शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

हाथ जोड़ दिए मैंने

*दर्द कागज़ पर,*
          *मेरा बिकता रहा,*

*मैं बैचैन था,*
          *रातभर लिखता रहा..*

*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*

*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपता रहा..*

*दरख़्त होता तो,*
          *कब का टूट गया होता,*

*मैं था नाज़ुक डाली,*
          *जो सबके आगे झुकता रहा..*

*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*

*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*

*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*

*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई के सीखता रहा..!!*

*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*

*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*

*कुछ बेतुके झगड़े*,
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*

*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*,
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*

सुख" तू कहाँ मिलता है ???


*ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता    है*

*क्या   तेरा   कोई   पक्का   पता  है*

*क्यों   बन   बैठा   है    अन्जाना*

*आखिर   क्या   है   तेरा   ठिकाना।*

*कहाँ   कहाँ     ढूंढा   तुझको*

*पर   तू  न   कहीं  मिला  मुझको*

*ढूंढा   ऊँचे   मकानों   में*

*बड़ी  बड़ी   दुकानों   में*

*स्वादिष्ट   पकवानों   में*

*चोटी   के   धनवानों   में*

*वो   भी   तुझको   ही   ढूंढ   रहे   थे*

*बल्कि   मुझको   ही   पूछ   रहे   थे*

*क्या   आपको   कुछ   पता    है*

*ये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?*

*मेरे   पास   तो   "दुःख"  का   पता   था*

*जो   सुबह   शाम   अक्सर   मिलता  था*

*परेशान   होके   शिकायत     लिखवाई*

*पर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आई*

*उम्र   अब   ढलान    पे    है*

*हौसला  अब  थकान    पे     है*

*हाँ   उसकी   तस्वीर   है   मेरे   पास*

*अब   भी   बची   हुई   है    आस*

*मैं   भी   हार    नही    मानूंगा*

*सुख   के   रहस्य   को    जानूंगा*

*बचपन    में    मिला    करता    था*

*मेरे    साथ   रहा    करता    था*

*पर   जबसे    मैं    बड़ा   हो    गया*

*मेरा   सुख   मुझसे   जुदा   हो  गया।*

*मैं   फिर   भी   नही   हुआ    हताश*

*जारी   रखी    उसकी    तलाश*

*एक   दिन   जब   आवाज   ये    आई*

*क्या    मुझको    ढूंढ   रहा  है   भाई*

*मैं   तेरे   अन्दर   छुपा    हुआ     हूँ*

*तेरे   ही   घर   में   बसा    हुआ    हूँ*

*मेरा  नहीं  है   कुछ   भी    "मोल"*

*सिक्कों   में   मुझको   न   तोल*

*मैं  बच्चों   की    मुस्कानों    में    हूँ*

*पत्नी  के  साथ    चाय   पीने   में*

*"परिवार"    के  संग   जीने    में*

*माँ   बाप   के   आशीर्वाद    में*

*रसोई   घर   के  पकवानों   में*

*बच्चों   की   सफलता   में    हूँ*

*माँ    की   निश्छल  ममता  में  हूँ*

*हर   पल   तेरे   संग    रहता   हूँ*

*और   अक्सर   तुझसे   कहता   हूँ*

*मैं   तो   हूँ   बस   एक    "अहसास"*

*बंद कर   दे   तू   मेरी    तलाश*

*जो   मिला   उसी   में   कर   "संतोष"*

*आज  को   जी   ले   कल  की न सोच*

*कल  के   लिए   आज   को  न   खोना*

*मेरे   लिए   कभी   दुखी    न   होना।*

*मेरे   लिए   कभी   दुखी   न    होना ।।*

*मेरे    लिए    कभी दुखी   न   होना  ।।।*