गुरुवार, 30 सितंबर 2021

इच्छाएं

दिल की आवाज


 मैने बच्चों को,उनके ऑफिस के लिए ,विदा किया।रसोई का काम समेटा और अपने लिए एक कप चाय बना कर थोड़ी देर सुस्ताने बैठ गई। जब से शादी होकर ससुराल आईं , मैं घर गृहस्थी के कामों में ही तल्लीन रहीं।   सास ससुर का काम ,चाय ,नाश्ता  भोजन, पानी सब यथासम्भव समय पर ही करने की कोशिश करतीं। जाइंट परिवार था तो समय भागा कटा था,पति फर्टिलाइजर में थे।आने जाने वालों का रेलमपेल सा लगा रहता था,उनका भी  सारा काम समय पर करती रहीं।  वक्त पर दो बच्चों का लालन पालन और पूरे घर को संभालते कैसे वक्त निकल जाता था जान ही नहीं पाई। अपनी इच्छा ,ख़्वाहिश कुछ थी ही नहीं।कोशिश करती कि सब काम समय पर हो जाएं और किसी को उनसे कोई शिकायत न हो। बच्चों की बहुत मन से ,परवरिश की ।पढ़ी लिखी थी तो दोनो बच्चो को खूब ध्यान रखकर पढ़ाया लिखाया, बड़े,बेटे की शादी हुई। दूसरे बेटे की नौकरी भी बाहर लगी। पति रिटायर हुए ।सास ससुर परलोक सिधार गए।इतना सब परिवर्तन हो जाने के बाद भी मेरी जिन्दगी अपनी ही  रफ्तार से चलती रही। बढ़ती उम्र ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था।अब मै इतनी भागदौड़ करने पर थक जाती थीं। एक दिन थोड़ी फुर्सत मिलने पर  सोचने लगीं कि जिंदगी में सबके लिए सब कुछ किया लेकिन अपने लिये मैने क्या किया? सारे शौक ,इच्छाएं और ख्वाहिशें तो परिवार के लिये  समर्पित हो गईं। अब तो अपने लिये सोच सकती हूँ।कभी मेरे भी बहुत शौक थे, कितनी अच्छी पेंटिंग बनाती थी।शादी के बाद से रंग और ब्रश को हाथ नहीं लगाया।कोशिश करके देखती हूँ कुछ कर पाती हूँ या नहीं। ऐसा निश्चय कर मैंअपने कमरे में गईं।पुराने सामान में से ब्रश निकाले।रंग सूख कर बदरंग हो चुके थे।बाजार से पेंटिंग का  सामान लाने के लिए  लिस्ट बनाई और अपना लक्ष्य पूरा करने के लिये बाजार निकल गईं। मुझे एहसास हुआ कि कोई सुने न सुने हमें  तो अपने दिल की आवाज  सुननी ही चाहिए। आज में अपने शौक को पूरा करती हूं,कुछ  बच्चे भी आ जाते हैं तो उनके साथ अपने शौक को पूरा करने में,व्यस्त रहती हूं,

अनिता सुखवाल