*माँ चली गई...*
*कहीं बादलों के पार...*
*उसका श्रीनगर का कमरा खाली हो गया*
*और घर का मंदिर सूना हो गया. .*
*माँ के लिए मंदिर में दिया ज़रूर जलाती हूँ,*
*जो जो माँ करती थी*
*सबकुछ वेसे ही दुहराती हूं . .*
*लेकिन ईश्वर से कभी*
*कुछ मांग नहीं पाती हूँ,*
*क्या मांगूं और कैसे मांगती ,*
*किसी को भी कैसे समझाती*
*कि मेरी आवाज को आसमान तक*
*जाने की आदत ही नहीं पड़ी,*
*जब तक माँ थी,*
*अपने लिए मांगने की*
*जरुरत ही नहीं पड़ी. .*
*अब मैं जानती हूं*
*मेरी आवाज उस लोक में*
*ईश्वर तक नहीं पहुंचेगी*
*लेकिन फिक्र क्या,* *मुझे विश्वास है*
*मेरी माँ है वहाँ,*
*इसीलिए बेफिक्र हूं,वो सब देख लेगी..*
शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंThanx dear
हटाएंमां के लिए दिल में सदैव एक कोना उसके जाने के बाद भी बना रहता है.....सुपर बहना
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