना और अपना

रात के बारह बजे थे। कमरे में पत्नी बीमार पड़ी थी और वो सोचने में मशग़ूल था कि पत्नी के ऑपरेशन के लिए पाँच लाख कहाँ से लाऊँ।
भगवान से हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने लगा ..

अचानक कमरे में भगवान प्रकट हुए,वो भौंचक्का रह गया,कहीं भ्रम तो नहीं ? ख़ुद को चिकोटी काटी। लेकिन सपना नहीं था वह।
मुसकुराते हुए भगवान बोले - "बोलो मनुवा ! क्या चाहिए तुम्हें ?"
वो हड़बड़ाया, क्या माँगूँ ?
"ज़ल्दी कर मनुवा !समय निकला जा रहा है " भगवान फिर बोले।
वो घबरा गया। क्या माँगूँ ? महल, पैसे, गाड़ी ? सोचा पैसे ही माँगूँगा।

यही तो चाहिए ऑपरेशन के लिए, सुखी जीवन के लिए। पर कितना माँगूँ ? दश लाख, पचास लाख, एक करोड़ या दश करोड़ ?...सोचने में समय बहुत तेज़ी से निकल रहा था .

"मेरे पास वक़्त नहीं हैं मनुष्य, जल्दी माँगो !" भगवान बोले।
"दश करोड़ रूपए प्रभु !" उसने एक ही साँस में कहा ।
"तथास्तु !" भगवान चले गए। अचानक दश करोड़ के नोट चारों तरफ़ दिखाई देने लगे।

ख़ुशी से पागल हो उसने पत्नी को उठाने की कोशिश की। लेकिन वह तो ठंडी पड़ गई थी। एक तरफ़ पत्नी की लाश और दूसरी तरफ़ दस करोड़ के नोट।
वो जोर से चिल्लाया - "प्रभु ! मेरी पत्नी को ज़िदा कर दो !" लेकिन भगवान वहाँ नहीं थे। चारों ओर सन्नाटे ओर नोटों के सिवा कुछ न था।

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

nadan bachpan

chalo phir dhoond lete hain
usi nadan bachpan ko
unhi masoom khushiyon ko
unhi rangeen lamhon ko
jahaan ghum ka pata na tha
jahaan dukh ki samjh na thi
jahaan bus muskrahat thi
baharen hi baharen thi
k jub sawan barasta tha
tu us kagaz ki kashti ko
bana ' na aur dabo dena
bohat acha sa lagta tha
aur is duniya ka har chehra
bohat sacha sa lagta tha
chalo phir dhondh lete hain
usi masoom bachpan ko.


बुधवार, 3 जुलाई 2013

प्रतिज्ञा

बचपन से ही मुझे अध्यापिका बनने तथा बच्चों को मारने का बड़ा शौक था। अभी मैं पाँच साल की ही थी कि छोटे-छोटे बच्चों का स्कूल लगा कर बैठ जाती। उन्हें लिखाती पढ़ाती और जब उन्हें कुछ न आता तो खूब मारती।
मैं बड़ी हो कर अध्यापिका बन गई। स्कूल जाने लगी। मैं बहुत प्रसन्न थी कि अब मेरी पढ़ाने और बच्चों को मारने की इच्छा पूरी हो जाएगी। जल्दी ही स्कूल में मैं मारने वाली अध्यापिका के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
एक दिन श्रेणी में एक नया बच्चा आया। मैंने बच्चों को सुलेख लिखने के लिए दिया था। बच्चे लिख रहे थे। अचानक ही मेरा ध्यान एक बच्चे पर गया जो उल्टे हाथ से बड़ा ही गंदा हस्तलेख लिख रहा था। मैंने आव देखा न ताव, झट उसके एक चाँटा रसीद कर दिया। और कहा, "उल्टे हाथ से लिखना तुम्हें किसने सिखाया है और उस पर इतनी गंदी लिखाई!"

इससे पहले कि बच्चा कुछ जवाब दे, मेरा ध्यान उसके सीधे हाथ की ओर गया, जिसे देख कर मैं वहीं खड़ी की खड़ी रह गयी क्यों कि उस बच्चे का दायाँ हाथ था ही नहीं। किसी दुर्घटना में कट गया था।

यह देख कर मेरी आँखों में बरबस ही आँसू आ गए। मैं उस बच्चे के सामने अपना मुँह न उठा सकी। अपनी इस गलती पर मैंने सारी कक्षा के सामने उस बच्चे से माफ़ी माँगी और यह प्रतिज्ञा की कि कभी भी बच्चों को नहीं मारूँगी।
इस घटना ने मुझे ऐसा सबक सिखाया कि मेरा सारा जीवन ही बदल गया

बाके बिहारी

एक व्यक्ति बहुत नास्तिक था उसको भगवान पर विश्वास नहीं था. एक बार उसके साथ दुर्घटना घटित हुई ,वो रोड पर पड़ा पड़ा सब की ओर कातर निगाहों से मदद के लिए देख रहा था, पर कलियुग का इंसान - किसी इंसान की मदद जल्दी नहीं करता, मालूम नहीं क्यों, वो येही सोच कर थक गया | तभी उसके नास्तिक मन ने अनमनेसे प्रभु को गुहार लगाई उसी समय एक ठेलेवाला वह से गुजरा उसने उसको गोद में उठाया और चिकित्सा हेतु ले गया उसने उनके परिवार वालो को फ़ोन किया और अस्पताल बुलाया सभी आये उस व्यक्ति को बहुत धन्यवाद दिया उसके घर का पता भी लिखवा लिया जब यह ठीक हो जायेगा तो आप से मिलने आयेंगे - वो सज्जन सही हो गए कुछ दिन बाद वो अपने परिवार के साथ उस व्यक्ति से मिलने का इरादा बनाते है और निकल पड़ते है मिलने| वो बाके बिहारी का नाम पूछते हुए उस पते पर जाते है उनको वहा पर प्रभु का मंदिर मिलता है, वो अचंभित से उस भवन को देखते है, और उसके अन्दर चले जाते जातेहै | अभी भी वहा पर पुजारी से नाम लेकर पूछते है की यह बाके बिहारी कहा मिलेगा - पुजारी हाथ जोड़ मूर्ति की ओर इशारा कर के कहता है की यहाँ यही एक बाके बिहारी है | खैर वो मंदिर से लौटने लगतेहै तो उनकी निगाह एक बोर्ड पर पड़ती है उसमे एक वाक्य लिखा दिखता है - कि "इंसान ही इंसान के काम आता है, उस से प्रेम करतेरहो मै तो तुम्हे स्वयं मिल जाऊंगा |

शनिवार, 29 जून 2013

meanings of places

meanings of places in english
.1=Large State
"Maha-Rastra"

. 2=Place of Kings
"Raja-Sthan"
.
3=Mr. City
"Shri-Nagar"


. 4=Rhythm of Eyes
"Nayni-Tal"
.
5=Face-"Surat"
.
6=Unmarried Girl. "Kanya-Kumari"
.
7=No Zip.
"Chen-Nai"
.
8=Come in Evening. "Aa-Sam"


9=Go and Come.
"Go-Aa"
.
10=Answer State.
"Uttar-Pradesh" .


11=Make Juice.
"Bana-Ras"
.
12=Do Drama.
"Kar-Natak" .


13=Green Gate.
"Hari-Dwar"
.

कार्य कुशलता

एक लड़की अपनी माँ के पास अपनी परेशानियों काबखान कर रही थी l
वो परीक्षl में फेल हो गई थी l सहेली से झगड़ा हो गया l मनपसंद ड्रेस प्रैस कर रही थी वो जल गई l
रोते हुए बोली, मम्मी ,देखो ना , मेरी जिन्दगी के साथ सब कुछ उलटा -पुल्टा हो रहा है l
माँ ने मुस्कराते हुए कहा, यह उदासी और रोना छोड़ो, चलो मेरे साथ रसोई में , "तुम्हारा मनपसंद केक बनाकर खिलाती हूँ"l
लड़की का रोना बंद हो गया और हंसते हुये बोली,"केक तो मेरी मनपसंद मिठाई है"l
कितनी देर में बनेगा, कन्या ने चहकते हुए पूछा l
माँ ने सबसे पहले मैदे का डिब्बा उठाया और प्यार से कहा, ले पहले मैदा खा ले l
लड़की मुंह बनाते हुए बोली, इसे कोई खाता है भला l
माँ ने फिर मुस्कराते हुये कहा,"तो ले सौ ग्राम चीनी ही खा ले"l
एसेंस और मिल्कमेड का डिब्बा दिखाया और कहा लो इसका भी स्वाद चख लो
"माँ" आज तुम्हें क्या हो गया है? जो मुझे इस तरह की चीजें खाने को दे रही हो ?
माँ ने बड़े प्यार और शांति से जवाब दिया,"बेटा" केक इन सभी बेस्वादी चीजों से ही बनता है और ये सभी मिलकर ही तो केक को स्वादिष्ट बनाती हैं .
मैं तुम्हें सिखाना चाह रही थी कि"जिंदगी का केक" भी इसी प्रकार की बेस्वाद घटनाओं को मिलाकर बनाया जाता है l
फेल हो गई हो तो इसे चुनौती समझो मेहनत करके पास हो जाओ l
सहेली से झगड़ा हो गया है
तो अपना व्यवहार इतना मीठा बनाओ कि फिर कभी किसी से झगड़ा न होl
यदि मानसिक तनाव के कारण "ड्रेस" जल गई तो आगेसे सदा ध्यान रखो कि मन की स्थिति हर परिस्थिति में अच्छी हो l
बिगड़े मन से काम भी तो बिगड़ेंगेl
कार्यों को कुशलता से करने के लिएमन के चिंतनको कुशल बनाना अनिवार्य है !

अनुभव

एक बार दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे. रास्ते में दोनों में कुछ कहासुनी हो गई. बहसबाजी में बात इतनी बढ़ गई की उनमे से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से झापड़ मार दिया. जिस मित्र को झापड़ पड़ा उसे दुःख तो बहुत हुआ किंतु उसने कुछ नहीं कहा वो बस झुका और उसने वहां पड़े बालू पर लिख दिया
"आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे झापड़ मारा "
दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक छोटा सा पानी का तालाब दिखा और उन दोनों ने पानी में उतर कर नहाने का निर्णय कर लिया. जिस मित्र को झापड़ पड़ा था वह दलदल में फँस गया और डूबने लगा किंतु दुसरे मित्र ने उसे बचा लिया. जब वह बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा
"आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई "
जिस मित्र ने उसे झापड़ मारा था और फिर उसकी जान बचाई थी वह काफी सोच में पड़ा रहा और जब उससे रहा न गया तो उसने पूछा
"जब मैंने तुम्हे मारा था तो तुमने बालू में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा.ऐसा क्यों ?"
इस पर दूसरे मित्र ने उत्तर दिया
" जब कोई हमारा दिल दुखाये तो हमें उस अनुभव के बारे में बालू में लिखना चाहिए क्योकि उस चीज को भुला देना ही अच्छा है. क्षमा रुपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा देगी किंतु जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे हम पर उपकार करे तो हमे उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए जिससे कि कोई भी जल्दी उसको मिटा न सके."

गुरुवार, 27 जून 2013

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है ,

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है ,

ना मा, बाप, बहन , ना यहा कोई भाई है .

हर लडकी का है Boy Friend, हर लडके ने Girl Friend पायी है ,

चंद दिनो के है ये रिश्ते , फिर वही रुसवायी है .

घर जाना Home Sickness कहलाता है ,

पर Girl Friend से मिलने को टाईम रोज मिल जाता है .

दो दिन से नही पुछा मां की तबीयत का हाल ,

Girl Friend से पल – पल की खबर पायी है,

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है …..

कभी खुली हवा मे घुमते थे ,

अब AC की आदत लगायी है .

धुप हमसे सहन नही होती ,

हर कोई देता यही दुहाई है .

मेहनत के काम हम करते नही ,

इसीलिये Gym जाने की नौबत आयी है .

McDonalds, PizaaHut जाने लगे,

दाल- रोटी तो मुश्कील से खायी है .

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है …..

Work Relation हमने बडाये ,

पर दोस्तो की संख्या घटायी है .

Professional ने की है तरक्की ,

Social ने मुंह की खायी है.

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है ….

बुधवार, 26 जून 2013

संसार की रीति

एक नगर में एकमशहूर चित्रकार रहता था ।
चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को, जहाँ भी इसमें कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे ।जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर
निशानों से ख़राब हो चुकी थी । यह देख वह बहुत दुखी हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था । तभी उसका एक मित्र
वहाँ से गुजरा उसने उसके दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे ।उसने अगले दिन यही किया ।शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया ।वह संसार की रीति समझ गया।
"कमी निकालना,निंदा करना, बुराई करना आसान, लेकिन उन कमियों को दूर
करना अत्यंत कठिन होता है"

मंगलवार, 4 जून 2013

चार पत्नियाँ

एक व्यापारी था, उसकी चार पत्नियाँ थी . वह
अपनी चौथी पत्नी से बहुत प्रेम करता, उसकी हर
जरूरत
को पूरा करता था और हर काम में उसकी मदद
करता था .
वह अपनी तीसरी पत्नी से भी बहुत प्यार
करता था . और
वह अपनी दूसरी पत्नी की भी हर मांग
को पूरी करता था और उसकी दूसरी पत्नी भी उसके
काम
और कारोबार में उसकी मदद करती थी . वह
अपनी पहली पत्नी से बिल्कुल भी प्रेम
नहीं करता था .
परन्तु उसकी पहली पत्नी उससे बहुत प्रेम
करती थी . एक
दिन व्यापारी बीमार हो गया और वह मरणासन्न
में
पड़ा था . उसने चारों पत्नियों को बुलाया . उसने
अपनी चौथी पत्नी से पूछा –‘क्या तुम मेरी मदद
करोगी और मेरे शरीर को मुक्ति दोगी ?’’तो वह
बोली –
नहीं . मैं दूसरी शादी कर 
लूँगी, परन्तु
तुम्हारी मदद
नहीं करुँगी . वह बहुत नाराज हो जाता है और
इसी प्रकार अपनी तीनों पत्नियों से
पूछता है .
तीसरी पत्नी भी उसकी मदद करने से इंकार कर
देती है .
दूसरी पत्नी भी यही कहकर वहां से
चली जाती है . फिर
वह व्यापारी अपनी पहली पत्नी से पूछने के
योग्य
नहीं रहता वहीं अपने और वहीं अपने कमरे में
लेट जाता है .
कुछ देर बाद उसकी पत्नी वहां आती है और
कहती है –“मैं
तुम्हारी सहायता करूंगी .’’ ऐसा कहकर
वो भी वहां से
चली जाती है . वास्तव में हम्हारे जीवन में
चार
पत्नियों है–चौथी पत्नी है
हमारा शरीर ,क्योंकि जब
हम मर जाते हैं तो हमारा शरीर मिट्टी बन
जाता है .
तीसरी पत्नी है हमारा धन ,शोहरत वो भी हमारे
पास
से चला जाता है जब हम मर जाते है तो वह भी हमसे
छीन
जाती है . दूसरी पत्नी है
हमारी रिश्तेदारी ,घर के लोग ,हमारे
मित्र ,जो हमारा अंतिम संस्कार करने के लिए
हमारा साथ शमशान घाट तक जाते हैं परन्तु
वहां से वापस
आ जाते हैं . पहली पत्नी हमारी आत्मा है
जो हमारे साथ
सदा रहती है . हमारी सदा मदद करती है . परन्तु
हम
कभी भी उसकी मदद नहीं करते . कभी भी उससे
प्रेम
नहीं करते हैं .इसलिए मैं
यही कहना चाहूं
गी  की बाकी तीन
पत्नियों तो सिर्फ
एक खेल के रूप में है परन्तु
पहली पत्नी हमारी आत्मा है ,
जो सदा हमारे साथ रहती . इसलिए हमें सदा उससे
प्रेम
करना चहिये |

‘भगवद् गीता’

एक बार एक युवक अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाला था। उसकी बहुत दिनों से एक शोरूम में रखी स्पोर्टस कार लेने की इच्छा थी। उसनेअपने पिता से कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने पर उपहारस्वरूप वह कार लेने की बात कही क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता उसकी इच्छा पूरी करने में समर्थ हैं।
 कॉलेज के आखिरी दिन उसके पिता ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा कि वे उसे बहुत प्यार करते हैं तथा उन्हें उस पर गर्व है। फिर उन्होंने उसे एक सुंदर कागज़ में लिपटा उपहार दिया । उत्सुकतापूर्वक जब युवक ने उस कागज़ को खोला तो उसे उसमें एक आकर्षक जिल्द वाली ‘भगवद् गीता’ मिली जिसपर उसका नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा था। 
यह देखकर वह युवक आगबबूला हो उठा और अपने पिता से बोला कि इतना पैसा होने पर भी उन्होंने उसे केवल एक ‘भगवद् गीता’ दी। यह कहकर वह गुस्से से गीता वहीं पटककर घर छोड़कर निकल गया।

बहुत वर्ष बीत गए और वह युवक एक सफल व्यवसायी बन गया। उसके पास बहुत धन-दौलत और भरापूरा परिवार था। एक दिन उसने सोचा कि उसके पिता तो अब काफी वृद्ध हो गए होंगे। उसने अपने पिता से मिलने जाने का निश्चय किया क्योंकि उस दिनके बाद से वह उनसे मिलने कभी नहीं गया था। अभीवह अपने पिता से मिलने जाने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक उसे एक तार मिला जिसमें लिखा था कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है और वे अपनी सारी संपत्ति उसके नाम कर गए हैं। उसे तुरंत वहाँ बुलाया गया था जिससे वह सारी संपत्ति संभाल सके।
वह उदासी और पश्चाताप की भावना से भरकर अपने पिता के घर पहुँचा। उसे अपने पिता की महत्वपूर्ण फाइलों में वह ‘भगवद् गीता’ भी मिली जिसे वह वर्षों पहले छोड़कर गया था। उसने भरी आँखों से उसके पन्ने पलटने शुरू किए। तभी उसमें से एक कार की चाबी नीचे गिरी जिसके साथ एक बिल भी था। उस बिल पर उसी शोरूम का नाम लिखा था जिसमें उसने वह स्पोर्टस कार पसंद की थी तथा उस पर उसके घर छोड़कर जाने से पिछले दिन की तिथि भी लिखी थी। उस बिल में लिखा था कि पूरा भुगतान कर दिया गया है।
कई बार हम भगवान की आशीषों और अपनी प्रार्थनाओं के उत्तरों को अनदेखा कर जाते हैं क्योंकि वे उस रूप में हमें प्राप्त नहींहोते जिस रूप में हम उनकी आशा करते हैं।

chemical locha

ना ये "KEMISTRY" होती ना मै "STUDENT" होता
ना वो "LAB" होती ,ना वो "LOV AKSIDENT" होता
तभी "PRAKTIKAL" के वक्त नजर आयी एक लड़की
खूबसूरत उसकी नाक "TEST TYUB" जैसी
उसकी बातों में "GLUKOJ" की मिठास थी
"ETHYL ALKOHOL" सी ठंडी उसकी सांस थी
अँधेरे में वो "रेडियम" की तरह चमकती थी
अब आँख मिली तो REAKSHAN हुआ, लव का PRODUKSHAN हुआ!
फिर तो लगने लगे उसके घर के चक्कर ऐसे
"NUKLEUS" के चारो ओर "ELEKTRON" जैसे
जिस दिन "TEST" का "PERFEKSHAN" था
उस दिन उसके पिताजी से हमारा"INTRODUKSHAN" था
मानों "IGNISHANN TYUB" से "SODIUM" के पीसेस निकल पड़े
वो बोले होश में आओ,पहचानों अपनी औकात
"IRON" कभी मिल नहीं सकता "GOLD" के साथ !
इस तरह तोड़ दिया उन्होंने हमारे अरमानों का"BEAKER"
हम चुप ही रह गए "BENJALDEHYDE" का घूँट पीकर .
अब उनकी यादों के बिना हमारा काम चलता नहीं है
जिंदगी हो गयी अब "UNSACHURATED KARBON" कीतरह ,
बेकार घूमते अब हम आवारा "HYDROGEN" की तरह...!!

सोमवार, 3 जून 2013

कडवा सच;;


पति : फोन आया था । 
कल सुबह मां आ रही है।
उनकी ट्रेन सुबह 4 बजे पहुंच जाएगी ।
पत्नी : अभी 4 माह पहले ही तो तुम्हारी मां यहां से गई हैं।
फिर अचानक कैसे आ रही हैं ? कल रविवार है, मैंने सोचा था,
 कल थोड़ा आराम से उठूंगी, लेकिन तुम्हारी मां को रविवार को ही आना है 
और वह भी सुबह 4 बजे। इतनी सुबह taxi कहां से ..... ?
.
.पति : मेरी... नहीं तुम्हारी मां आ रही है।
पत्नी : अरे वाह... मम्मी ......? ..... 2 माह हो गये उनसे
मिले हुए। 

सुनो ना मेरे पास taxi वाले का नंबर भी है उसे फोन कर लेते हैं 
कल सुबह ठीक टाईम पर आ जाएगा। चलो अच्छा है कल सण्डे है
 बच्चों का स्कूल भी नहीं है वे भी नानी को लेने स्टेशन जा सकेंगे...!

* सच्चा हिरा *



सायंकाल का समय था | सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे | तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई
और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई |

इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान मेरे जैसा लड़का सबको दे |
उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें |

इसपर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग
का भीम कहते हें |

इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे !
मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें |

यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली

तो इतने में दूसरी ओरत ने
कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ
नहीं बोलना चाहती हो” |

इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें |

यह सुनकर चारो स्त्रियों ने
मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी |

तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया | पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें | वह कितना सुरीला गान गा रहा हें |” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया |

अब दूर जाने पर एक
बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ | “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें |” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया |

तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें |” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया |

तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र
था |

वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और गाव कि और निकल पढ़ा |

यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई | मानो उनको साप सुंघ गया हो | वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”

“ सबसे पहला और सबसे बड़ा ज्ञान संस्कार का होता हें जो किसे और से नहीं बल्कि स्वयं हमारे माता-पिता से प्राप्त होता हें | फिर भले ही हमारे माता-पिता शिक्षित हो या ना हो यह ज्ञान उनके अलावा दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता हें

रविवार, 2 जून 2013

जगह

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान
पर चला गया ।वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग सेदबा कर रख देते हैं। फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसनेइसी क्रिया को चार-पाँच बार देखातो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा नेकहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।
उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुईको टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं ।”

गुरुवार, 30 मई 2013

माँ बाप का क़र्ज़

एक बेटा पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन गया । पिता के
स्वर्गवास के बाद माँ ने हर तरह का काम करके उसे इस काबिल
बना दिया था । शादी के बाद पत्नी को माँ से शिकायत रहने
लगी के वो उन के स्टेटस मे फिट नहीं है । लोगों को बताने मे उन्हें
संकोच होता की
ये अनपढ़ उनकी सास-माँ है । बात बढ़ने पर बेटे ने
एक दिन माँ से कहा-
" माँ ”_मै चाहता हूँ कि मै अब इस काबिल हो गया हूँ कि कोई
भी क़र्ज़ अदा कर सकता हूँ । मै और तुम
दोनों सुखी रहें इसलिए आज तुम मुझ पर किये गए अब तक के सारे
खर्च सूद और व्याज के साथ मिला कर बता दो । मै वो अदा कर
दूंगा । फिर हम अलग-अलग सुखी रहेंगे ।
माँ ने सोच कर उत्तर दिया -
"बेटा”_हिसाब ज़रा लम्बा है ,सोच कर बताना पडेगा।मुझे
थोडा वक्त चाहिए ।"
बेटे ना कहा - " माँ _कोई ज़ल्दी नहीं है । दो-चार दिनों मे बात
देना ।"
रात हुई, सब सो गए । माँ ने एक लोटे मे पानी लिया और बेटे के
कमरे मे आई । बेटा जहाँ सो रहा था उसके एक ओर पानी डाल
दिया । बेटे ने करवट ले ली । माँ ने दूसरी ओर भी पानी डाल
दिया। बेटे ने जिस ओर भी करवट ली_माँ उसी ओर
पानी डालती रही तब परेशान होकर बेटा उठ कर खीज कर
बोला कि माँ ये क्या है ? मेरे पूरे बिस्तर को पानी-पानी क्यूँ कर
डाला...?
माँ बोली-
" बेटा, तुने मुझसे पूरी ज़िन्दगी का हिसाब बनानें को कहा था । मै
अभी ये हिसाब लगा रही थी कि मैंने कितनी रातें तेरे बचपन मे तेरे
बिस्तर गीला कर देने से जागते हुए काटीं हैं । ये तो पहली रात है
ओर तू अभी से घबरा गया ...? मैंने अभी हिसाब तो शुरू
भी नहीं किया है जिसे तू अदा कर पाए।"
माँ कि इस बात ने बेटे के ह्रदय को झगझोड़ के रख दिया । फिर
वो रात उसने सोचने मे ही गुज़ार दी । उसे ये अहसास
हो गया था कि माँ का क़र्ज़ आजीवन नहीं उतरा जा सकता ।
माँ अगर शीतल छाया है पिता बरगद है जिसके नीचे बेटा उन्मुक्त
भाव से जीवन बिताता है । माता अगर अपनी संतान के लिए हर
दुःख उठाने को तैयार रहती है तो पिता सारे जीवन उन्हें
पीता ही रहता है ।
माँ बाप का क़र्ज़ कभी अदा नहीं किया जा सकता । हम तो बस
उनके किये गए कार्यों को आगे बढ़ा कर अपने हित मे काम कर रहे हैं

बुधवार, 29 मई 2013

प्यार का असर

एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया| महिला अकेली थी, चोर ने छुरा दिखाकर कहा - "अगर तू शोर मचाएगी तो मैं तुझे मार डालूंगा|"

महिला बड़ी भली थी वह बोली - "मैं शोर क्यों मचाऊंगी! तुमको मुझसे ज्यादा चीजों की जरूरत है| आओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगी|"

उसके बाद उसने अलमारी का ताला खोल दिया और एक-एक कीमती चीज उसके सामने रखने लगी| चोर हक्का-बक्का होकर उसकी ओर देखने लगा| स्त्री ने कहा - "तुम्हें जो-जो चाहिए खुशी से ले जाओ, ये चीजें तुम्हारे काम आएंगी| मेरे पास तो बेकार पड़ी हैं|"

थोड़ी देर में वह महिला देखती क्या है कि चोर की आंखों से आंसू टपक रहे हैं और वह बिना कुछ लिए चला गया| अगले दिन उस महिला को एक चिट्ठी मिली| उस चिट्ठी में लिखा था --

'मुझे घृणा से डर नहीं लगता| कोई गालियां देता है तो उसका भी मुझ पर कोई असर नहीं होता| उन्हें सहते-सहते मेरा दिल पत्थर-सा हो गया है, पर मेरी प्यारी बहन, प्यार से मेरा दिल मोम हो जाता है| तुमने मुझ पर प्यार बरसाया| मैं उसे कभी नहीं भूल सकूंगा|'

सोमवार, 27 मई 2013

भगवान का अर्थ:

** देवताओं के नाम के आगे लार्ड शब्द (Lord
Word) का प्रयोग बंद करो**
कभी सोचा है लार्ड (अँग्रेज़ी शब्द) और भगवान
(हिन्दी शब्द) में क्या अंतर है?
कभी सोचा है आखिर अग्रेजों ने हिन्दू धर्म के
देवताओं के नाम के आगे भगवान के बाजय लार्ड
अँग्रेज़ी शब्द (Lord English Word)
को प्रयोग क्यों किया ?
हिन्दी शब्द भगवान का अर्थ:
भ - भूमि, ग- गगन, व- वायु, आ- अग्नि, न-
नीर
... मैकाले की संस्कार विहीन शिक्षापद्दती देश
के विकास में बाधक है। शिक्षा व्यवस्था में
संस्कारों का अभाव तथा इतिहासको तोड़-
मरोड़कर पेश करने के कारण ही देश
का युवा अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से विमुख
होकर पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण
को विवश है। अंग्रेज़ चले गये पर उनके
मानसपुत्रों की कमी नहीं है। भारत में, भारतीय
संसद के सभी सदस्यों के लिए, चाहेवे लोक
सभा के सदस्य हों या राज्यसभा के, सांसद
शब्द का प्रयोग किया जाता है।
॥ यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), हाउस ऑफ़ लार्ड्स
के सदस्य 'लार्ड्स ऑफ़ पार्लियामेंट' कहे जाते
हैं। इंग्लैंड सरकार की ओर से लॉर्ड एक
उपाधि है॥
लॉर्ड की उपाधि प्राप्त भारत के वाइसरॉय एवं
गवर्नर जनरल:
• लॉर्ड विलियम बैन्टिक, भारत के गवर्नर
जनरल(1833–1858)
• लॉर्ड ऑकलैंड
• लॉर्ड ऐलनबरो
• लॉर्ड डलहौज़ी
• लॉर्ड कैनिंग, भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर-
जनरल (1858–1947)
• लॉर्ड कैनिंग
• लॉर्ड मेयो
• लॉर्ड नैपियर
• लॉर्ड नॉर्थब्रूक
• लॉर्ड लिट्टन
• लॉर्ड रिप्पन
• लॉर्ड डफरिन
• लॉर्ड लैंस्डाउन
• लॉर्ड कर्जन
• लॉर्ड ऐम्प्थिल
• लॉर्ड मिंटो
• लॉर्ड हार्डिंग
• लॉर्ड चेम्स्फोर्ड
• लॉर्ड रीडिंग
• लॉर्ड इर्विन
• लॉर्ड विलिंग्डन
• लॉर्ड माउंटबैटन
इनको अभी भी हमारे इतिहास में लॉर्ड नाम से
ही पढ़ाया जाता है औरलॉर्ड शब्द का इस्तेमाल
देवताओंके नाम आगे भी किया जाता है।
• लार्ड कृष्णा(Lord Krishna)
• लार्ड रामा (Lord Rama)
• लार्ड गणेशा (Lord Ganesha)
• लार्ड शिवा (Lord Shiva)
• लार्ड ब्रह्मा (Lord Brahma)
• लार्ड विष्णु (Lord Vishnu)
अब क्या देवताओं के नाम के आगेलॉर्ड
लगाना न्यायोचित है ?
जहाँ एक ओर भारतीय संस्कृति का पूरे विश्व मैं
बोल बाला था और इसके लिए भारत
की पूरी दुनिया मैं एक अलग पहचान है, वहीँ कुछ
गैर ज़िम्मेदार लोग इस संस्कृतिको धूमिल करने
पर तुले हुए हैं।
जागो भारतीय जागो !! जय हिन्द, जय भारत !
वन्दे मातरम !

शनिवार, 25 मई 2013

परमात्मा और किसान


एक बार एक  किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक  दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम  दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप  चाही ,तब धूप  मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई  थी !  किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया!  गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी,  बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु  ये  क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था  ,तुमने पौधों  को संघर्ष का ज़रा  सा  भी मौका नहीं दिया . ना तेज  धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको  किसी प्रकार की चुनौती  का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी  से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती  ना हो तो आदमी खोखला  ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ  ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ  तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे.  अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !