शुक्रवार, 28 जून 2024

*सत्तर साल की मां*

 अपनी सत्तर बरस की मां को देखकर,

क्या सोचा है तुमने कभी,

कि वो भी कालेज में टाईट कुर्ती 

और स्लैक्स पहन कर जाया करती थी।


तुम सोच नहीं सकते कि

तुम्हारी माँ जब अपने घर के आँगन में

छमछम कर चहकती हुई ऊधम मचाती

दौड़ा करती तो घर का कोना-कोना 

उस आवाज़ से गुलज़ार हो उठता था


तुम नहीं सोच सकते कि 

'ट्विस्ट' डांस वाली प्रतियोगिता में,

जीते थे उन्होंने अनेकों बार प्रथम पुरुस्कार।


तुम यह भी सोच नहीं सकते कि

किशोरावस्था में वो जब भी कभी

अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे 

छत पर फैली गुनगुनी धूप में सुखाने जाया करती,

तो न जाने कितनी ही पतंगें 

आसमान में कटने लगा करती थी।


क्या सोचा है तुमने कभी कि 

अट्ठारह बरस की मां ने

तुम्हारे बीस बरस के पिता को 

जब वरमाला पहनाई तो मारे लाज से 

दुहरी होकर गठरी बन, उन्होंने अपने वर को 

नज़र उठाकर भी नहीं देखा था।


तुमने तो ये भी नहीं सोचा होगा कि 

तुम्हारे आने की दस्तक देती उस

प्रसव पीड़ा के उठने पर अस्पताल जाने से पहले 

उन्होंने माँग कर बेसन की खट्टी सब्जी खाई थी।


तुम सोच सकते हो क्या कि कभी,

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि

'तुम्हें ही ' मानकर , 

अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियां 

जिस संदूक के अखबार के कागज़ के नीचे रख 

एकबार तालाबंद की थी, उस संदूक की चाबी 

आजतक उन्होंने नहीं ढूंढी।


और तुम उनके झुर्रीदार कांपते हाथों, क्षीण याद्दाश्त, मद्धम नजर और झुकी कमर को देख, 

उनसे कतराकर ,

खुद पर इतराते हो ?

ये बरसों का सफर है !

तुम सोच सकते भी नहीं !


(जैसे मोबाइल में हुई कुछ प्राब्लम पूछने पर चुटकियों में सुलझाता मेरा बेटा नहीं सोच सकता कि उसकी मां ने अपने कालेज के दिनों में तब प्रसिद्ध कंप्यूटर गेम 'प्रिंस आफ पर्शिया' के सारे लैवल क्लीयर कर प्रिंसैस को हासिल किया था ! और भी बहुत कुछ ऐसा है जो आने वाली पीढ़ियां बीती पीढ़ियों के विषय में शायद कभी सोच नहीं पाएंगीं !)


त‌ो जब भी खुद के रुतबे पर जब कभी गुरूर होने लगे

तब देखना अपनी मां की कोई बरसों बरस पुरानी फोटो और उतरना उनकी आंखों की गहराई में, पढ़ना उनके चेहरे की लिखावट, निहारना उनके व्यक्तित्व की लिखावट, तौलना उनके हौसलों की सुगबुगाहट।

तुम पाओगे कि आज तुम उनका दस प्रतिशत भी नहीं हो।


*मेरा यह  आर्टिकल हर माँ को समर्पित है*


*अनदेखा बहुमूल्य सहयोग*

 मम्मी यार …अपने आप को एक बार तो आईने के सामने देख लिया करो, आप तो रहने ही दो, मैं पीटीएम में पापा को लेकर चली जाऊंगी! पता है मम्मी.. मेरी सभी दोस्तों की मम्मी इतनी टिप टॉप अप टू डेट रहती हैं एक आप हो .. पता नहीं कैसे रहती हो, अब तो आपके साथ जाने में भी मुझे शर्म सी आती है!

जब मेरे दोस्त मुझसे पूछते हैं नेहा… क्या यह तुम्हारी मम्मी है तो मुझे अपने आप पर बहुत शर्म महसूस होती है, इसलिए प्लीज मम्मी आप तो घर में ही काम किया करो !कुछ ही समय बाद बेटा विपुल भी कॉलेज से आया और आते ही बरस पड़ा.. मम्मी आपको बिल्कुल भी  सलीका है या नहीं, आज आपने फिर से मेरे बैग में अचार और पराठे का टिफिन रख दिया,

मम्मी 18 साल का हो गया हूं, तथा अचार की खुशबू से मेरे सभी दोस्तों के सामने मुझे कितना शर्मिंदा होना पड़ा। मेरा कोई भी दोस्त बच्चों की तरह टिफिन लेकर कॉलेज नहीं आता, आपको कितनी भी समझा लो आपको तो कोई बात समझ में ही नहीं आती!  मेरे काम में आगे से आप हस्तक्षेप मत किया करो, मेरे सभी दोस्तों की मम्मी देखो, क्या फर्राटेदार इंग्लिश बोलती हैं,

गाड़ियां चलती हैं, और बिल्कुल आधुनिकता से जीती हैं और एक आप हो.. अपने दोस्तों की मम्मी के साथ में उनसे मिलवाने में शर्म आती है आपको! नेहा और विपुल की बात सुनकर आरती एकदम सन्न  रह गई! उसने तो कभी सपनों में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी, आज उनके बच्चों को अपनी मम्मी से ही शर्म आ रही है! बस अब और नहीं सहा गया आरती से, बच्चे बड़े हो गए तो क्या हुआ, क्या उन्हें हक मिल गया

अपनी मम्मी की आए दिन बेइज्जती करने का, तब आरती ने भी उनको जोरदार सुना दिया ..हां मैं गवार हूं, मुझे नहीं आती इंग्लिश, न हीं मुझे आधुनिकता के साथ रहना आता है, जब मैं शादी करके इस घर में आई थी मेरी अच्छी सरकारी टीचर की नौकरी थी, किंतु तब तुम्हारे पापा और दादी ने कहा..

कि तुम अगर नौकरी करोगी तो तुम्हारे दादा दादी को कौन संभालेगा? मैंने नौकरी छोड़ दी! कुछ समय पश्चात जब दोबारा नौकरी करने की सोची तब तक विपुल मेरी गोद में आ चुका था और उसके कुछ समय बाद नेहा! और फिर तुम दोनों की जिम्मेदारियां में मैं ऐसी पिसती चली गई कि मैं अपने बारे में तो सोचना ही भूल गई,

तुम्हारे पापा ने कहा.. अगर तुम भी नौकरी करने लगोगी तो बच्चों की परवरिश कैसे होगी? बच्चों को सही दिशा कैसे मिलेगी?  फिर नौकरी के बारे में नहीं सोचा! मुझे क्या पता था कि मेरी शिक्षा या परवरिश ही आज यह रंग दिखाएगी? अरे.. मैंने तो तुम्हारी वजह से अपनी सारी खुशियां, सारी दुनिया सब छोड़ दी,

जैसा तुम लोगों को पसंद था सिर्फ वही करती रही, और जिसका सिला मुझे इस रूप में दे रहे हो! विपुल तुम्हें याद है, तुम कितना बीमार रहते थे? तुम्हें ले लेकर हम जाने कितने ही अस्पतालों के चक्कर काटते थे और फिर डॉक्टर ने कहा था कि तुम्हारे हाथ पांव में बहुत कमजोरी है तो सिर्फ मैंने.. तरह-तरह की तुम्हारी मालिश से तुमको इस लायक बनाया है, ताकि आज तुम अपनी बाइक चला सको, और नेहा तुम्हें मैंने घर पर ही इतना पढ़ाया था कि आज तुम हर कक्षा में अब्बल आती हो,

मैं तुमको यह सब सुनाना नहीं चाहती थी, नाही मैं तुमसे इस तरह की बातें सुनना चाहती हूं! अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे काम में हस्तक्षेप करती हूं या तुम्हें मेरे साथ आने-जाने में शर्म आती है तो ठीक है.. आज से तुम दोनों आजाद हो, मैं तो मैं ही पागल थी.. मेरे बच्चे, मेरे बच्चे करके रात दिन तुम्हारी चिंता में घुली जा रही हूं, तुम जब भी दोनों बहन भाई स्कूल कॉलेज से घर आते हो तुम्हारे लिए बैठी रहती हूं

कि ताकि तुम्हें गर्म खाना मिल सके, तुम्हें रखा हुआ ठंडा खाना नहीं खाना पड़े, तुम्हारे बैग में टिफिन इसलिए रखती हूं कि कहीं रोज-रोज बाहर का खाना खाने से तुम्हारी सेहत पर कोई विपरीत असर न पड़े, अरे ..मुझे क्या बल्कि अगर तुम लोग बाहर खाना खाओगे तो  मेरी तो मेहनत बचेगी ही! मैं क्यों दिन-रात रसोई में तुम्हारे लिए लगी रहती हूं!

कभी तुम्हें घर की पसंद की चीज बनाकर खिलाती हूं, कभी लड्डू , कभी क्या, चीज बनाती हूं, मैं गवार हूं इसलिए,… शायद पढ़ी-लिखी  नौकरी वाली मम्मी यह सब नहीं करती होगी, हां मुझे कार चलाना चलना भी नहीं आता, किंतु मैं घर के सारे काम खुद जाकर करती हूं, और नेहा जब तुम्हारी मैडम तुमसे कहती है कि तुम्हें पढ़ाई में कौन मदद करता है तो वह मैं हूं,

जो आज तुम इस लायक हो वह सिर्फ मेरी वजह से हो और तुम मुझे इतना जलील कर रहे हो! अरे मैंने तो इस परिवार और तुम्हारे पीछे अपनी जिंदगी के खुशनुमा पल इस घर की चार दिवारी में बर्बाद कर दिए !मैं भी चाहती तो तुम्हें किसी आया के भरोसे छोड़कर नौकरी पर जाती और मैं भी तुम्हारे दोस्तों की मम्मी की तरह होती,

पर गलती मेरी थी जो मैंने तुम्हारे बारे में, सिर्फ तुम्हारी सुख सुविधा और इस परिवार के बारे में इतना सोचा! मुझसे गलती हुई है! इसलिए मेरे प्यारे बच्चों.. हो सके तो अपनी मम्मी को माफ कर देना, तब दोनों बच्चों को महसूस हुआ कि उनकी हर कामयाबी के पीछे आज तक उनकी मम्मी का उनके द्वारा अनदेखा सहयोग ही था!

दोनों अपनी मम्मी से अपने किए पर माफी मांगने लगे, मम्मी आपने आज तक हमारे लिए इतना सब कुछ किया है बस लास्ट बार आप हमारे लिए, हमें माफ कर दो! आइंदा हम कभी भी ऐसा ना कहेंगे ना सोचेंगे, बाहर से सब कुछ देख रहे उनके पापा अपने बच्चों की माफी मांगने की हरकत पर मुस्कुरा रहे थे ,और इशारों ही इशारों में आरती से भी उन्हें माफ करने के लिए कह रहे थे।

# बच्चों और परिवार के पीछे वह खुद को भूल गई!

मंगलवार, 18 जून 2024

*घर-परिवार की रौनक*

 पूरे परिवार को एकसूत्र में 

पिरोकर रखने वाली 

सबकी चिंता और परवाह करने में मगन 

खुद के प्रति बेपरवाह रहने वाली , 

सबकी गल्तियों पर अपनी खट्टी-मीठी झिड़कियों से नसीहत देने वाली, 

राजा, चाँद और परियों की कहानियां सुनाकर 

सबको प्रेरणा देने वाली, 

मीठी लोरी गुनगुनाकर सपनों की दुनिया की

सैर करवाकर सुख की नींद सुलाने वाली ,

सादा खाने में अपने हाथों के जादू से 

स्वाद का तड़का लगाने वाली, 

रसोई-चौके में कुछ सामान न होते हुए भी, 

झट से बढिया पकवान बना डालने वाली , 

अपने हाथों के स्पर्श से पुराने सामान को 

एकदम नया सा रूप देने वाली, 

आर्थिक संकट से जूझते परिवार पर 

बरसों बरस‌ से अपने पास सहेज कर रखी गई 

बचत जमा मिनटभर में न्यौछावर कर देने वाली , 

हर अपने-पराए को हंस कर गले लगाने वाली  समझ ही गए होंगे आप भी,

ये दादी-नानी मां हर घर-परिवार की रौनक होती हैं !


लेकिन न जाने क्यों आजकल परिवार की यही रौनक अब परिवारों से दूर होकर एकाकी जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं और बच्चे इनके अस्तित्व से अंजान एक अलग ही दुनिया में पल-बढ़ रहे हैं जहां मानवीय मूल्य और संवेदनाएं लगभग लुप्त हो चुकी हैं .


कारण , एकल परिवारों का चलन और रिश्तों से अधिक पैसों को अहमियत देने वाली एक ऐसी पीढ़ी जिनके लिए ये रौनक केवल एक बोझ से बढ़कर कुछ नहीं .


लेकिन ऐसे लोगों को मैं केवल बदकिस्मत ही कह सकती हूं क्योंकि वे नहीं जानते कि उन्होंने जिसे बोझ समझ खुद से अलग कर दिया है , असल में खुद का ही नुकसान किया है .


वो उस दैवीय आशीर्वाद से वंचित रह गए हैं जो इनकी उपस्थिति मात्र से ही पूरे परिवार को हर बुरी नज़र और आपदा से बचाने की शक्ति समेटे होता है 

और इतना ही नहीं, जो लोग सोचते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ अब उनके बुजुर्गों के अनुभव व सोच भी बूढ़े हो गए हैं तो उन्हें जान लेना चाहिए कि घर की सबसे बुजुर्ग सदस्या जिसे अक्सर एक अवांछित बोझ की तरह समझा जाता है , मैंने पाया है कि उनके पास परिवार चलाने के लिए बिल्कुल एक मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ से अधिक अनुभव और कौशल होता है . इनके रहते परिवार की आर्थिक स्थिति और तमाम रिश्तों की जमा पूंजी हमेशा लाभ में ही रहती है .

इनके पास कठिन से कठिन परिस्थितियों से निपटने की अचूक क्षमता होती है .

बच्चे बीमार पड़ जाएं और महंगे डाक्टर और दवाइयों से भी सुधार न आ रहा हो तो इनके प्यार और ममता भरे स्पर्श मात्र से ही बच्चे आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो फिर से चहक कर खिलखिला उठते हैं .

यह सब कोरी कल्पना नहीं है. मैंने इन दादी-नानी मांओं में देखी है वह ईश्वरीय शक्ति जो हर पल परिवार के साथ रहती है.

तो अभी भी वक्त है, अपने घर में देवी देवताओं को अवश्य पूजिए लेकिन घर को नानी-दादी मांओं के के रूप में मिले दैवीय आशीर्वादों से भी गुलज़ार कीजिए .

और वैसे भी वो फिर 'मां' तो हैं ही.

हां लेकिन आज भी सच में वो परिवार भाग्यवान हैं जहां इनकी रौनकों से घर चहक रहा है.

"उस घर से सुख, रौनकें और खुशहाली कभी नहीं जाती,

जहां दादी-नानी मां की खिलखिलाती हंसी और डांट की बौछार है आती !"