रविवार, 12 जनवरी 2025

*हकीकत*

 एक कमरा था

जिसमें मैं रहता था

माँ-बाप के संग


घर बड़ा था

इसलिए इस कमी को

पूरा करने के लिए

मेहमान बुला लेते थे हम.


फिर समृद्धि का फैलाव आया 

समृद्धि उस कमरे में नहीं समा पाई


जो चादर पूरे परिवार के लिए बड़ी पड़ती थी

उस चादर से बड़े हो गए हमारे हर एक के पाँव


लोग झूठ कहते हैं कि दीवारों में दरारें पड़ती हैं

हक़ीक़त यही कि जब दरारें पड़ती हैं

तब दीवारें बनती हैं .


पहले हम सब लोग दीवारों के बीच में रहते थे

अब हमारे बीच में दीवारें आ गईं

यह समृध्दि मुझे पता नहीं कहाँ पहुँचा गई


पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था

अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं


फिर हमने बना लिया एक मकान

एक कमरा अपने लिए

एक-एक कमरा बच्चों के लिए


एक वो छोटा-सा ड्राइंगरूम

उन लोगों के लिए

जो मेरे आगे हाथ जोड़ते थे


एक वो अन्दर बड़ा-सा ड्राइंगरूम

उन लोगों के लिए

जिनके आगे मैं हाथ जोड़ता हूँ


पहले मैं फुसफुसाता था तो

घर के लोग जाग जाते थे

मैं करवट भी बदलता था तो

घर के लोग सो नहीं पाते थे


और अब,

जिन दरारों की वहज से दीवारें बनी थीं

उन दीवारों में भी दरारें पड़ गई हैं।


अब मैं चीख़ता हूँ तो

साथ वाले कमरे से

ठहाके की आवाज़ सुनाई देती है


और मैं सोच नहीं पाता हूँ कि

मेरी चीख़ की वजह से वहाँ ठहाके लग रहे हैं

या उन ठहाकों की वजह से मैं चीख रहा हूँ !


आदमी पहुँच गया है चांद तक

पहुँचना चाहता है मंगल तक

पर नहीं पहुँच पाता सगे भाई के दरवाज़े तक


अब हमारा पता तो एक रहता है

पर हमें एक-दूसरे का पता नहीं रहता


और आज मैं सोचता हूँ

जिस समृध्दि की ऊँचाई पर मैं बैठा हूँ

उसके लिए मैंने कितनी बड़ी खोदी हैं खाइयाँ


अब मुझे अपने बाप की बेटी से

अपनी बेटी अच्छी लगती है

अब मुझे अपने बाप के बेटे से

अपना बेटा अच्छा लगता है


पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था

अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं

अब मेरा बेटा भी कमा रहा है

कल मुझे उसके साथ रहना पड़ेगा


और हक़ीक़त यही है की

तमाचा मैंने मारा है

तमाचा मुझे खाना भी पड़ेगा..