शनिवार, 27 मई 2023

*खुशनुमा लम्हें*

 अब लोग बुढ़ापा एंजॉय करने लगे,

खुलकर जीने और हंसने लगे,

खुद को पोते पोतियों में नहीं उलझाते,

अपने जैसे दोस्तों संग ये वक्त बिताते।

कोई लाचारी बेबसी अब नहीं दिखती,

इनकी जिंदगी इनकी शर्तों पर गुज़रती,

कभी ये गाने गाते, कभी ठुमके लगाते,

अपनी कहानी सुनाते, खुलकर मुस्कुराते।

इनकी किट्टीयां होती, जन्मदिन मनाते,

अपनी पेंशन खुद पर ही ये लूटाते,

ना ताना मारते, ना बहुओं की सुनते,

अपने अधूरे सपने इस उम्र में बुनते।

फेस बुक यू ट्यूब और स्टार मेकर्स स्मुल के ये दीवाने होते,

इनके भी किस्से फंसाने होते,

इनको भी दोस्तों का इंतजार होता,

पार्क में रोज़ जमघट यार होता।

अब के बुजुर्ग समझने लगे,

जिंदगी के बचे लम्हें जीने लगे,

समझ गए साथ कुछ नहीं जाने वाला,

तो खुशनुमा लम्हें ये सहेजने लगे।


रविवार, 14 मई 2023

*मातृ दिवस*

 *माँ चली गई...* 

*कहीं बादलों के पार...* 

*उसका  श्रीनगर का कमरा खाली हो गया* 

*और घर का मंदिर सूना  हो गया. .*

*माँ के लिए मंदिर में दिया ज़रूर जलाती हूँ,*

*जो जो माँ करती थी* 

*सबकुछ वेसे ही दुहराती हूं . .*

*लेकिन ईश्वर से कभी*

*कुछ मांग नहीं पाती  हूँ,*

*क्या मांगूं और कैसे मांगती ,* 

*किसी को भी कैसे समझाती* 

*कि मेरी आवाज को आसमान तक* 

*जाने की आदत ही नहीं पड़ी,* 

*जब तक माँ थी,* 

*अपने लिए मांगने की* 

*जरुरत ही नहीं पड़ी. .*

*अब मैं जानती   हूं*

*मेरी आवाज उस लोक में*

*ईश्वर तक नहीं पहुंचेगी*

*लेकिन फिक्र क्या,* *मुझे विश्वास है*

*मेरी माँ है वहाँ,* 

*इसीलिए बेफिक्र हूं,वो सब देख लेगी..*