इस घर की चार दिवारी में, मै सब कुछ ढूंढ लेती हूं,सभी के
रुमाल, घड़ी,मोज़े, किताबें,
पिन, सुई..खोई हुई बालियां….
इधर उधर रखी गई चाबियां..
सब कुछ ...जैसे मुझे ही सब कुछ पता होती है,
हर एक चीज़ जो घर में, किसी को भी, टाइम पर ,नहीं मिलती है
मैं सब को खोज के उन्हें देती हूं।
पर मैं ढूंढ ही नहीं पा रहीं हूं ख़ुद को ...
क्यों न अचानक ,
ऐसा कभी हो जाए कि ,मैं मिल जाऊं किसी रोज़,
अपने आप को,भी, घर के किसी कोने में,
और कहूं ,अपने आप से ,
देखो ,अब में खुद को मिल गई हूं, खुद को में खुद से
अब खोना नहीं चाहती हूं ।।
सच बात ये हुई के
दूसरों के कामों में अपने आपको इतना उलझा लिया,कि,खुद को,अपने लिए, खोजने का वक्त ही नहीं मिला,
अब आज जब अपने लिए वक्त ही वक्त है,तो सब को, हमारा,ये, अमूल्य वक्त ,फिजूल सा लगता है,
हमे ,अब,अपने, तरीके से ,जीने में भी , सोचना पड़ता है
न जाने ऐसा क्यों होता है ?
कभी कभी ,ऐसा मन पसंद काम को करने में भी एक, डर सा विचार ,दिल के कोने से आता है,क्या ये काम मेरे लिए किसी को फिजूल तो नही लगेगा,
जीवन के आखरी पड़ाव में भी क्या जीवन जीने की कला सीखनी पढ़ेगी? बस मन ही है ना,तो
ऐसा विचार भी आता है ,ऐसा क्यों होता है?प्रश्न सा मन में आता है
खुद को खोजना औरत होना आसान नहीं है आधे ख्वाब दिल में ही दफन करने पड़ते हैं औरत एक मां पत्नी बहन बहु कई रुपए में अपना फर्ज निभाती है एक मजबूत समाज का निर्माण करती है वह सम्मान की पाtri है उसको अपने आप को खोजने की जरूरत नहीं वह अपने आप में ही एक सशक्त है पूरी किताब है जीवन से भारी उम्मीद है दूसरों के लिए सबक है दूसरे आपने अपना जीवन खोजते हैं आपके दिए संस्कारों पर चलते हैं अपने ही अपने आप को खोजते हैं आप तो दूसरों को सिखाती हैं ज्ञान का संचार करती है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आपने लिखा है मुझे बहुत खुशी है कि आपने मेरा आर्टिकल पढ़ अपने विचारों से मुझे अवगत कराया आपकी बातें 100% सही है बहुत अच्छे विचार लिखे हैं आपने और अपने समय दिया इसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत तरीके से आपने सभी स्त्रियों की दिल की बात को शब्दों में संजोया है....अक्सर सभी महिलों की यह सोच की उम्र के इस पड़ाव पर खुद को क्या बदलना ....इस सोच को बदलना होगा
जवाब देंहटाएंSahi kaha he Mina bahan aapne,Khushi huyi ke aapne vkt nikal kr Mera blog padha or apna bahumuly comment Diya Dil se shukriya aapka
हटाएंमेरे स्वयं के विचार से,,, ये त्रासदी केवल स्त्री जाति के साथ नहीं अपितु बहुत बार पुरुष वर्ग में अपने आप को इसी विडंबना में खड़ा पाता है,, परिवार के दायित्वों का वहन करते करते उम्र गुजर जाती है,,बच्चे बड़े हो गए तो उनके कैरियर का दायित्व,, कैरियर बना दिया तो उनके विवाह आदि का ,,,को सा गया खुद को महसूस करता है,, पुरुष भी,,
जवाब देंहटाएंSahi baat he ye Avinash bhaiya,aapka benami kyu aarha he,lagta he gogal se setting ESI hogi,it's ok nop
हटाएंअपने शौक भी यदि आप पूरे करना चाह रहे है,, तो उसमे भी आपत्ति,,, बच्चे हो या परिवार के अन्य,,, सभी को आपका आपने लिए कुछ भी करना गवारा नहीं होता,, क्या करूं,, कभी कभी खुद को समझा भी नही पाता,,, गायन का शौक है ,लेकिन समय देखना पड़ता है ,,जब बच्चे बाहर हो,, पत्नी को दिक्कत न हो,
जवाब देंहटाएं100%✓✓✓✓✓baat he,par ye humari aakhri pidhi hi he Jo ye sab soch Rahi he,aage ki ganretion ka to ishavar hi maili he
हटाएंयह ही कहूंगा,,,, की ,,,जो खुद से मिलने की ख्वाहिश करो तो बात बने,,,बगैर इसके जहां भर की ख्वाहिशें क्या हैं,,,,, साभार
जवाब देंहटाएंसही बात ही,ज़िंदगी जीने का तरीका और मायना अपना अपना होना चाहिए
हटाएंआपका मूल्य आप जानते है फिर दूसरों से क्या पूछना।"
जवाब देंहटाएं"आप अपने आप को परख ले फिर किसी और को परखने की जरुरत नहीं पड़ेगी।"
"इस दुनियां में हर चीज से समझौता कर सकते है अपने आत्म सम्मान से नहीं।"बहुत अच्छा लगा आपने ब्लॉग पढ़ने का समय निकाला दिल से शुक्रिया आपका