शनिवार, 15 सितंबर 2018

"खुशी" का पता**

*"खुशी"*

बहुत दिन बाद पकड़ में आई...
थोड़ी सी खुशी...तो पूछ लिया,
"कहाँ रहती हो आजकल....ज्यादा मिलती नही?",
"यही तो हूँ" जवाब मिला।

"बहुत भाव खाती हो...कुछ सीखो अपनी बहन से...
...हर दूसरे दिन आती है मिलने हमसे .....परेशानी"।
"आती तो मैं भी हूं...लेकिन आप ध्यान नही देते"।

"अच्छा?.... कहाँ थी तुम जब पड़ोसी ने नई गाड़ी ली?"
"आपकी बेटी की टेस्ट रिपोर्ट पढ़ रही थी...
जिस बीमारी का डर था वो नही निकली...वहीं खड़ी चैन की सांस ले रही थी"।

कुछ शर्मसार तो हुए हम
लेकिन हार नही मानी
"और तब कहाँ थी जब रिश्तेदार ने बड़ा घर बनाया?"
"तब आपके बेटे की जेब में  थी...उसकी पहली कमाई बन कर"।

"और तब कहाँ थी..."
अगली शिकायत होंठो पे थी जब उसने टोक  दिया बीच मे।

"मैं रहती हूँ..…
कभी आपकी पोतियों की किलकारियो में,
कभी रास्ते मे मिल जाती हूं एक बिछड़े दोस्त के रूप में,
कभी एक अच्छी फिल्म देखते हुए,
कभी गुम कर मिली हुई बालियों में,
कभी घरवालों की तालियों में,
कभी मानसून की पहली बारिश में,
कभी रेडियो पे पुराने गाने में,
दरअसल...थोड़ा थोड़ा बांट देती हूँ, खुद को
छोटे छोटे पलों में....उनके अहसासों में
लगता है चश्मे का नंबर बढ़ गया है आपके
सिर्फ बड़ी चीज़ो में ही ढूंढते हो मुझे
वहाँ भी आती हूं मैं...लेकिन कभी कभी
खैर...अब तो पता मालूम हो गया ना मेरा
अब ढूंढ लेना मुझे
लेकिन हाँ...चश्मे का नंबर बदलवा के"..😊😊

शनिवार, 8 सितंबर 2018

मेरी उम्र

*मैं उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,*

*जब भी यह सवाल कोई पूछता है,*
*मैं सोच में पड़ जाती हूँ,*

*बात यह नहीं, कि मैं,*
*उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,*
*बात तो यह है, की,*
*मैं हर उम्र के पड़ाव को,*
*फिर से जीना चाहती हूँ,*
*इसलिए जबाब नहीं दे पाती हूँ,*

*मेरे हिसाब से तो उम्र,*
*बस एक संख्या ही है,*

*जब मैं बच्चो के साथ बैठ,*
*कार्टून फिल्म देखती हूँ,*
*उन्ही की, हम उम्र हो जाती हूँ,*
*उन्ही की तरह खुश होती हूँ,*
*मैं भी तब सात-आठ साल की होती हूँ,*

*और जब गाने की धुन में पैर थिरकाती हूँ,*
*तब मैं किशोरी बन जाती हूँ,*

*जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनती हूँ,*
*उनकी ही तरह, सोचने लगती हूँ,*

*दरअसल मैं एकसाथ,*
*हर उम्र को जीना चाहती हूँ,*

*इसमें गलत ही क्या है?*
*क्या कभी किसी ने,*
*सूरज की रौशनी, या,*
*चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?*

*या फिर कल कल करती,*
*बहती नदी की धारा से उम्र पूछी?*

*फिर मुझसे ही क्यों?*

*बदलते रहना प्रकृति का नियम है,*
*मैं भी अपने आप को,*
*समय के साथ बदल रही हूँ,*

*आज के हिसाब से,*
*ढलने की कोशिश कर रही हूँ,*

*कितने साल की हो गयी मैं,*
*यह सोच कर क्या करना?*

*कितनी उम्र और बची है,*
*उसको जी भर जीना चाहती हूँ,*

*एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,*
*वह पल, किसी के भी जीवन में,*
*कभी भी आ सकता है,*

*फिर क्यों न हम,*
*हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,*
*हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..*