सोमवार, 9 जनवरी 2023

कुछ पंक्तियां, एक अपनी उम्र के लिए

 

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।

अब मैं 50 पार कर,सबकी " माँ " हो गई हूँ ।

चांदी बालो में उतर आई,

नज़र पर ऐनक चढ़ गई,

नज़ाकत दूर जा रही,

कहते हें  सब 'मोटी' हो गई हूँ ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूँ।

सुबह जल्दी नही होती उठने की,

रात की भी चिंता नही होती

नये नये पकवानो की अब फरमाईश भी नही होती ।

"परिंदे"उड़ान भर कर दूर है जा बसे

अब तो रोज उनसे भी बाते नही होती ।

चिड़ियों  से बाते करती हूँ  पौधों को नहलाती धुलाती हूँ 

शामो को विचरती हूँ आवरगी से,

किसी से नही डरती

कहते " वो "भी अब तो,

'''''::::मैं बदल गई हूँ ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।

लिखने लगी कहानी,करने लगी कविता

फिर भी आईने में देख खुद को जब-तब संवरती हूं

"वक्त" नही था पहले,

अब पहले सा "वक्त" नही

खोजती हूं नित दोस्त नये मशगूल रहती हूं ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।।।

मन "सबल" हुआ मेरा ,अहसास "निर्बल" हो गये ।

पीड़ा देख हर किसी की मैं भी सिसकती हूं ।।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारयों से  मुक्त हो गई हूँ ।।

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