आज यूही बैठे बैठे आंखे भर आई हैं,
कहीं से मां की याद दिल को छूने चली आई है,
वो अपने आंचल से उसका ही मुंह पोछना और भाग कर गोदी मे, मुझे गिरते ही उठा लेना,
रसोई से आती वोही पुरानी भीनी भीनी सी खुशबु ,
आज फिर मुंह में पानी ले आई है,
कौन मुझे ऐसे अब प्यार दुलार से खाना परोसेगा,
सोचती हूं, है वो मुझसे मां मीलों दूर हैं,इधर मेने भी तो
वैसे ,बसा लिया है अपना एक नया घर संसार,और अपना एक परिवार,
बन गई हूं जैसे मैं ,खुद ही उसी, मां का एक अवतार,
फिर भी न जाने क्यों आज मन यूं ऐसा क्यो चाह रहा है
बन जाऊं मै फिर से वो नादान् बच्ची सी,,
कभी स्वेटर बुनती, तो कभी कुर्ती पर कढाई करती ,,कभी वो अपने कमरे मे,नाक से फिसलती ऍनक की परवाह किये बिना,
पर जब सुनेगी कि रो रही है उसकी बेटी
फट से कहेगी उठकर,"बस कर रोना अब तो हो गई है तू बडी"
फिर प्यार से ले लेगी अपनी बाहों मे मुझको
एक एह्सास दिला देगी मुझे ,खुदाई का,
जाडे की नर्म धूप की तरह ,आगोश मे ले लिया करती थी मुझे वो,
इस ख्याल से ही रुक गये,मेरे आंसू
और खिल उठी मुस्कान मेरे होठों पर...उसका ये अहसास मुझे उसकी मौजूदगी दे गया,में वापस सुखद ताजगी सी महसूस करने लगी,मजबूर थी मैं,
कहीं से मां की याद आज फिर यूं दिल को छूने चली आई है