थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।
अब मैं 50 पार कर,सबकी " माँ " हो गई हूँ ।
चांदी बालो में उतर आई,
नज़र पर ऐनक चढ़ गई,
नज़ाकत दूर जा रही,
कहते हें सब 'मोटी' हो गई हूँ ।
थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूँ।
सुबह जल्दी नही होती उठने की,
रात की भी चिंता नही होती
नये नये पकवानो की अब फरमाईश भी नही होती ।
"परिंदे"उड़ान भर कर दूर है जा बसे
अब तो रोज उनसे भी बाते नही होती ।
चिड़ियों से बाते करती हूँ पौधों को नहलाती धुलाती हूँ
शामो को विचरती हूँ आवरगी से,
किसी से नही डरती
कहते " वो "भी अब तो,
'''''::::मैं बदल गई हूँ ।
थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।
लिखने लगी कहानी,करने लगी कविता
फिर भी आईने में देख खुद को जब-तब संवरती हूं
"वक्त" नही था पहले,
अब पहले सा "वक्त" नही
खोजती हूं नित दोस्त नये मशगूल रहती हूं ।
थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।।।
मन "सबल" हुआ मेरा ,अहसास "निर्बल" हो गये ।
पीड़ा देख हर किसी की मैं भी सिसकती हूं ।।
थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारयों से मुक्त हो गई हूँ ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
thanx for your valuable comments