सोमवार, 23 दिसंबर 2024

*----- इच्छा -----*

 सुबह  चाय  पीते  व्यक्त, पति,मुस्कुराता हुआ अपने मोबाइल पर फटाफट उँगलियां दौड़ा रहा था! उसकी पत्नी बहुत देर से उसके पास बैठी खामोशी से देख रही थी, जो उसकी रोज़ की आदत हो गई थी और जब भी कोई बात अपने पति से करती तो जवाब ‘हाँ’ ‘हूँ’ में ही होता या नपे-तुले शब्दों में!

“किससे चैटिंग कर रहे हो?”

“फेसबुक फ्रेंड से।”

“मिले हो कभी अपने इस फ़्रेण्ड से?”

“नहीं”

“फिर भी इतने मुस्कुराते हुए चैटिंग करते हो?”

“और क्या करूँ बताओ?”

“कुछ नहीं, फेसबुक पे आपकी महिला मित्र भी बहुत -सी होंगी ना?”

“हूँ”

उँगलियों को हल्का -सा विराम दे मुस्कुराते हुए पति ने हुंकार भरी!

“उनसे भी यूहीं मुस्कुराते हुए चैटिंग करते हो, क्या आप सभी को भली-भांति जानते हो?”

पत्नी ने मासूमियत भरा प्रश्न पर प्रश्न किया!

“भली-भांति तो नहीं मगर रोजाना चैटिंग होते-होते बहुत कुछ हम आपस में एक दूसरे को जानने लगते हैं और बातें ऐसी होने लगती हैं कि मानो बरसों से जानते हो और मुस्कुराहट होठों पे आ ही जाती है, अपने -से लगने लग जाते हैं फिर ये!”

“हूँ और पास बैठे पराये -से!” पत्नी हुंकार सी भरने के बाद बुदबुदाई!

“अभी मजे़दार टॉपिक चल रहा है हमारे ग्रुप में! अरे, अभी तुमने क्या कहा था, ध्यान नहीं दे पाया! बोलो ना फिर से, अरे, यार किस सोच डूब गईं।”

पति मुस्कुराता हुआ तेज़ी से मोबाइल पर अपनी उँगलियाँ चलाता। हुआ एक नज़र पत्नी पे डाल के बोला!

“किसी सोच में नहीं! सुनो, बस मेरी एक इच्छा पूरी करोगो?”

पत्नी टकटकी लगाए बोली!

“क्या अब तक तुम्हारी कोई अधूरी इच्छा रखी है मैंने? खैर,चलो बोलो ,बताओ क्या चाहिए?”

“मेरा मतलब ये नहीं था, मेरी हर इच्छाएँ आपने पूरी की हैं मगर ये बहुत ही अहम है!”

“ऐसी बात तो बोलो क्या इच्छा?”

“एंड्रॉयड मोबाइल”

“मोबाइल! बस इनती- सी बात, ओके डन! मगर क्या करोगी बताना चाहोगी?” पति चौकता बोला!

पत्नी ने भीगी पलकों से ,प्रत्युत्तर दिया! “और कुछ नहीं, चैटिंग के ज़रिये आप मुझसे भी खुलकर बातें तो करोगे!”

पति  खामोश  निगाहों  से  उसे  देखता  रह गया, पर जवाब  में उसके पास  कोई  शब्द नहीं था, 

  हमारा  जीवन,  आजकल,  बिना मोबाइल  के  ,हम सोच भी नहीं सकते परंतु,  इसके साथ हमें  परिवार वालों को  कितना व्यक्त देना होगा, ये भी सोचा जाना  चाहिए, डिजिटल रिश्तों में कितना  व्यक्त बिताना  चाहिए, इसकी भी सीमा तय होना चाहिए तभी रिश्तों में प्यार और सम्मान बना  रहेगा।



                Anitasukhwal 

रविवार, 15 दिसंबर 2024

नई पीढी


 मैं बैंगलोर गयी बेटे पास ! हवाई जहाज से उतरते ही मैंने बेटा को फोन किया कि आ गयी हूं, कहां हो? मम्मी, मैं ऑफिस में हूं , आपके कैब बुक किया है , एयरपोर्ट के बाहर होगा ।जाकर बैठ जाईये ,घर का पता कैब वाले को दिया हुआ है वो घर तक आपको पहुंचा देगा।

मैं टैक्सी में बैठ गयी, और बेटे के घर पहुंची, और घर का ताला खोल दाखिल हुई। ड्राइंगरूम में सोफे पे पसर गयी थक गयी थी , थोङी देर में कालबेल बजी। दरवाजे पे डिलीवरी बाॅय खङा था कुछ खाने के पैकेट लिए।

पैकेट लिया ही था कि बेटे आकाश का फोन आया__ मम्मी आपका लंच भिजवाया है ,खा लीजिए और आराम करिए, शाम को मिलता हूं आपसे! खाना खाकर सो गयी मैं, बहुत थक  चुकी थी,व सुबह चार बजे ही पटना से बैंगलोर की फ्लाइट पकङने के लिए रात दो बजे से ही जगी हुई थी।  लेटते हीगहरी नींद आ गई थी।बेटे की आवाज आई, मम्मी ! कैैसी हो आप? हाल चाल लेता रहा, और बार बार मोबाइल पर भी ध्यान दे रहा था ।आकाश बहुत खुश था क्योंकि  मम्मी पहली बार, उसके यहाँ बैंगलोर आई थी।

दूसरे दिन सुबह उठी, तो चाय की तलब हुई, आदत थी मुझे सुबह सुबह उठकर चाय पीने की!।। पूछा कि किचन में दूध- चायपती है , चाय बना लेती  हूं।हंसकर आकाश बोला; मम्मी मैं चाय कहां पीता हूं? सोफा पे लेटे हुए मोबाइल पर उसकी उँगली तेजी से घूम रही थी। मैं चुपचाप बैठ गई , क्या करू! यहां का ,कुछ आइडिया भी नहीं ,कि बाहर जाकर चाय पी ले।खैर!अभी इसी उधेङबुन में थी, कि दरवाजे की घंटी बजी ।बेटा बोला , देखो न  मम्मी कौन है? बिचारा बेटा नींद में था और मेरे  आने से, जल्दी उठ गया था।दरवाजे पर गर्मा-गर्म चाय के साथ इडली सांभर बङा का पैकेट लेकर डिलीवरी बाॅय खङा था ।फिर हमदोनों ने नाश्ता किया ।बेटा बोला , कुछ भी जरूरत है, आप मोबाइल से ऑडर कर मंगा  सकतह हो ।आपको चाय पीने की आदत है , मै जानता था , इसलिए मंगा दिया। अपने बेटे की नवीनतम तकनीकी सुविधाजनक मोबाइल फोन ने मुझे अपनी पीढी की याद दिलाई, कि जब पापा ऑफिस से आते तो दौङकर हम सब भाई बहन, उनकी खातिर दारी में लग जाते थे ।कोई दौङकर पानी लाता,कोई नाश्ता देता, कोई जूठा बर्तन उठाता था, हमारे बीते हुए दौर में व आज की पीढी में कितना बदलाव आया है ।हमारे  समय पिता के लिए मन में आदर तो था ही,परंतु एक डर भी रहता था कि वो नाराज न हो जाए? आज की पीढी प्रैक्टिकल है व तकनीकी दुनिया में सांस ले रही है । याद आया कि मेरा टिकट भी मोबाइल से ही बुक किया था बेटे ने! अपने बेटे का ,मेरा इस तरह रखना  मुझे  बहुत स्वाभाविक सा लगा।ऐसा नहीं कि हमारे बच्चे हमारा आदर नहीं करते! बहुत प्यार करते हैं हमें ! बस  अब वक्त के साथ उनका तरीका बदल गया है। जिसको हमे समझना चाहिए, उनकी भावनाएं अब, उनके  व्यस्त वक्त के साथ  बदल गयी है, जिसको समझने मे ही सबकी भलाई है, सोच कर मैं भी मोबाइल चलाने मे खो गई|


गुरुवार, 21 नवंबर 2024

*जीवन का एक पड़ाव उम्र *

 सच कहूं तो मैं उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,

जब भी यह सवाल कोई पूछता है,

मैं सोच में पड़ जाती हूँ,

बात यह नहीं, कि मैं,

उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,

बात तो यह है, की,

मैं हर उम्र के पड़ाव को,

फिर से जीना चाहती हूँ,

इसलिए जबाब नहीं दे पाती हूँ,

मेरे हिसाब से तो उम्र,

बस एक संख्या ही है,

जब मैं बच्चो के साथ बैठ,

कार्टून फिल्म देखती हूँ,

उन्ही की, हम उम्र हो जाती हूँ,

उन्ही की तरह खुश होती हूँ,

मैं भी तब सात-आठ साल की होती हूँ,

और जब गाने की धुन में पैर थिरकाती हूँ,

तब मैं किशोरी बन जाती हूँ,

जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनती हूँ,

उनकी ही तरह, सोचने लगती हूँ,

दरअसल मैं एकसाथ,

हर उम्र को जीना चाहती हूँ,

इसमें गलत ही क्या है?

क्या कभी किसी ने,

सूरज की रौशनी, या,

चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?

या फिर कल कल करती,

बहती नदी की धारा से उम्र फिर मुझसे ही क्यों?

बदलते रहना प्रकृति का नियम है,

मैं भी अपने आप को,

समय के साथ बदल रही हूँ,

आज के हिसाब से,

ढलने की कोशिश कर रही हूँ,

कितने साल की हो गयी मैं,

यह सोच कर क्या करना?

कितनी उम्र और बची है,

उसको जी भर जीना चाहती हूँ,

एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,

वह पल, किसी के भी जीवन में,

कभी भी आ सकता है,

फिर क्यों न हम,

हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,

हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..




शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

*कभी बनाना लिस्ट*

 *कभी बनाना लिस्ट*

*...क्या क्या बनाया है बीवी ने...*

 

वो कहती है बनाने में घण्टों लगते हैं... 

और खाने में पल भर ... 

कभी कुछ बड़े जतन से बनाती है...

सुबह से तैयारी करके... 

कभी कुछ धूप में सुखा के...

तो कभी कुछ पानी में भिगो के... 

कभी मसालेदार..

तो कभी गुड़ सी मीठी... 

सारे स्वाद समेट लेती हैं ...

आलू के पराठों में, या गाजर के हलवे में, ऊपर बारीक कटे धनिये के पत्तों में, या पीस कर डाले गए इलाइची के दानों में...

सारे स्वाद समेट देती हैं एक छोटी सी थाली में...

न जाने कहाँ कहाँ से पकड़ के लाती है...

 ना जाने कितना कुछ तो होता है ...

कभी लिस्ट बनाना ... 

बीवी ने जो कुछ भी.. कभी भी बनाया है... 

तुम बना नही पाओगे...

हमें भी बस खाना ही दिखता है...

पर नहीं दिखती... 

किचन की गर्मी, 

उसका पसीना, 

हाथ में गरम तेल के छींटें, 

कटने के निशान,

कमर का दर्द,

पैरो में सूजन, 

सफ़ेद होते बाल..

कभी नहीं दिखते...,,

कभी तो ध्यान से देखो ना,,उस की छोटी से रसोई में... कोई दिखेगा तुम्हे ,,

जो बदल गया है इतने सालो में... दाँत हिले होंगे कुछ.... 

बाल झड़ गए होंगे कुछ...

झुर्रियां आयी होंगी कुछ तुम्हारे मकान को घर बनाने में,,,,,

चश्मा लगाए, हाथ में अपनी करछी, बेलन लिए जुटी होगी...

आज भी वही कर रही है.. जो कर रही है वो पिछले पच्चीस तीस सालों से, और तुम्हें देखते ही पूछेगी 

"क्या चाहिए?”... 

कभी देखना उसके मन के कुछ अनकहे ज़ज़्बात, दबी हुई इच्छाएं,,

जो दिखती नही..

क्योंकि जो दिखती नहीं, उन्हें देखना और भी ज़्यादा ज़रूरी होता है... 

जब रसोई से दो बिस्किट या रस हाथ में लेकर निकलता हूँ,, कभी उसकी गैर मौजूदगी में... 

तब उसकी बात सोचने पे मज़बूर कर देती है... क्योंकि उसने सिर्फ खाना ही नहीं बनाया है इतने सालों में... 

तुम्हें भी बनाया है...

खुद को मिटा के...

और याद है न...

बनाने में घण्टों लगते हैं..ख़तम एक बार में हो जाता है ...पूरा घर बनाया है... 

दिन रात मेहनत करके...

कभी बनाना लिस्ट और क्या क्या बनाया है बीवी ने... 

लिस्ट बन नहीं पाएगी.. 

कोशिश करना .

कभी बन नहीं पाएगी🙏😟सच में कभी नहीं बन पायेगी



शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

*काश*




व्यतीत करना चाहती हूँ ...

सिर्फ एक दिन...

खुद के लिये...

जिसमें न जिम्मेदारियों का दायित्व हो

न कर्त्तव्यों का परायण

न कार्य क्षेत्र का अवलोकन हो

न मजबूरियोँ का समायन

बस मैं ,

मेरे पल ..

मेरी चाहतें और 

मेरा संबल

एक कप काफी से

हो मेरे दिन की शुरुआत

भीगकर अतीत के लम्हों में

खोजू अपने जज्बात

भूल गई जो जिंदगी जीना

उसे फिर से याद करु..

सबकी खातिर छोङ चुकी जो

उन ख्वाईशों की बात करु..

उलझी रहू बस स्वयं में ही

न कोई हो आस पास...

जी लू जी भर उन लम्हों को

जो मेरे हो सिर्फ खास..

मस्त मगन होकर में नाचूँ

अल्हङपन सी मस्ती में

जैसे चिङिया चहक रही हो

खुले आसमान सी बस्ती में..

मन का पहनू,

मन का खाऊं

न हो और किसी का ख्याल...

भूल गई हू जो जीना मैं

फिर से न हो मलाल..

शाम पङे सखियों से गपशप

और पानीपूरी खाऊं

डाक्टर के सारे निर्देशों को

बस एक दिन भूल जाऊँ..

मस्त हवा संग बाते करु

खुली सङक पर यूंही चलू..

बेफिक्री की राह पकङकर

अपनी बातों की धौंस धरु..

रात नशीली मेरे आंगन

इठलाती सी आये

लेकर अपनी आगोश में

चांद पूनम का दिखलायें...

सोऊं जब सपने में मुझे

वो राजकुमार आये

परियों की दुनियां से होकर

जो मेरे रंग में रंग जाये..

एकसाथ में बचपन ,

यौवन

फिर से जीना चाहती हूं..

काश! मिले वो लम्हेँ मुझको

 एक दिन अगर जो पाती हू...

मंगलवार, 2 जुलाई 2024

मेरे पापाजी

 "ऐसा भी होता था"

    "सर..मुख्य मंत्री जी फॉरेस्ट रेस्ट में ठहरे है..और रिजर्व फॉरेस्ट में शिकार कर  ..रहे. है..।"रेंजर ने आकर रिपोर्ट दी।

   याने आप भी चक्कर में होगें...किस मुख्य मंत्री की बात हो रही है?

   माफ किजीऐ..यह बात किस तरह का धमाका करने वाली बात है..यह आपको आगे मालुम होगा..

  बात करीब सन् 1963-64 की है...तब मध्य प्रदेश में मुख्य मंत्री संविद सरकार के गोविंद नारायण सिंह थे..

   उनकी आदत "अज्ञात वास "पर जाने की थी..आम  लोगों को पता न था..अज्ञातवास में माननीय करते क्या है..क्योकि उस जमाने न TVथा..मध्य प्रदेश में न ..न इतनी चैनल के 

पत्रकार..सब गोपनीय चलता था..जब मर्जी जाते..जब मर्जी जनता के बीच आ जाते..

  अब यह बात गुना जिले की है ..जहां DFOश्री एम.एम.त्रिपाठी थे..जिनके गुस्से से विभाग के  सारे कर्मचारी कांपते थे..याने वे लड्या-ततैय्या टाइप के न थे..अपितु  अत्यन्त ईमानदार थे ..सभी अधीनस्थों को मालुम था कि बेईमानी की किसी भी बात पर माफी नहीं मिलती..इसीलिए  सभी अधीनस्थ समय पूर्व हर घटना की सूचना देते थे..इसीलिए रेंजर ने मुख्य मंत्री के शिकार की रिपोर्ट की..क्योकि..गुना में वह इलाका रिजर्व फॉरेस्ट के अन्तर्गत आता था..जहां किसी को शिकार करने की अनुमति भी न थी..न कोई भी अधिकारी दे सकता था ..जो अत्यन्त दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता था..

  अब ऐसी रिपोर्ट सुन..जो.

था तो अवैध कृत्य..क्या हुआ चाहे मुख्य मंत्री ही संलिप्त हो..वे तुरन्त SPके पास पहुंचे.और कहा-SPसाहब आप.हमारे साथCMके पास चलिए..और समझाईये कि वे ऐसा न करे..वर्ना आप जानके  है..हम उनके अपराध के खिलाफ कानूनी कार्रवाई...करेगे...!!"

   SPत्रिपाठी जी की ईमानदारी के बारे में  सब जानते थे..लेकिन वे CMके विरुद्ध भी कार्रवाई का  जिगर रखते है..सुनकर हत -प्रभ रह गये..

  तुरन्त  उनके साथ फॉरेस्ट रेस्ट हाउस मे गोविंद नारायण सिंहCM के पास..पहले अकेले जाकर धीरे से निवेदन कर ..उनकी शिकार करने  परDFOसा. की आपत्ति बताई...

  यह सुन CMभी आश्चर्य चकित रह गये..क्योकि वह जमाना और था..

   CMने DFO त्रिपाठी जी को बुलाकर पुछा..".कहिए DFOसाहब..क्या  आपत्ति है?"DFOत्रिपाठी ने कहा -"सर मुझे कोई आपत्ति नहीं है..लेकिन हाल फिलहाल वन मंत्री भी आप है..और कानून यहां Reserve  Forestमें शिकार करना जुर्म है..और कोई भी  शिकार की Permission..किसी भी हालात में नहीं दे सकता..कल को विधान सभा में सवाल उठेगा तो हम वही कहेगे जो सत्य है..और माफ करना हम कार्रवाई भी करेगे..तब आप  पुछेगे..पहले क्यो नही बताया"

  "बहुत बढिया..आप जैसे ईमानदार अफसरों की हम कदर करते है..हम फौरन यहां से अपने शिकार आदि का प्लान निरस्त कर जाते है,,देश आप जैसे बहादुर चौकीदारों से के कारण महफूज रहेगा..वर्ना आमतौर पर तो हमारी हां में हां मिलाते हुए ..किसी भी गलत बात का समर्थन करने लगते है..वे भूल जाते है ..हम राजा नहीं..जनता के चुने हुए प्रतिनिधि है"

  और वास्तव में उन्होने तत्क्षण रवानगी डाल दी।

   एस.सी.त्रिपाठी.....मुम्बई




शुक्रवार, 28 जून 2024

*सत्तर साल की मां*

 अपनी सत्तर बरस की मां को देखकर,

क्या सोचा है तुमने कभी,

कि वो भी कालेज में टाईट कुर्ती 

और स्लैक्स पहन कर जाया करती थी।


तुम सोच नहीं सकते कि

तुम्हारी माँ जब अपने घर के आँगन में

छमछम कर चहकती हुई ऊधम मचाती

दौड़ा करती तो घर का कोना-कोना 

उस आवाज़ से गुलज़ार हो उठता था


तुम नहीं सोच सकते कि 

'ट्विस्ट' डांस वाली प्रतियोगिता में,

जीते थे उन्होंने अनेकों बार प्रथम पुरुस्कार।


तुम यह भी सोच नहीं सकते कि

किशोरावस्था में वो जब भी कभी

अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे 

छत पर फैली गुनगुनी धूप में सुखाने जाया करती,

तो न जाने कितनी ही पतंगें 

आसमान में कटने लगा करती थी।


क्या सोचा है तुमने कभी कि 

अट्ठारह बरस की मां ने

तुम्हारे बीस बरस के पिता को 

जब वरमाला पहनाई तो मारे लाज से 

दुहरी होकर गठरी बन, उन्होंने अपने वर को 

नज़र उठाकर भी नहीं देखा था।


तुमने तो ये भी नहीं सोचा होगा कि 

तुम्हारे आने की दस्तक देती उस

प्रसव पीड़ा के उठने पर अस्पताल जाने से पहले 

उन्होंने माँग कर बेसन की खट्टी सब्जी खाई थी।


तुम सोच सकते हो क्या कि कभी,

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि

'तुम्हें ही ' मानकर , 

अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियां 

जिस संदूक के अखबार के कागज़ के नीचे रख 

एकबार तालाबंद की थी, उस संदूक की चाबी 

आजतक उन्होंने नहीं ढूंढी।


और तुम उनके झुर्रीदार कांपते हाथों, क्षीण याद्दाश्त, मद्धम नजर और झुकी कमर को देख, 

उनसे कतराकर ,

खुद पर इतराते हो ?

ये बरसों का सफर है !

तुम सोच सकते भी नहीं !


(जैसे मोबाइल में हुई कुछ प्राब्लम पूछने पर चुटकियों में सुलझाता मेरा बेटा नहीं सोच सकता कि उसकी मां ने अपने कालेज के दिनों में तब प्रसिद्ध कंप्यूटर गेम 'प्रिंस आफ पर्शिया' के सारे लैवल क्लीयर कर प्रिंसैस को हासिल किया था ! और भी बहुत कुछ ऐसा है जो आने वाली पीढ़ियां बीती पीढ़ियों के विषय में शायद कभी सोच नहीं पाएंगीं !)


त‌ो जब भी खुद के रुतबे पर जब कभी गुरूर होने लगे

तब देखना अपनी मां की कोई बरसों बरस पुरानी फोटो और उतरना उनकी आंखों की गहराई में, पढ़ना उनके चेहरे की लिखावट, निहारना उनके व्यक्तित्व की लिखावट, तौलना उनके हौसलों की सुगबुगाहट।

तुम पाओगे कि आज तुम उनका दस प्रतिशत भी नहीं हो।


*मेरा यह  आर्टिकल हर माँ को समर्पित है*


*अनदेखा बहुमूल्य सहयोग*

 मम्मी यार …अपने आप को एक बार तो आईने के सामने देख लिया करो, आप तो रहने ही दो, मैं पीटीएम में पापा को लेकर चली जाऊंगी! पता है मम्मी.. मेरी सभी दोस्तों की मम्मी इतनी टिप टॉप अप टू डेट रहती हैं एक आप हो .. पता नहीं कैसे रहती हो, अब तो आपके साथ जाने में भी मुझे शर्म सी आती है!

जब मेरे दोस्त मुझसे पूछते हैं नेहा… क्या यह तुम्हारी मम्मी है तो मुझे अपने आप पर बहुत शर्म महसूस होती है, इसलिए प्लीज मम्मी आप तो घर में ही काम किया करो !कुछ ही समय बाद बेटा विपुल भी कॉलेज से आया और आते ही बरस पड़ा.. मम्मी आपको बिल्कुल भी  सलीका है या नहीं, आज आपने फिर से मेरे बैग में अचार और पराठे का टिफिन रख दिया,

मम्मी 18 साल का हो गया हूं, तथा अचार की खुशबू से मेरे सभी दोस्तों के सामने मुझे कितना शर्मिंदा होना पड़ा। मेरा कोई भी दोस्त बच्चों की तरह टिफिन लेकर कॉलेज नहीं आता, आपको कितनी भी समझा लो आपको तो कोई बात समझ में ही नहीं आती!  मेरे काम में आगे से आप हस्तक्षेप मत किया करो, मेरे सभी दोस्तों की मम्मी देखो, क्या फर्राटेदार इंग्लिश बोलती हैं,

गाड़ियां चलती हैं, और बिल्कुल आधुनिकता से जीती हैं और एक आप हो.. अपने दोस्तों की मम्मी के साथ में उनसे मिलवाने में शर्म आती है आपको! नेहा और विपुल की बात सुनकर आरती एकदम सन्न  रह गई! उसने तो कभी सपनों में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी, आज उनके बच्चों को अपनी मम्मी से ही शर्म आ रही है! बस अब और नहीं सहा गया आरती से, बच्चे बड़े हो गए तो क्या हुआ, क्या उन्हें हक मिल गया

अपनी मम्मी की आए दिन बेइज्जती करने का, तब आरती ने भी उनको जोरदार सुना दिया ..हां मैं गवार हूं, मुझे नहीं आती इंग्लिश, न हीं मुझे आधुनिकता के साथ रहना आता है, जब मैं शादी करके इस घर में आई थी मेरी अच्छी सरकारी टीचर की नौकरी थी, किंतु तब तुम्हारे पापा और दादी ने कहा..

कि तुम अगर नौकरी करोगी तो तुम्हारे दादा दादी को कौन संभालेगा? मैंने नौकरी छोड़ दी! कुछ समय पश्चात जब दोबारा नौकरी करने की सोची तब तक विपुल मेरी गोद में आ चुका था और उसके कुछ समय बाद नेहा! और फिर तुम दोनों की जिम्मेदारियां में मैं ऐसी पिसती चली गई कि मैं अपने बारे में तो सोचना ही भूल गई,

तुम्हारे पापा ने कहा.. अगर तुम भी नौकरी करने लगोगी तो बच्चों की परवरिश कैसे होगी? बच्चों को सही दिशा कैसे मिलेगी?  फिर नौकरी के बारे में नहीं सोचा! मुझे क्या पता था कि मेरी शिक्षा या परवरिश ही आज यह रंग दिखाएगी? अरे.. मैंने तो तुम्हारी वजह से अपनी सारी खुशियां, सारी दुनिया सब छोड़ दी,

जैसा तुम लोगों को पसंद था सिर्फ वही करती रही, और जिसका सिला मुझे इस रूप में दे रहे हो! विपुल तुम्हें याद है, तुम कितना बीमार रहते थे? तुम्हें ले लेकर हम जाने कितने ही अस्पतालों के चक्कर काटते थे और फिर डॉक्टर ने कहा था कि तुम्हारे हाथ पांव में बहुत कमजोरी है तो सिर्फ मैंने.. तरह-तरह की तुम्हारी मालिश से तुमको इस लायक बनाया है, ताकि आज तुम अपनी बाइक चला सको, और नेहा तुम्हें मैंने घर पर ही इतना पढ़ाया था कि आज तुम हर कक्षा में अब्बल आती हो,

मैं तुमको यह सब सुनाना नहीं चाहती थी, नाही मैं तुमसे इस तरह की बातें सुनना चाहती हूं! अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे काम में हस्तक्षेप करती हूं या तुम्हें मेरे साथ आने-जाने में शर्म आती है तो ठीक है.. आज से तुम दोनों आजाद हो, मैं तो मैं ही पागल थी.. मेरे बच्चे, मेरे बच्चे करके रात दिन तुम्हारी चिंता में घुली जा रही हूं, तुम जब भी दोनों बहन भाई स्कूल कॉलेज से घर आते हो तुम्हारे लिए बैठी रहती हूं

कि ताकि तुम्हें गर्म खाना मिल सके, तुम्हें रखा हुआ ठंडा खाना नहीं खाना पड़े, तुम्हारे बैग में टिफिन इसलिए रखती हूं कि कहीं रोज-रोज बाहर का खाना खाने से तुम्हारी सेहत पर कोई विपरीत असर न पड़े, अरे ..मुझे क्या बल्कि अगर तुम लोग बाहर खाना खाओगे तो  मेरी तो मेहनत बचेगी ही! मैं क्यों दिन-रात रसोई में तुम्हारे लिए लगी रहती हूं!

कभी तुम्हें घर की पसंद की चीज बनाकर खिलाती हूं, कभी लड्डू , कभी क्या, चीज बनाती हूं, मैं गवार हूं इसलिए,… शायद पढ़ी-लिखी  नौकरी वाली मम्मी यह सब नहीं करती होगी, हां मुझे कार चलाना चलना भी नहीं आता, किंतु मैं घर के सारे काम खुद जाकर करती हूं, और नेहा जब तुम्हारी मैडम तुमसे कहती है कि तुम्हें पढ़ाई में कौन मदद करता है तो वह मैं हूं,

जो आज तुम इस लायक हो वह सिर्फ मेरी वजह से हो और तुम मुझे इतना जलील कर रहे हो! अरे मैंने तो इस परिवार और तुम्हारे पीछे अपनी जिंदगी के खुशनुमा पल इस घर की चार दिवारी में बर्बाद कर दिए !मैं भी चाहती तो तुम्हें किसी आया के भरोसे छोड़कर नौकरी पर जाती और मैं भी तुम्हारे दोस्तों की मम्मी की तरह होती,

पर गलती मेरी थी जो मैंने तुम्हारे बारे में, सिर्फ तुम्हारी सुख सुविधा और इस परिवार के बारे में इतना सोचा! मुझसे गलती हुई है! इसलिए मेरे प्यारे बच्चों.. हो सके तो अपनी मम्मी को माफ कर देना, तब दोनों बच्चों को महसूस हुआ कि उनकी हर कामयाबी के पीछे आज तक उनकी मम्मी का उनके द्वारा अनदेखा सहयोग ही था!

दोनों अपनी मम्मी से अपने किए पर माफी मांगने लगे, मम्मी आपने आज तक हमारे लिए इतना सब कुछ किया है बस लास्ट बार आप हमारे लिए, हमें माफ कर दो! आइंदा हम कभी भी ऐसा ना कहेंगे ना सोचेंगे, बाहर से सब कुछ देख रहे उनके पापा अपने बच्चों की माफी मांगने की हरकत पर मुस्कुरा रहे थे ,और इशारों ही इशारों में आरती से भी उन्हें माफ करने के लिए कह रहे थे।

# बच्चों और परिवार के पीछे वह खुद को भूल गई!

मंगलवार, 18 जून 2024

*घर-परिवार की रौनक*

 पूरे परिवार को एकसूत्र में 

पिरोकर रखने वाली 

सबकी चिंता और परवाह करने में मगन 

खुद के प्रति बेपरवाह रहने वाली , 

सबकी गल्तियों पर अपनी खट्टी-मीठी झिड़कियों से नसीहत देने वाली, 

राजा, चाँद और परियों की कहानियां सुनाकर 

सबको प्रेरणा देने वाली, 

मीठी लोरी गुनगुनाकर सपनों की दुनिया की

सैर करवाकर सुख की नींद सुलाने वाली ,

सादा खाने में अपने हाथों के जादू से 

स्वाद का तड़का लगाने वाली, 

रसोई-चौके में कुछ सामान न होते हुए भी, 

झट से बढिया पकवान बना डालने वाली , 

अपने हाथों के स्पर्श से पुराने सामान को 

एकदम नया सा रूप देने वाली, 

आर्थिक संकट से जूझते परिवार पर 

बरसों बरस‌ से अपने पास सहेज कर रखी गई 

बचत जमा मिनटभर में न्यौछावर कर देने वाली , 

हर अपने-पराए को हंस कर गले लगाने वाली  समझ ही गए होंगे आप भी,

ये दादी-नानी मां हर घर-परिवार की रौनक होती हैं !


लेकिन न जाने क्यों आजकल परिवार की यही रौनक अब परिवारों से दूर होकर एकाकी जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं और बच्चे इनके अस्तित्व से अंजान एक अलग ही दुनिया में पल-बढ़ रहे हैं जहां मानवीय मूल्य और संवेदनाएं लगभग लुप्त हो चुकी हैं .


कारण , एकल परिवारों का चलन और रिश्तों से अधिक पैसों को अहमियत देने वाली एक ऐसी पीढ़ी जिनके लिए ये रौनक केवल एक बोझ से बढ़कर कुछ नहीं .


लेकिन ऐसे लोगों को मैं केवल बदकिस्मत ही कह सकती हूं क्योंकि वे नहीं जानते कि उन्होंने जिसे बोझ समझ खुद से अलग कर दिया है , असल में खुद का ही नुकसान किया है .


वो उस दैवीय आशीर्वाद से वंचित रह गए हैं जो इनकी उपस्थिति मात्र से ही पूरे परिवार को हर बुरी नज़र और आपदा से बचाने की शक्ति समेटे होता है 

और इतना ही नहीं, जो लोग सोचते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ अब उनके बुजुर्गों के अनुभव व सोच भी बूढ़े हो गए हैं तो उन्हें जान लेना चाहिए कि घर की सबसे बुजुर्ग सदस्या जिसे अक्सर एक अवांछित बोझ की तरह समझा जाता है , मैंने पाया है कि उनके पास परिवार चलाने के लिए बिल्कुल एक मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ से अधिक अनुभव और कौशल होता है . इनके रहते परिवार की आर्थिक स्थिति और तमाम रिश्तों की जमा पूंजी हमेशा लाभ में ही रहती है .

इनके पास कठिन से कठिन परिस्थितियों से निपटने की अचूक क्षमता होती है .

बच्चे बीमार पड़ जाएं और महंगे डाक्टर और दवाइयों से भी सुधार न आ रहा हो तो इनके प्यार और ममता भरे स्पर्श मात्र से ही बच्चे आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो फिर से चहक कर खिलखिला उठते हैं .

यह सब कोरी कल्पना नहीं है. मैंने इन दादी-नानी मांओं में देखी है वह ईश्वरीय शक्ति जो हर पल परिवार के साथ रहती है.

तो अभी भी वक्त है, अपने घर में देवी देवताओं को अवश्य पूजिए लेकिन घर को नानी-दादी मांओं के के रूप में मिले दैवीय आशीर्वादों से भी गुलज़ार कीजिए .

और वैसे भी वो फिर 'मां' तो हैं ही.

हां लेकिन आज भी सच में वो परिवार भाग्यवान हैं जहां इनकी रौनकों से घर चहक रहा है.

"उस घर से सुख, रौनकें और खुशहाली कभी नहीं जाती,

जहां दादी-नानी मां की खिलखिलाती हंसी और डांट की बौछार है आती !"

रविवार, 26 मई 2024

*हर पल को जीना चाहती हूं*

 *जब भी यह सवाल कोई पूछता है,*

 *मैं सोच में पड़ जाती हूँ,*


*बात यह नहीं, कि मैं,*

 *उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,*

 *बात तो यह है, की,*

 *मैं हर उम्र के पड़ाव को,*

 *फिर से जीना चाहती हूँ,*

 *इसलिए जबाब नहीं दे पाती हूँ,*


*मेरे हिसाब से तो उम्र,*

 *बस एक संख्या ही है,*


*जब मैं बच्चो के साथ बैठ,*

 *कार्टून फिल्म देखती हूँ,*

 *उन्ही की, हम उम्र हो जाती हूँ,*

 *उन्ही की तरह खुश होती हूँ,*

 *मैं भी तब सात-आठ साल की होती हूँ,*


*और जब गाने की धुन में पैर थिरकाती हूँ,*

 *तब मैं किशोरी बन जाती हूँ,*


*जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनती हूँ,*

 *उनकी ही तरह, सोचने लगती हूँ,*


*दरअसल मैं एकसाथ,*

 *हर उम्र को जीना चाहती हूँ,*


*इसमें गलत ही क्या है?*

 *क्या कभी किसी ने,*

 *सूरज की रौशनी, या,*

 *चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?*


*या फिर खल खल करती,*

 *बहती नदी की धारा से उम्र पूछी?*


*फिर मुझसे ही क्यों?*


*बदलते रहना प्रकृति का नियम है,*

 *मैं भी अपने आप को,*

 *समय के साथ बदल रही हूँ,*


*आज के हिसाब से,*

 *ढलने की कोशिश कर रही हूँ,*


*कितने साल की हो गयी मैं,*

 *यह सोच कर क्या करना?*


*कितनी उम्र और बची है,*

 *उसको जी भर जीना चाहती हूँ,*


*एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,*

 *वह पल, किसी के भी जीवन में,*

 *कभी भी आ सकता है,*


*फिर क्यों न हम,*

 *हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,*

 *हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..*





शुक्रवार, 24 मई 2024

*मिलने की उम्मीद*

 बहुत पछताती हूँ जब उनका फ़ोन नहीं उठा पाती, जब उनके बीमार होने पर उनके पास नहीं जा पाती हूँ तब बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ। 


सोचती हूँ कभी कितने ओहदे पाए मैंने बहन, बहु, पत्नी, माँ, गुरु, लेखक लेकिन सबसे ज्यादा हारा हुआ मैंने बेटी को पाया है।

हारा हुआ देखा मैंने खुद को जब जब भी मैं उनके पास नहीं थी एक बूँद पलकों पर आने से पहले जो समेट लेती मुझे आँचल में कभी रोई होगी सिसकियाँ भर कर अँधेरे में, उस वक़्त मैं उसके साथ नहीं थी।

जो मेरे लिए छप्पन व्यंजन बना7ती तो मैं नखरे कर एक कौर खाती

जो सौ आवाजों पर नहीं उठती मैं, फिर भी प्यार से मेरा सर सहलाती

बिजली की तरह अब सरपट आदेशों की पालन करती नज़र आती हूँबेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।

बहुत पछताती हूँ जब गृहस्थी में उलझी उनका फ़ोन नहीं उठा पाती

“बस काम में लग गयी थी”, उनके चौथे फ़ोन पर भी इतना ही कह पाती हूँ,याद करती हूँ वो ज़माना जब सब कुछ ज़रूरी छोड़ वो मेरे पास बैठ जाया करते “अरे काम तो होता रहेगा” पापा बड़ी आसानी से कह जाया करते उस वक़्त में खुद को बहुत छोटा पाती हूँ बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।

पुरानी और बेमेल रंगों से बनी वो प्रतिच्छाया भी मेरी जब आज भी तुम सहेजे रख लेती हो “कितनी पुरानी  है माँ ये, इसे फेंकती क्यूँ नहीं?” कहा मैंने और तुम उतने ही प्रणय से उसे अपने सीने से लिपटा लेती हो मेरा मन बंट गया है कितनों में, पर आज भी तुम्हारे मन पर मेरा एकाधिकार पाती हूँ उस वक़्त, बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।

“मैं आ रही हूँ कल घर पर”, सुनते ही, मेरे आने से पहले ही भरे बाज़ार से कैसे उस पतली गली के कोने वाली दुकान से पापा “अभी फ्रेश बना हुआ” मावा लेने पहुँच जाया करते हैं चार दिन दिवाली हो ऐसे जताया करते हैं जब उनके बीमार होने पर उनके पास नहीं जा पाती हूँ उस वक़्त, बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।

भरी आँखें और फिर मिलने की उम्मीद, जब घर छोड़ते हुए देखती हूँ रूककर फिर से उन्हें गले नहीं लगा पाती जिम्मेदारियों का चोला और ये मीठे रिवाज़ मुझे फिर उतरकर उनके पास नहीं जाने देते अंतरमन में दहाड़ कर रोते हुए भी उन्हें बचपना ना करने की बनावटी नसीहत देती हूँ उस वक़्त मैं बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।







*सासु माँ का साथ एक आशीर्वाद*

“ बेटा सुन आज आते वक्त मेरा एक काम कर देगा?” दमयंती जी ने सोमेश से पूछा 

“ हाँ माँ बोलो ना क्या काम है?” सोमेश ने कहा 

उधर रसोई में काम करती रचिता मन ही मन बुदबुदा रही थी.. जब से आई है जरा पल भर का सुकून नहीं है… कभी चाय कभी पानी तो कभी दवा बस अपने आगे पीछे लट्टू की तरह घुमाए रखती हैं… कल मेरा जन्मदिन है वो भी इनकी सेवा में बीत जाना.. कितना मन था सुबह मंदिर जाकर पूजा करूँगी फिर शाम को सोमेश के साथ किसी मॉल में शॉपिंग और डिनर कर घर आते …पर ये है ना महारानी जी इनके रहते हम बाहर कैसे जा सकते ….बाहर का खाना तो इन्हें हज़म नहीं होगा …पहले पकाओ फिर कही जाओ.. कितना अच्छा था ये उधर अपने घर में ही रहती थी…।

उधर दमयंती जी से बात कर सोमेश ऑफिस चला गया पूरे दिन रचिता मन ही मन सास को जली कटी सुनाती रही …ना अच्छे से बात की ना दो घड़ी उनके पास बैठी…. सोमेश ही माँ को ज़िद्द कर साथ ले आया था जब इस बार घर गए थे अब तो सास यही रहेंगी… सारी आज़ादी ख़त्म … सोच सोच कर रचिता को कोफ़्त हो रही थी ।

रात सोमेश जब घर आया तो पहले माँ से मिलने गया फिर चाय नाश्ता किया ।।

रात को खाने के बाद जब सब सोने जा रहे थे दमयंती जी ने रचिता को कमरे में बुलाया 

“ बहू कल तुम्हारा जन्मदिन है ना… ये लो सलवार सूट… सोमेश से कहा था तुम्हारी पसंद का ही लाए… कल सुबह तुम उठ कर मंदिर चली जाना… नाश्ते खाने की चिंता ना करना वो मैं देख लूँगी… कल सोमेश की तो छुट्टी है नहीं पर जब वो ऑफिस से आ जाए तुम उसके साथ बाहर घूम आना।” दमयंती जी एक पैकेट रचिता को देती हुई बोली 

“ पर माँ आपको कैसे पता मैं मंदिर जाती हूँ नए कपड़े पहन कर?” आश्चर्य से रचिता ने पूछा 

“ बहू तुम हर बार मंदिर से निकल कर ही तो फ़ोन कर आशीर्वाद लेती हो तो कैसे याद नहीं रहेगा..।”दमयंती जी ने कहा

रचिता पैकेट लेकर सास को प्रणाम कर जाने लगी तो दमयंती जी बोली,“ बहू तुम जैसे पहले रहती थी वैसे ही रहो..मेरी वजह से परेशान मत हुआ करो.. बस जब से यहाँ आई हूँ तो लगता है घर में कोई तो है… तो बस तुम्हें अपने आसपास रखने को तुमसे कुछ ना कुछ करवाती रहती हूँ…..वहाँ घर पर तो अकेले ही रह रही थी ना।” 

“ जी माँ ।” रचिता बस इतना ही कह पाई… 

बाहर सोमेश ये सब खड़े होकर सुन रहा था जैसे ही रचिता अपने कमरे में पहुँची सोमेश ने कहा,“ जब से माँ आई है तुम कभी भी उससे ना तो ठीक से बात करती हो ना तुम्हें उसके पास बैठना पसंद है और जब तब जो माँ के लिए जली कटी मुझे सुनाती रहती हो बता नहीं सकता कितनी पीड़ा होती हैं….पर जब माँ ने मुझे कहा कल बहू का जन्मदिन है उसके लिए एक सूट ला देना और मुझे पैसे भी दिए मना करने लगा तो बोली तू अपनी तरफ़ से जो देना दे ….ये मेरी तरफ़ से ला देना…अब बताओ माँ के मन में तुम्हारे लिए क्या है… और तुम्हारे मन में माँ के लिए क्या?” 

“ मुझे माफ कर दो सोमेश मैं माँ को समझ ही नहीं पा रही थी वो जब से यहाँ आई मुझे लग रहा था मेरा काम बढ़ गया है पर ये नहीं सोच पाई वो अपने अकेलेपन की वजह से मुझे अपने आसपास रखती थी… कल माँ को भी मॉल लेकर चलेंगे…ठीक है ना?” रचिता ने शर्मिंदा होते हुए कहा 

“ चलो जल्दी ही समझ आ गया नहीं तो मैं सोच रहा था मेरी माँ का क्या होगा?” सोमेश रचिता को देखते हुए बोला 

“ कुछ नहीं होगा अब माँ अपनी बहू के साथ अच्छे से रहेंगी तुम देख लेना।” रचिता कह कर सो गई 

कल की सुबह उसे माँ समान सास से आशीर्वाद भी तो लेना था… इधर सोमेश अब माँ को लेकर थोड़ा बेफ़िक्र हो गया था ।

साभार

(रश्मि प्रकाश जी की कहानी )