सोमवार, 30 अक्टूबर 2023

*निशब्द*

शर्म नहीं आती आप दोनों को ....कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज रखो .....

ये संभ्रांत लोगों की कालोनी है यहां बच्चे बडे सभी आते है पार्क में वाक करने.... टहलने.....

लेकिन आए दिन आप दोनों यूं साथ बैठे रहते है...  दोनों को देखकर आपको तो  शर्म  आती नहीं ,हमें ही आँखें नीचे करनी पड़ती है....वह वाकिग सूट पहने  मॉर्डन सा दिखने वाला व्यक्ति गुस्से से उन दोनो से बोला...

तभी एक दूसरे दोस्त ने भी इसी का साथ देते हुए कहा....बिल्कुल सही कहा आपने भाईसाहब...... अब ये हरकतें बच्चे करें ,तो समझ आता है ,कह सकते हैं के नासमझ है, मगर ये दोनों तो बूढे है ....मे भी पिछले कुछ दिनों से बराबर देख रहा हूं इन दोनों को

शर्म नही आती आप दोनों यू घुल मिलकर बेंच पर साथ साथ रोजाना घंटे ऐसे गुजारते हैं

पार्क मे इकठ्ठी भीड ने भी दोनो बुजुर्गो को घेर रखा था ,और कुछ ऐसी ही बातें कहते हुए उन दोनों बुजुर्गों पर सभी गुस्सा हो रहे थे

तभी उन बुजुर्ग ने चुप्पी तोडी हुए कहा... हम कोई छिछोरे  जवान नहीं है ....

ये मजबूरी है हम दोनों की.आप सभी जानते हैं की मे आपकी ही कालोनी का हूं  और मेरी पत्नी गुजर चुकी है, बच्चे विदेश मे अपने सेंटल है, उन्हें अपने बाप की कोई चिंता नही है अकेला बीमारी मे मैं  रहता हूं....मेरे बनाए उस घर मे जिसे मे मंदिर कहता हूं,पर  मुझे लगता था वो मेरे बच्चे मेरे बुढापे का सहारा बनेंगे मगर, ...वो भी सब छोड गए,

और ये है गीता जी,  इनकी भी कहानी ऐसी ही है, बच्चों ने इनकी संपत्ति ,पिता की मृत्यु के बाद हड़प ली और इन्हें वृद्ध आश्रम मे छोड कर सब चल दिये .....

ये अपना मन बहलाने यहां पार्क में आती है ,यहां हमारी मुलाकात हुई एक,दूसरे का गम बांटते बांटते जान पहचान हुई है..

बेटा इन्हें कम सुनाई देता है वही मुझे कम दिखाई देता है हम दोनों सत्तर पार है आज हम दोनों एक दूसरे का सहारा है कुछ गम बांट लेते है पास बैठकर .... सकून महसूस करते हैं..

इस उम्र मे  हम दोनों को शारारिक जरुरतें नही, बल्कि एक दूसरे से बातचीत कर,, कहने सुनने वाला साथी बने हुए हैं

और अब हम दोनों ने शादी करने का फैसला भी किया है ,जल्द ही आश्रम मे हमारी शादी होने वाली है आप भी आना अपने बुजुर्गों को शुभकामनाएं देना.....कहकर वह दोनों बुजुर्ग एक दूसरे का हाथ थामे चलने लगे ....

वहीं इकट्ठा हुई भीड शर्मिंदगी से छंटने लगी थी निशब्द सी होते हुए.....



 

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

*घर बनाना*

 स्त्री के कामों की कभी लिस्ट बनाई क्या?..

वो कहते है ना स्त्री को घर बनाने में,उनका कितना समय  लगता है... 

और उसके  कहना आसान होता है... 

पर वो स्त्री ही है जो घर के सारे काम के साथ बड़े  जतन से खाना बनाती है...

सुबह से तैयारी करके... 

कभी कुछ धुप में सुखा के...

तो कभी कुछ पानी में भिगो के... 

कभी मसालेदार..

तो कभी गुड़ सी मीठी... 

सारे स्वाद समेट लेती हैं ...तरह तरह के परोसे बनाने में,

आलू के पराठों में, या गाजर के हलवे में, ऊपर बारीक कटे धनिये के पत्तो में, या पीस कर डाले गए इलाइची के दानों में...

सारे स्वाद समेट देती हैं एक छोटी सी थाली को सजाने  में...और सबको खुश रखने में...

न जाने कहाँ  से हुनर लाती है...

 ना जाने कितना कुछ तो होता है . इन स्त्री के पास..

तुम बना पाओगे क्या ?...एक बार सोचें,

हम सबको बस खाना ही दिखता है...

पर नही दिखती... 

किचन की गर्मी, 

उस स्त्री का पसीना, 

हाथ में गरम तेल के छींटे, 

कटने के निशान,

कमर का दर्द,

पैरो में सूजन, 

सफ़ेद होते बाल..

कभी नहीं दिखते...,,


कभी ध्यान से देखा क्या ?,,उस की रसोई  रूपी कमरे में.. झांककर. क्या दिखेगा जाकर ,,

स्त्री का रूप

जो बदल गया है इतने सालो में... दांत हिले होंगे कुछ.... 

बाल झड़ गए होंगे कुछ...

झुर्रियां आयी होंगी कुछ,

  मकान को घर बनाने में,,,,,घर के लोगों का खाना बनाने में

चश्मा लगाए, हाथ में अपनी करछी, बेलन लिए जुटी होगी...

आज भी वही कर रही है.. जो कर रही है वो  पिछले पच्चीस तीस सालों से, और भी शायद ज्यादा समय हुआ होगा ,फिर भी तुम्हे देखते ही पूछेगी 

"क्या चाहिए?”... कुछ  और बना दूं?


कभी देखना उसके मन के कुछ अनकहे ज़ज़्बात, दबी हुई इच्छाएं,,

जो दिखती नही..


क्योंकि जो दिखती नही, उन्हें देखना और भी ज़्यादा ज़रूरी होता है... 


उसकी  गैर मौजूदगी में... कभी

जब रसोई से दो बिस्किट और  चाय हाथ में लेकर निकलो ,,  सच मानो

तब उसकी बात सोचने पे मज़बूर हो जाओगे.. क्योंकि उसने सिर्फ खाना ही नहीं बनाया है इतने सालो में... 

इस घर को भी बनाया है...

खुद को मिटा के...

और याद है न...

बनाने में घण्टों लगते है,

दिन रात मेहनत करके...

लिस्ट तक  नहीं पाएगी उसके कामों की, कोशिश  करके देखना.. 

कभी बन नहीं पाएगी



रविवार, 22 अक्टूबर 2023

*कड़वी सच्चाई*

 जिन घरों में ,वो रोजाना ,अखबार, डालता है, उनमें से एक का लेटर बॉक्स उस दिन पूरी तरह से भरा हुआ था, जगह नही थी के वो उसमे और अखबार डाले,इसलिए उसने घर का दरवाजा खटखटाया।और जानना चाहा के क्या बात है।

उस घर की , बहुत बुजुर्ग सी दिखने वाली मालकिन मधु पांडे ने,थोड़ी देर के बाद, धीरे से, दरवाजा  खोला।

सामने अखबार वाला खड़ा था, बोला, मैडम, आपका लेटर बॉक्स इस तरह से भरा हुआ क्यों है?"क्या अखबार निकले नही आपकने पढ़े नही?

तब उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा मैंने जानबूझकर किया है।" फिर वो मुस्कुराई और अपनी बात जारी रखते हुए  कहा "मैं चाहती हूं कि आप हर दिन मुझे अखबार दें। अब आगे से रोज दरवाजा खटखटाएं या घंटी बजाएं और अखबार मुझे व्यक्तिगत रूप से हाथ में सौंपें ।"

हैरानी से उसने पूछा, "हां ,आप कहती हैं तो मैं आपका दरवाजा ज़रूर खटखटाऊंगा, लेकिन यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं होगी क्या ?"मुझे आगे बहुत जगह अखबार  बाटने होते हैं और आपको भी इतनी सुबह सुबह यूं उठाना,कुछ ठीक नहीं लग रहा मुझे,

तब वो बोलीं, "आपकी बात सही है... फिर भी मैं यही चाहती हूं कि आप ऐसा करें ,मैं आपको दरवाजा खटखटाने के शुल्क के रूप में हर महीने 500/- रुपये अतिरिक्त दूंगी।"

विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ, उन्होंने अपनी बात जारी रखी बोली,"अगर कभी ऐसा दिन आए, जब आप दरवाजा खटखटाएं ,और मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिले, तो कृपया पुलिस को फोन करें!"

उनकी बात सुनकर एक बार अजीब सा लगा  और तुरंत वो पूछने लगा, "क्यों मैडम ऐसा क्यो कह रही हैं आप?"

तब वो बोलीं, "मेरे पतिदेव  का निधन हो गया है, मेरा बेटा और बेटी दोनों उनके परिवार के साथ विदेश में रहते है, और मैं यहाँ अकेली रहती हूँ । कौन जाने, मेरा बुलावा कब आ जाए ?"इसलिए ऐसा करना  चाहती हूं क्या आप मदद करेंगे?

उस पल,कहते हुए   उस बुज़ुर्ग औरत की आंखों में छलक आए आंसुओं को देख अखबार वाले के मन में  एक हलचल  सी महसूस हुई

वो मैडम आगे कहती जा रही थी, "मैं अखबार नहीं पढ़ती,मैं दरवाजा खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए अखबार लेती हूं। किसी परिचित से ,चेहरे को, देखने और बस कुछ बातें ऐसे ही आदान-प्रदान करने के इरादे से में ऐसा करने का बोल रही हूं!"

 बाद में हाथ जोड़कर कहने लगीं, "कृपया मुझ पर एक एहसान करो! यह मेरे बेटे और बेटी का विदेशी फोन नंबर है। अगर किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूं, तो कृपया मेरे बेटे या बेटी को फोन करके इस बारे में सूचित कर देना।"और ये कहते हुए उन्होंने उनके नंबर भी दिए,

निरूतर सा अखबार वाला उनको देखता रहा,और एक कड़वी सच्चाई कों ,सुनते हुए उनको ये काम करने से  मना नहीं कर सका !



 

शनिवार, 21 अक्टूबर 2023

* बुढ़ापा और वरिष्ठता*

 वरिष्ठता और बुढ़ापा में क्या कोई अंतर है ?

आइए इसको ऐसे समझते है.................

इंसान को उम्र बढ़ने पर ‘वरिष्ठ’ बनना चहिए , ‘बूढ़ा’ नहीं|

बुढ़ापा अन्य लोगों का आधार ढूंढता  है और वरिष्ठता, वरिष्ठता तो लोगों को आधार देती है ।

बुढ़ापा छुपाने का सबका मन करता है, 

और वरिष्ठता को उजागर करने का मन करता है ।

बुढ़ापा अहंकारी होता है,

वरिष्ठता अनुभव संपन्न, विनम्र और संयम शील होती है ।

बुढ़ापा नई पीढ़ी के विचारों से छेड़छाड़ करता है,

और वरिष्ठता युवा पीढ़ी को, बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है ।

बुढ़ापा "हमारे ज़माने में ऐसा था" की रट लगाता रहता है,

और वरिष्ठता बदलते समय से अपना नाता जोड़ लेती है, उसे अपना ने की कोशिश करती है। 

बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय लादता है, थोपता है,

और वरिष्ठता तरुण पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है।

बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है मगर वरिष्ठता,

वह तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है, युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है ।

संक्षेप में ...

वरिष्ठता और बुढ़ापे के बीच के अंतर को समझकर, जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनना चाहिए ।



बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

*प्रतिष्ठा *

 मम्मी , आप भी ना ....ये  पराठे और आलू की सब्जी मुझे साथ मे रखना बंद कीजिए ..पता ही है ना आपको,मुझे अपनी यात्रा फ्लाइट में करनी है और बैग में ये सब लेकर चलना .नही ले जाऊंगी,मेरा.मतलब तेल वेगेरा निकल जाता है ,और आजकल ऑनलाइन हर जगह तुरंत खाना मिल जाएगा। झल्लाहट के साथ ज्योति ने मम्मी से कहा।

   किशोर लड़की  की बातें मां को अच्छी नहीं लगी... वो कहने लगी , क्या फ्लाइट में पिज़्ज़ा बर्गर , रोल जैसे  फास्ट फूड  , दुगने तिगने दामों में खरीद कर खाना ही प्रतिष्ठा के प्रतीक हैं ?? वो नही मानी,

मां के खूब कहने पर ज्योति ने हारकर उनका ये खाने का पैकेट अपने हैंड बैग में रख लिया,सोच रही थी ये ऐसे नही मानेगी ,बाहर जा कर डस्ट बीन में फेक दूंगी,मम्मी के भाषण जेसी बातें सुनती रही,वो कहे जा रही थीं के .. ऐसे सब्जी पराठा हमें बैलगाड़ी , घोड़ा गाड़ी या रिक्शा बस या ट्रेन में ही खाना चाहिए  ।  मुंह हमारा , स्वाद हमारा , पेट हमारा , फायदा - नुकसान हमारा फिर हम सिर्फ केवल आधुनिकता और प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए घर के खाने को दरकिनार कर उसकी उपेक्षा कैसे कर सकती हो?

    खैर  !  एयरपोर्ट को निकली ही थी के , रास्ते में उसके फोन पर मैसेज आया के उसकी  फ्लाइट अभी चार घंटा लेट जायेगी, रास्ते  में  थी ज्योती, जल्दी के चक्कर में उसने नाश्ता भी ठीक से नही किया था,अब वह वोही सब्जी पराठा निकलकर खाने लगी ,और अपने द्वारा किए बर्ताव के कारण उसे पछतावा भी हो रहा था अपने द्वारा किए व्यवहार के लिए पश्चाताप साफ दिखाई दे रहा था ,उसने तुरंत अपनी मम्मी को फोन लगाया तब जाकर उसे सकून मिला !

   "  आधुनिकता और पारंपरिकता का सही तरीके से तालमेल ही श्रेष्ठता की ओर ले जाते हैं "

 


शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

*एक अटूट रिश्ता*

 * मम्मी पापा बूढ़े हुए हैं पर पति-पत्नी तो हैं*

" बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम" 

शायद यही कहा बड़ी बहू ने। सुनते ही सासू मां ठिठक गई। और पलट कर बोली

" कुछ कहा तुमने बड़ी बहू"

" नहीं नहीं, मैंने तो कुछ भी नहीं कहा मम्मी जी"

" हां हां सच में" छोटी बहू ने झिझकते हुए कहा।

" अच्छा है कि तुमने कुछ नहीं कहा। अगर कहा होता तो शायद जवाब भी मिल जाता"

बड़ी बहू नज़रें नीची कर खड़ी हो गई और सासू मां उसे घूरती हुई वहां से निकल गई। सासू मां के जाते ही बड़ी बहू ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया,

" क्या गलत कहती हूं मैं? मुझे तो रोक लेंगी, पर बाहर और भी तो लोग हैं, जो बातें करते हैं। उनका क्या? उनकी जबान पकड़ो तो माने "

" सही कहा भाभी, क्या जरूरत है मम्मी जी को पार्लर जाने की? इस उम्र में यह सब शोभा देता है क्या?"

" अरे बुढ़ापे में सठिया गई है। कौन समझाएं इन्हें? जब कोई बाहर वाला मजाक उड़ाएगा, तब समझ में आएगा। फिर रोती हुई आएगी घर पर"


" हां हमें क्या? इन्हें खुद का मजाक उड़ाने की लगी है तो शौक से उड़ाए। हम तो खुश है अपनी जिंदगी में"

" वैसे भी किसे फर्क पड़ता है? पापा जी तो कुछ कहते नहीं। और इस उमर में कौन सा पापा जी निहार रहे हैं उन्हें, जो इतना सज धज कर तैयार हो रही है"

" यह तो है भाभी। दीया बुझने से पहले फड़फड़ाता है ना, वही हालत इंसान की बुढ़ापे में हो जाती है"

छोटी बहू ने भी बड़ी बहू की हां में हां मिलाई। और दोनों जोर जोर से हंसने लगी।


दरअसल बात यह थी कि मधु जी के पति सोमेश जी का आज सत्तरवाँ जन्मदिन था, जिसे वे धूमधाम से ना मनाकर सिर्फ अपनी पत्नी के साथ मनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक रेस्टोरेंट में टेबल भी बुक कर ली थी। उसके बाद मूवी देखने का प्रोग्राम था।


मतलब यह कह सकते हैं कि आज का पूरा दिन मधु जी और सोमेश जी साथ बिताना चाहते थे। और मधु जी इस दिन को यादगार बनाना चाहती थी इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना पार्लर जाकर थोड़ा लाइट मेकअप ही करवा लूँ। सोमेश जी को अच्छा लगेगा।

बस यही सोचकर वे पार्लर निकल गई और यही बात दोनों बहुओं को खटक रही थी कि देखो तो मम्मी जी और पापा जी बुढ़ापे में कैसे-कैसे गुल खिला रहे हैं।


खैर दोपहर के 1:00 बज रहे थे। सोमेश जी अपने कमरे से तैयार होकर बाहर निकले तो एक पल के लिए बेटे बहू पोते पोती उन्हें देखते ही रह गए। हमेशा कुर्ता पजामा पहने रहने वाले पापा जी आज सूट टाई में तैयार होकर जँच रहे थे। पापा जी बार-बार घड़ी की तरफ देख रहे थे फिर उन्होंने अपने बड़े बेटे से पूछा,


"अरे बेटा तुम्हारी मम्मी आ गई क्या?"

" नहीं पापा बस आने में ही होगी "

थोड़ी देर बाद डोर बेल बजी। बड़ी बहू ने जाकर दरवाजा खोला तो मम्मी जी को देखकर एकटक निहारती ही रह गई। हरी बंधेज की साड़ी, उस पर मैचिंग ब्लाउज, साथ ही बालों का सुंदर सा जुड़ा बना रखा था और हल्का सा मेकअप। आज वाकई मम्मी जी कहर ढा रही थी।

सोमेश जी तो मधु जी को निहारते ही रह गए। इतने में दोनों बेटे एक साथ ही बोल पड़े,

" वाह! क्या बात है मम्मी, आज तो बहुत सुंदर लग रही हो"

दोनों बेटों की बात सुनकर मधु जी मुस्कुरा दी। इतने में सोमेश जी बोले,

" तो मधु जी, तैयार है आप साथ चलने के लिए"

" जी जरूर"

कहकर दोनों पति पत्नी वहां से निकल गए। उनके जाते ही दोनों बहुओं ने फिर से बड़बड़ाना शुरू कर दिया,


" यह क्या शोभा देता है मम्मी जी और पापा जी को? इस उमर में एक दूसरे का हाथ पकड़े घूमने जा रहे हैं। और तुम दोनों भाई कुछ कहते भी नहीं"

"और देखा नहीं, कैसे तैयार होकर जा रहे हैं। इनके पोते पोतियो की शादी की उम्र होने को आई और इन्हें देखो, कल को यह सब सिखाएंगे अपनी पोता बहुओं को। कम से कम पूछ तो लेना चाहिए था हमसे"

" क्यों इसमें गलत क्या है? मम्मी और पापा दोनों पति-पत्नी है। एक दूसरे के साथ समय बिताना उनका हक है। इसके लिए भला किसी की इजाजत की क्या जरूरत है"

" और रही बात उम्र की, तो उम्र का क्या है? वह तो सिर्फ एक अंक है। उम्र के साथ क्या भावनाएं बदल जाती है। तुम लोगों के हिसाब से तो कल को हम लोग पति पत्नी ही नहीं रहेंगे। और हमारे बेटे बहू डिसाइड करेंगे कि हमें क्या करना है और क्या नहीं"

दोनों भाईयों ने एक साथ सुर मिलाकर कहा। जब बात खुद पर आई तो दोनों बहूए एक बार सोचने को मजबूर हो गई कि गलत तो कुछ भी नहीं है। आखिर पति पत्नी का रिश्ता तो उम्र के साथ प्रगाढ़ होता है, तो उसे उम्र के बंधन में बांधने की क्या जरूरत है।

मौलिक व स्वरचित

✍️लक्ष्मी कुमावत द्वारा लिखी गई



रविवार, 1 अक्टूबर 2023

*खुद को खोजना *

  इस घर की चार दिवारी में, मै सब कुछ ढूंढ लेती हूं,सभी के 

रुमाल, घड़ी,मोज़े, किताबें,

पिन, सुई..खोई हुई बालियां….

इधर उधर रखी गई चाबियां..

सब कुछ ...जैसे मुझे ही  सब कुछ पता होती है,

हर एक चीज़ जो घर में, किसी को भी, टाइम पर ,नहीं मिलती है

मैं सब को खोज के उन्हें देती हूं।

पर मैं ढूंढ ही नहीं पा रहीं हूं  ख़ुद को ...

 क्यों न अचानक ,

ऐसा कभी हो जाए कि ,मैं मिल जाऊं किसी रोज़,

अपने आप को,भी, घर के किसी कोने में,

और कहूं ,अपने आप से ,

देखो ,अब में खुद को मिल गई हूं, खुद को में खुद से

अब खोना नहीं चाहती हूं  ।।

सच बात ये हुई के

दूसरों के कामों में अपने आपको इतना उलझा लिया,कि,खुद को,अपने लिए, खोजने का वक्त ही नहीं मिला,

अब आज जब अपने लिए वक्त ही वक्त है,तो सब को, हमारा,ये, अमूल्य वक्त ,फिजूल सा लगता है,

हमे ,अब,अपने, तरीके से ,जीने में भी , सोचना पड़ता है

 न  जाने ऐसा   क्यों होता है ?

कभी कभी ,ऐसा मन पसंद काम को करने में भी   एक, डर  सा विचार ,दिल के कोने से आता है,क्या ये काम मेरे लिए किसी को फिजूल तो नही लगेगा,

जीवन के आखरी पड़ाव में भी क्या जीवन जीने की कला सीखनी पढ़ेगी? बस मन ही है ना,तो

ऐसा विचार भी आता है ,ऐसा क्यों होता है?प्रश्न सा मन में आता है