मंगलवार, 24 जनवरी 2023

🙏 ध्यान🙏

एक महिला रोज मंदिर जाती थी l

एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी ।

इस पर पुजारी ने पूछा क्यों ???


तब महिला बोली मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर मे अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं l


कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है l

कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं l

इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा सही है..

परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं।


महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?

पुजारी ने कहा- एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नही चाहिये।

महिला बोली-मैं ऐसा कर सकती हूँ फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा कर दिखाया।


उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे :-

1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा l

2.क्या आपने किसी को मंदिर मे गपशप करते देखा l

3.क्या किसी को पाखंड करते देखा l

महिला बोली-नही मैंने कुछ भी नही देखा l

फिर पुजारी बोले- जब आप परिक्रमा लगा रही थी तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमे से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नही दिया।

अब जब भी आप मंदिर आये तो सिर्फ अपना ध्यान भगवान

में ही लगाना

फिर आपको कुछ दिखाई ही नही देगा ।

सिर्फ भगवान ही सर्ववृत दिखाई देगा

जब ऐसा होगा तो स्वयं ही कल्पना कर लीजियेगा।

रविवार, 22 जनवरी 2023

दहल़ीज

उम्र की दहलीज पर आकर

अब जाकर एहसास हुआ

जीवन के इस अंतराल में

हमने़ बहुत कुछ खोया

और बहुत कुछ है पाया


मन की दहलीज तो ख्वाहिशें बन

तितलियों के संग उड़ती है

आसमा के इंद्रधनुषी रंगों के संग

यूं ही विचरती है


तन की दहलीज सीमा में रहती

हिदायतें ,फर्ज ,जिम्मेदारी निभाती

समाज के बंधन में बॅंधी रहतीं

कभी अधूरी सी यूं खड़ी रहती


वक्त की दहलीज पर 

कभी हम रुक जाते हैं

कभी फैसलों के समक्ष

मूक बधिर हो जाते हैं

 अपने कर्मों के जाल में

खुद ही फॅंस जाते हैं


घर की दहलीज पर खड़े होकर

कई चिंताएं सताती हैं

कभी घर के अंदर 

कभी घर के भीतर औरत

बीच में ही फंस जाती है


मायकें की दहलीज

लड़कियों के लिए

बेहद अज़ीज़ होती है

सपने कई बुनती हैं

उड़ाने नई भरती हैं


ससुराल की दहलीज पर

मां के संस्कारों को ओढ़

आती हैं बेटियॉं

नए रूप में फिर से

 ढल जाती हैं बेटियां


आंखों की दहलीज पर

कभी सपने सुहाने आते हैं

कभी उदासी और दुख में

भरकर आंसू आ जाते हैं


पलकों की दहलीज पर

इंतजार सब ने देखा है

ए जिंदगी तुझ पर हमने 

सिर्फ एतबार रखा है


इश्क की दहलीज पर

कभी लड़खड़ाते कभी चलते हैं

कभी गिरते कभी संभलते हैं

कभी आग को भी पानी समझते हैं


यौवन की दहलीज पर

धैर्य और विवेक का 

दीपक जलाना पड़ता है

मन हताश निराश ना हो कभी

इसके लिए वर्चस्व 

कायम रखना पड़ता है


दिल की दहलीज 

खुशी में दिखाती कई रंग

और मुसीबत में 

हो जाती है तंग


जिंदगी की दहलीज पर

जब शाम की आहट होती है

मन की ख्वाहिशें थम जाती हैं

तलाश सुकून की बढ़ जाती है


मौत की दहलीज पर 

खड़े शख्स़ ही बता सकते

जिंदगी की तलब क्या होती है

खुद पर लेकर खुद को सोचो

जिंदगी क्या होती है


औरत को मिलता मशवरा

रहनें आंगन की दहलीज पर

कौन कितना टिक पाता है

किसी भी दहलीज पर


शब्दों की दहलीज पर

जाने क्या क्या लिखते हैं

कभी कागज कोरा रह जाता है

कभी बहुत कुछ लिख जाते हैं


Ajana Singh ki post

सोमवार, 9 जनवरी 2023

कुछ पंक्तियां, एक अपनी उम्र के लिए

 

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।

अब मैं 50 पार कर,सबकी " माँ " हो गई हूँ ।

चांदी बालो में उतर आई,

नज़र पर ऐनक चढ़ गई,

नज़ाकत दूर जा रही,

कहते हें  सब 'मोटी' हो गई हूँ ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूँ।

सुबह जल्दी नही होती उठने की,

रात की भी चिंता नही होती

नये नये पकवानो की अब फरमाईश भी नही होती ।

"परिंदे"उड़ान भर कर दूर है जा बसे

अब तो रोज उनसे भी बाते नही होती ।

चिड़ियों  से बाते करती हूँ  पौधों को नहलाती धुलाती हूँ 

शामो को विचरती हूँ आवरगी से,

किसी से नही डरती

कहते " वो "भी अब तो,

'''''::::मैं बदल गई हूँ ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।

लिखने लगी कहानी,करने लगी कविता

फिर भी आईने में देख खुद को जब-तब संवरती हूं

"वक्त" नही था पहले,

अब पहले सा "वक्त" नही

खोजती हूं नित दोस्त नये मशगूल रहती हूं ।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारीयों से मुक्त हो गई हूं ।।।।

मन "सबल" हुआ मेरा ,अहसास "निर्बल" हो गये ।

पीड़ा देख हर किसी की मैं भी सिसकती हूं ।।

थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारयों से  मुक्त हो गई हूँ ।।