*मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ*
*हर मुश्किल से खुद को उबार लेती हूँ*
*नहीं मिलता वक्त घर गृहस्थी में*
*फिर भी अपने लिए वक्त निकाल लेती हूँ*
*टूटी होती हूँ अन्दर से कई बार मैं*
*पर सबकी खुशी के लिए मुस्कुरा लेती हूँ*
*गलत ना होके भी ठहराई जाती हूँ गलत*
*घर की शांति के लिए मैं चुप्पी साध लेती हूँ*
*सच्चाई के लिए लड़ती हूँ सदा मैं*
*अपनों को जिताने के लिए हार मान लेती हूँ*
*व्यस्त हैं सब प्यार का इजहार नहीं करते*
*पर मैं फिर भी सबके दिल की बात जान लेती हूँ*
*कहीं नजर ना लग जाये मेरी अपनी ही*
*इसलिए पति बच्चों की नजर उतार लेती हूँ*
*उठती नहीं जिम्मेदारियाँ मुझसे कभी कभी*
*पर फिर भी बिन उफ किये सब संभाल लेती हूँ*
*बहुत थक जाती हूँ कभी कभी*
*पति के कंधें पर सर रख थकन उतार लेती हूँ*
*नहीं सहा जाता जब दर्द,औंर खुशियाँ*
*तब अपनी भावनाओं को कागज पर उतार लेती हूँ*
*कभी कभी खाली लगता हैं भीतर कुछ*
*तब घर के हर कोने में खुद को तलाश लेती हूँ*
*खुश हूँ मैं कि मैं किसी को कुछ दे सकती हूँ*
*जीवनसाथी के संग संग चल सपने संवार लेती हूँ*
*हाँ मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ*
*अपनों की खुशियों के लिए अपना सबकुछ वार देती हूँ।*
*हर मुश्किल से खुद को उबार लेती हूँ*
*नहीं मिलता वक्त घर गृहस्थी में*
*फिर भी अपने लिए वक्त निकाल लेती हूँ*
*टूटी होती हूँ अन्दर से कई बार मैं*
*पर सबकी खुशी के लिए मुस्कुरा लेती हूँ*
*गलत ना होके भी ठहराई जाती हूँ गलत*
*घर की शांति के लिए मैं चुप्पी साध लेती हूँ*
*सच्चाई के लिए लड़ती हूँ सदा मैं*
*अपनों को जिताने के लिए हार मान लेती हूँ*
*व्यस्त हैं सब प्यार का इजहार नहीं करते*
*पर मैं फिर भी सबके दिल की बात जान लेती हूँ*
*कहीं नजर ना लग जाये मेरी अपनी ही*
*इसलिए पति बच्चों की नजर उतार लेती हूँ*
*उठती नहीं जिम्मेदारियाँ मुझसे कभी कभी*
*पर फिर भी बिन उफ किये सब संभाल लेती हूँ*
*बहुत थक जाती हूँ कभी कभी*
*पति के कंधें पर सर रख थकन उतार लेती हूँ*
*नहीं सहा जाता जब दर्द,औंर खुशियाँ*
*तब अपनी भावनाओं को कागज पर उतार लेती हूँ*
*कभी कभी खाली लगता हैं भीतर कुछ*
*तब घर के हर कोने में खुद को तलाश लेती हूँ*
*खुश हूँ मैं कि मैं किसी को कुछ दे सकती हूँ*
*जीवनसाथी के संग संग चल सपने संवार लेती हूँ*
*हाँ मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ*
*अपनों की खुशियों के लिए अपना सबकुछ वार देती हूँ।*