शनिवार, 1 दिसंबर 2018

जातिवाद****


उसने पूछा तेरी जाति क्या है?
मैंने भी पूछा : एक मां की या एक महिला की ..?
उसने कहा - चल दोनों की बता ..
और कुटिल मुस्कान बिखेरी ।
मैंने भी पूरे धैर्य से बताया.......
एक महिला जब माँ बनती  है तो वो जाति विहीन हो जाती है..
उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा - वो कैसे..?
मैंने कहा .....
जब एक मां अपने बच्चे का लालन पालन करती है,
अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है ,
तो वो शूद्र हो जाती है..
वो ही बच्चा बड़ा होता है तो मां बाहरी नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है, तो वो क्षत्रिय हो जाती है..
जब बच्चा और बड़ा होता है, तो मां उसे शिक्षित करती है,
तब वो ब्राह्मण हो जाती है..
और अंत में जब बच्चा और बड़ा  होता है तो मां
उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर
अपना वैश्य धर्म निभाती है ..
तो हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन..
मेरा उत्तर सुनकर वो अवाक् रह गया । उसकी आँखों में
मेरे या हम महिलाओं या माँओं के लिए सम्मान व आदर का भाव था और मुझे अपने मां और महिला होनेपर पर गर्व का अनुभव हो रहा था।

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

*लफ़्ज़ों के खेल*

एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा:- बच्चा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया ?
सहेली ने कहा - कुछ भी नहीं!
उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है ?
क्या उस की नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?
*लफ्ज़ों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को अपनी फिक्र में छोड़कर चलती बनी।।*
थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया।।
फिर दोनों में झगड़ा हुआ।।
एक दूसरे को लानतें भेजी।।
मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।।
*जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहां से हुई ? उस फिजूल जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था।।*
रवि ने अपने जिगरी दोस्त आकाश से पूछा:- तुम कहां काम करते हो?
आकाश- फला दुकान में।। रवि- कितनी तनख्वाह देता है मालिक?
आकाश-18 हजार।।
रवि-18000 रुपये बस, तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है इतने पैसों में ?
आकाश- (गहरी सांस खींचते हुए)- बस यार क्या बताऊं।।
*मीटिंग खत्म हुई, कुछ दिनों के बाद आकाश अब अपने काम से बेरूखा हो गया।। और तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड कर दी।। जिसे मालिक ने रद्द कर दिया।। आकाश ने जॉब छोड़ दी और बेरोजगार हो गया।। पहले उसके पास काम था अब काम नहीं रहा।।*
एक साहब ने एक शख्स से कहा जो अपने बेटे से अलग रहता था।। तुम्हारा बेटा तुमसे बहुत कम मिलने आता है।। क्या उसे तुमसे मोहब्बत नहीं रही?
बाप ने कहा बेटा ज्यादा व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है।। उसके बीवी बच्चे हैं, उसे बहुत कम वक्त मिलता है।।
पहला आदमी बोला- वाह!! यह क्या बात हुई, तुमने उसे पाला-पोसा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, अब उसको बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता है।। तो यह ना मिलने का बहाना है।।
*इस बातचीत के बाद बाप के दिल में बेटे के प्रति शंका पैदा हो गई।। बेटा जब भी मिलने आता वो ये ही सोचता रहता कि उसके पास सबके लिए वक्त है सिवाय मेरे।।*
*याद रखिए जुबान से निकले शब्द दूसरे पर बड़ा गहरा असर डाल देते हैं।। बेशक कुछ लोगों की जुबानों से शैतानी बोल निकलते हैं।। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत से सवाल हमें बहुत मासूम लगते हैं।।*
जैसे-
*तुमने यह क्यों नहीं खरीदा।।*
*तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है।।*
*तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे चल सकती हो।।*
*तुम उसे कैसे मान सकते हो।।*
वगैरा वगैरा।।
इस तरह के बेमतलबी फिजूल के सवाल नादानी में या बिना मकसद के हम पूछ बैठते हैं।।
जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे ये सवाल सुनने वाले के दिल में
नफरत या मोहब्बत का कौन सा बीज बो रहे हैं।।
आज के दौर में हमारे इर्द-गिर्द, समाज या घरों में जो टेंशन होता जा रहा है, उनकी जड़ तक जाया जाए तो अक्सर उसके पीछे किसी और का हाथ होता है।।
वो ये नहीं जानते कि नादानी में या जानबूझकर बोले जाने वाले जुमले किसी की ज़िंदगी को तबाह कर सकते हैं।।
इसलिएकोशिश हो,किऐसी हवा फैलाने वाले हम ,नही बने।

शनिवार, 15 सितंबर 2018

"खुशी" का पता**

*"खुशी"*

बहुत दिन बाद पकड़ में आई...
थोड़ी सी खुशी...तो पूछ लिया,
"कहाँ रहती हो आजकल....ज्यादा मिलती नही?",
"यही तो हूँ" जवाब मिला।

"बहुत भाव खाती हो...कुछ सीखो अपनी बहन से...
...हर दूसरे दिन आती है मिलने हमसे .....परेशानी"।
"आती तो मैं भी हूं...लेकिन आप ध्यान नही देते"।

"अच्छा?.... कहाँ थी तुम जब पड़ोसी ने नई गाड़ी ली?"
"आपकी बेटी की टेस्ट रिपोर्ट पढ़ रही थी...
जिस बीमारी का डर था वो नही निकली...वहीं खड़ी चैन की सांस ले रही थी"।

कुछ शर्मसार तो हुए हम
लेकिन हार नही मानी
"और तब कहाँ थी जब रिश्तेदार ने बड़ा घर बनाया?"
"तब आपके बेटे की जेब में  थी...उसकी पहली कमाई बन कर"।

"और तब कहाँ थी..."
अगली शिकायत होंठो पे थी जब उसने टोक  दिया बीच मे।

"मैं रहती हूँ..…
कभी आपकी पोतियों की किलकारियो में,
कभी रास्ते मे मिल जाती हूं एक बिछड़े दोस्त के रूप में,
कभी एक अच्छी फिल्म देखते हुए,
कभी गुम कर मिली हुई बालियों में,
कभी घरवालों की तालियों में,
कभी मानसून की पहली बारिश में,
कभी रेडियो पे पुराने गाने में,
दरअसल...थोड़ा थोड़ा बांट देती हूँ, खुद को
छोटे छोटे पलों में....उनके अहसासों में
लगता है चश्मे का नंबर बढ़ गया है आपके
सिर्फ बड़ी चीज़ो में ही ढूंढते हो मुझे
वहाँ भी आती हूं मैं...लेकिन कभी कभी
खैर...अब तो पता मालूम हो गया ना मेरा
अब ढूंढ लेना मुझे
लेकिन हाँ...चश्मे का नंबर बदलवा के"..😊😊

शनिवार, 8 सितंबर 2018

मेरी उम्र

*मैं उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,*

*जब भी यह सवाल कोई पूछता है,*
*मैं सोच में पड़ जाती हूँ,*

*बात यह नहीं, कि मैं,*
*उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,*
*बात तो यह है, की,*
*मैं हर उम्र के पड़ाव को,*
*फिर से जीना चाहती हूँ,*
*इसलिए जबाब नहीं दे पाती हूँ,*

*मेरे हिसाब से तो उम्र,*
*बस एक संख्या ही है,*

*जब मैं बच्चो के साथ बैठ,*
*कार्टून फिल्म देखती हूँ,*
*उन्ही की, हम उम्र हो जाती हूँ,*
*उन्ही की तरह खुश होती हूँ,*
*मैं भी तब सात-आठ साल की होती हूँ,*

*और जब गाने की धुन में पैर थिरकाती हूँ,*
*तब मैं किशोरी बन जाती हूँ,*

*जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनती हूँ,*
*उनकी ही तरह, सोचने लगती हूँ,*

*दरअसल मैं एकसाथ,*
*हर उम्र को जीना चाहती हूँ,*

*इसमें गलत ही क्या है?*
*क्या कभी किसी ने,*
*सूरज की रौशनी, या,*
*चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?*

*या फिर कल कल करती,*
*बहती नदी की धारा से उम्र पूछी?*

*फिर मुझसे ही क्यों?*

*बदलते रहना प्रकृति का नियम है,*
*मैं भी अपने आप को,*
*समय के साथ बदल रही हूँ,*

*आज के हिसाब से,*
*ढलने की कोशिश कर रही हूँ,*

*कितने साल की हो गयी मैं,*
*यह सोच कर क्या करना?*

*कितनी उम्र और बची है,*
*उसको जी भर जीना चाहती हूँ,*

*एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,*
*वह पल, किसी के भी जीवन में,*
*कभी भी आ सकता है,*

*फिर क्यों न हम,*
*हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,*
*हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..*

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

हाथ जोड़ दिए मैंने

*दर्द कागज़ पर,*
          *मेरा बिकता रहा,*

*मैं बैचैन था,*
          *रातभर लिखता रहा..*

*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*

*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपता रहा..*

*दरख़्त होता तो,*
          *कब का टूट गया होता,*

*मैं था नाज़ुक डाली,*
          *जो सबके आगे झुकता रहा..*

*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*

*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा..*

*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*

*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई के सीखता रहा..!!*

*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*

*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*

*कुछ बेतुके झगड़े*,
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*

*जहाँ गलती नही भी थी मेरी*,
*फिर भी हाथ जोड़ दिए मैंने*

सुख" तू कहाँ मिलता है ???


*ऐ   "सुख"  तू  कहाँ   मिलता    है*

*क्या   तेरा   कोई   पक्का   पता  है*

*क्यों   बन   बैठा   है    अन्जाना*

*आखिर   क्या   है   तेरा   ठिकाना।*

*कहाँ   कहाँ     ढूंढा   तुझको*

*पर   तू  न   कहीं  मिला  मुझको*

*ढूंढा   ऊँचे   मकानों   में*

*बड़ी  बड़ी   दुकानों   में*

*स्वादिष्ट   पकवानों   में*

*चोटी   के   धनवानों   में*

*वो   भी   तुझको   ही   ढूंढ   रहे   थे*

*बल्कि   मुझको   ही   पूछ   रहे   थे*

*क्या   आपको   कुछ   पता    है*

*ये  सुख  आखिर  कहाँ  रहता   है?*

*मेरे   पास   तो   "दुःख"  का   पता   था*

*जो   सुबह   शाम   अक्सर   मिलता  था*

*परेशान   होके   शिकायत     लिखवाई*

*पर   ये   कोशिश   भी   काम  न  आई*

*उम्र   अब   ढलान    पे    है*

*हौसला  अब  थकान    पे     है*

*हाँ   उसकी   तस्वीर   है   मेरे   पास*

*अब   भी   बची   हुई   है    आस*

*मैं   भी   हार    नही    मानूंगा*

*सुख   के   रहस्य   को    जानूंगा*

*बचपन    में    मिला    करता    था*

*मेरे    साथ   रहा    करता    था*

*पर   जबसे    मैं    बड़ा   हो    गया*

*मेरा   सुख   मुझसे   जुदा   हो  गया।*

*मैं   फिर   भी   नही   हुआ    हताश*

*जारी   रखी    उसकी    तलाश*

*एक   दिन   जब   आवाज   ये    आई*

*क्या    मुझको    ढूंढ   रहा  है   भाई*

*मैं   तेरे   अन्दर   छुपा    हुआ     हूँ*

*तेरे   ही   घर   में   बसा    हुआ    हूँ*

*मेरा  नहीं  है   कुछ   भी    "मोल"*

*सिक्कों   में   मुझको   न   तोल*

*मैं  बच्चों   की    मुस्कानों    में    हूँ*

*पत्नी  के  साथ    चाय   पीने   में*

*"परिवार"    के  संग   जीने    में*

*माँ   बाप   के   आशीर्वाद    में*

*रसोई   घर   के  पकवानों   में*

*बच्चों   की   सफलता   में    हूँ*

*माँ    की   निश्छल  ममता  में  हूँ*

*हर   पल   तेरे   संग    रहता   हूँ*

*और   अक्सर   तुझसे   कहता   हूँ*

*मैं   तो   हूँ   बस   एक    "अहसास"*

*बंद कर   दे   तू   मेरी    तलाश*

*जो   मिला   उसी   में   कर   "संतोष"*

*आज  को   जी   ले   कल  की न सोच*

*कल  के   लिए   आज   को  न   खोना*

*मेरे   लिए   कभी   दुखी    न   होना।*

*मेरे   लिए   कभी   दुखी   न    होना ।।*

*मेरे    लिए    कभी दुखी   न   होना  ।।।*


शुक्रवार, 29 जून 2018

बाकी सब ठीक है


थोड़ी तकलीफ़ , थोड़ा गम, थोड़ी परेशानियाँ है
बाकी सब ठीक है ....

चंद मुश्किलें , थोड़ी उलझन ,  थोड़ी बेचैनियाँ है
बाकी सब ठीक है .....

कभी रुक सी जाती है धड़कन , ये साँसें अटक जाती हैं
कुछ उम्र की थकावट ,  कुछ बीमारियाँ है
बाकी सब ठीक है ......

जी रहे हैं हम ,  या यूँ की ,  रस्म अदायगी समझो
कुछ अड़चने , थोड़ी कठिनाइयाँ हैं
बाकी सब ठीक है ....

कहने को ,  यूँ तो ,  बहुत कुछ है लेकिन
कुछ बेबसी ,  कुछ मजबूरियाँ हैं
बाकी सब ठीक है .....

हों अपने ,  या की गैर ,  सब एक से हैं
यहाँ धोखे ,  वहाँ रुसवाईयाँ हैं
बाकी सब ठीक है ....

कभी लड़ पड़ते हैं मुझसे ,  कभी ,  एक ओर बिठा देते हैं
मेरे बच्चों में ! थोड़ा बचपना है , थोड़ी नादानियाँ हैं
बाकी सब ठीक है ......

समय की चोट से ,  दो हिस्सों में ...बँट गया है मन
एक तरफ शोर बहुत ,  एक तरफ खामोशियां है
बाकी सब ठीक है .......

मुद्दतों बाद मिला ,  तो ,  हँस के आईना बोला
शिकन है ,  दर्द है ,  चेहरे पे चंद ,  झाइयां हैं
बाकी सब ठीक है ......

गुरुवार, 28 जून 2018

तजुर्बा 🤔

"मैंने .. हर रोज .. जमाने को .. रंग बदलते देखा है,
उम्र के साथ .. जिंदगी को .. ढंग बदलते देखा है  !!

वो .. जो चलते थे .. तो शेर के चलने का .. होता था गुमान,
उनको भी .. पाँव उठाने के लिए .. सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी .. नजरों की .. चमक देख .. सहम जाते थे लोग,
उन्ही .. नजरों को .. बरसात .. की तरह ~~ रोते देखा है .. !!

जिनके .. हाथों के .. जरा से .. इशारे से .. टूट जाते थे ..पत्थर,
उन्ही .. हाथों को .. पत्तों की तरह .. थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी .. बिजली के कड़कने का .. होता था भरम,
उनके .. होठों पर भी .. जबरन .. चुप्पी का ताला .. लगा देखा है .. !!

ये जवानी .. ये ताकत .. ये दौलत ~~ सब कुदरत की .. इनायत है,
इनके .. रहते हुए भी .. इंसान को ~~ बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने .. आज पर .. इतना ना .. इतराना ~~ मेरे .. यारों,
वक्त की धारा में .. अच्छे अच्छों को ~~ मजबूर हुआ देखा है .. !!!

कर सको...तो किसी को खुश करो,
दुःख देते ...तो हजारों को देखा है.."

सोमवार, 7 मई 2018

*दर्द कागज़ पर,* 📝

*पता नहीं क्यों*
*मैं बैचैन थी,*
          *रातभर लिखती रही..*
*छू रहे थे सब,*⚡
          *बुलंदियाँ आसमान की,*
*मैं सितारों के बीच,*✨
        🌙 *चाँद की तरह छिपती रही..*
*अकड होती तो,*
          *कब का बांध टूट गया होता,*
*मैं था नाज़ुक डाली,*
          *जो सबके आगे झुकती रही.*
*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*
*रंग मेरा भी निखरा पर,*
         *मैं मेहँदी की तरह पीसती रही..*
*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*
*मैं समन्दर से राज,*
         *गहराई के सीखती रही..!!*
*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर.
..सभीको समय समझाऐगा ,
*बुलंदियाँ तू, छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*
*कुछ बेतुके झगड़े*, होते रहते हैं,
* इन्हें,कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*
*जहाँ गलती नही, भी थी मेरी*,
*फिर भी🙏🏻🙏🏻 हाथ जोड़ दिए मैंने*
*दर्द कागज़ पर यूं लिखकर मेंनें*
*समझदारी कर ली अपने आप से*

       

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

****कोशिश न कर****



तू
जिंदगी को जी
उसे समझने की
कोशिश न कर
सुन्दर सपनो के
ताने बाने बुन
उसमे उलझने की
कोशिश न कर
चलते वक़्त के साथ
तू भी चल
उसमे सिमटने की
कोशिश न कर
अपने हाथो को फैला,
खुल कर साँस ले
अंदर ही अंदर घुटने की
कोशिश न कर
मन में चल रहे
युद्ध को विराम दे
खामख्वाह खुद से
लड़ने की कोशिश न कर
कुछ बाते
भगवान् पर छोड़ दे
सब कुछ खुद सुलझाने की
कोशिश न कर
जो मिल गया
उसी में खुश रह
जो सकून छीन ले
वो पाने की कोशिश न कर
रास्ते की सुंदरता का
लुत्फ़ उठा
मंजिल पर जल्दी
पहुचने की कोशिश न कर....

रविवार, 15 अप्रैल 2018

एक बार...

*जब भी यह सवाल कोई पूछता है,*
*मैं सोच में पड़ जाती हूँ,*

*बात यह नहीं, कि मैं,*
*उम्र बताना नहीं चाहती हूँ,*
*बात तो यह है, की,*
*मैं हर उम्र के पड़ाव को,*
*फिर से जीना चाहती हूँ,*
*इसलिए जबाब नहीं दे पाती हूँ,*

*मेरे हिसाब से तो उम्र,*
*बस एक संख्या ही है,*

*जब मैं बच्चो के साथ बैठ,*
*कार्टून फिल्म देखती हूँ,*
*उन्ही की, हम उम्र हो जाती हूँ,*
*उन्ही की तरह खुश होती हूँ,*
*मैं भी तब सात-आठ साल की होती हूँ,*

*और जब गाने की धुन में पैर थिरकाती हूँ,*
*तब मैं किशोरी बन जाती हूँ,*

*जब बड़ो के पास बैठ गप्पे सुनती हूँ,*
*उनकी ही तरह, सोचने लगती हूँ,*

*दरअसल मैं एकसाथ,*
*हर उम्र को जीना चाहती हूँ,*

*इसमें गलत ही क्या है?*
*क्या कभी किसी ने,*
*सूरज की रौशनी, या,*
*चाँद की चांदनी, से उम्र पूछी?*

*या फिर खल खल करती,*
*बहती नदी की धारा से उम्र पूछी?*

*फिर मुझसे ही क्यों?*

*बदलते रहना प्रकृति का नियम है,*
*मैं भी अपने आप को,*
*समय के साथ बदल रही हूँ,*

*आज के हिसाब से,*
*ढलने की कोशिश कर रही हूँ,*

*कितने साल की हो गयी मैं,*
*यह सोच कर क्या करना?*

*कितनी उम्र और बची है,*
*उसको जी भर जीना चाहती हूँ,*

*एकदिन सब को यहाँ से विदा लेना है,*
*वह पल, किसी के भी जीवन में,*
*कभी भी आ सकता है,*

*फिर क्यों न हम,*
*हर पल को मुठ्ठी में, भर के जी ले,*
*हर उम्र को फिर से, एक बार जी ले..*


मंगलवार, 23 जनवरी 2018

उलझनें

उलझनें है बहुत उलझनें है बहुत
             सुलझा लिया करती हूँ
फोटो खिंचवाते वक्त मैं अक्सर
            मुस्कुरा दिया करती हूँ.....!

क्यों नुमाइश करूं मैं अपने
            माथे पर शिकन की
मैं अक्सर मुस्कुरा के
           इन्हें मिटा दिया करती हूँ

क्योंकि

जब लड़ना है खुद को खुद ही से......!
तो हार और जीत में कोई फर्क नहीं रखती हूं.....!

हारूँ या जीतूं कोई रंज नहीं है
         कभी खुद को जिता देती हूँ
कभी खुद ही जीत जाती हूं
         *इसलिए भी मुस्कुरा दिया करती हूँ* 🙏😊
             सुलझा लिया करती हूँ
फोटो खिंचवाते वक्त मैं अक्सर
            मुस्कुरा दिया करती हूँ.....!

क्यों नुमाइश करूं मैं अपने
            माथे पर शिकन की
मैं अक्सर मुस्कुरा के
           इन्हें मिटा दिया करती हूँ

क्योंकि

जब लड़ना है खुद को खुद ही से......!
तो हार और जीत में कोई फर्क नहीं रखती हूं.....!

हारूँ या जीतूं कोई रंज नहीं है
         कभी खुद को जिता देती हूँ
कभी खुद ही जीत जाती हूं
         *इसलिए भी मुस्कुरा दिया करती हूँ* 🙏😊

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

पता ही नहीं चला***

*समय चला, पर कैसे चला... *
            *पता ही नहीं चला...*
       *जिन्दगी कैसे गुजरती गई...*
            *पता ही नहीं चला...*
ज़िन्दगी की आपाधापी में,
कब निकली उम्र हमारी,
*पता ही नहीं चला।*
कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे,
कब कंधे तक आ गए,
*पता ही नहीं चला।*
एक कमरे से
शुरू हुआ सफर,
कब बंगले तक आ गया,
*पता ही नहीं चला।*
साइकिल के
पैडल मारते हुए,
हांफते थे उस वक़्त,
अब तो, बड़ी
कारों में घूमने लगे हैं,
*पता ही नहीं चला।*
हरे भरे पेड़ों से
भरे हुए जंगल थे तब,
कब हुए कंक्रीट के,
*पता ही नहीं चला।*
कभी थे ,जिम्मेदारी
माँ बाप की हम,
कब बच्चों के लिए
हुए जिम्मेदार हम,
*पता ही नहीं चला।*
एक दौर था जब
दिन में भी बेखबर सो जाते थे,
कब रातों की उड़ गई नींद,
*पता ही नहीं चला।*
बनेंगे कब हम माँ बाप
सोचकर कटता नहीं था वक़्त,
कब हमारे बच्चों को बच्चे हो गए,
*पता ही नहीं चला।*
जिन काले घने
बालों पर इतराते थे हम,
कब रंगना शुरू कर दिया,
*पता ही नहीं चला।*
होली और दिवाली मिलते थे,
यार, दोस्तों और रिश्तेदारों से,
कब छीन ली ,प्यार भरी
मोहब्बत ,आज दे दौर ने,
*पता ही नहीं चला।*
दर दर भटके हैं,
नौकरी की खातिर खुद,
कब करने लगे
लोग नौकरी हमारे यहाँ,
*पता ही नहीं चला।*
बच्चों के लिए
कमाने, बचाने में
इतने मशगूल हुए हम,
कब बच्चे हमसे हुए दूर,
*पता ही नहीं चला।*
भरे पूरे परिवार से
सीना चौड़ा रखते थे हम,
कब परिवार हम दो पर सिमटा,
*।।। पता ही नहीं चला ।।।*

सोमवार, 1 जनवरी 2018

हिसाब क्या रखें ..

*समय की* ..
*इस अनवरत बहती धारा में* ..
अपने चंद सालों का ..
हिसाब क्या रखें .. !!
*जिंदगी ने* ..
*दिया है जब इतना* ..
*बेशुमार यहाँ* ..
तो फिर ..
जो नहीं मिला उसका
हिसाब क्या रखें .. !!
*दोस्तों ने .. दिया है* ..
*इतना प्यार यहाँ* ..
तो दुश्मनी ..
की बातों का ..
हिसाब क्या रखें .. !!
*दिन हैं .. उजालों से* ..
*इतने भरपूर यहाँ* ..
तो रात के अँधेरों का ..
हिसाब क्या रखे .. !!
*खुशी के दो पल* ..
*काफी हैं .. खिलने के लिये* ..
तो फिर .. उदासियों का ..
हिसाब क्या रखें .. !!
*हसीन यादों के मंजर* ..
*इतने हैं जिंदगानी में* ..
तो चंद दुख की बातों का .. हिसाब क्या रखें .. !!
*मिले हैं फूल यहाँ* ..
*इतने किन्हीं अपनों से* ..
फिर काँटों की .. चुभन का हिसाब क्या रखें .. !!
*चाँद की चाँदनी* ..
*जब इतनी दिलकश है* ..
तो उसमें भी दाग है ..
ये हिसाब क्या रखें .. !!
*जब खयालों से .. ही पुलक* ..
*भर जाती हो दिल में ..*
तो फिर मिलने .. ना मिलने का .. हिसाब क्या रखें .. !!
*कुछ तो जरूर .. बहुत अच्छा है .. सभी में*  ..
फिर जरा सी .. बुराइयों का .. हिसाब क्या रखें .. !
🙏🏻🙏🏻💐💐