शनिवार, 30 दिसंबर 2017

फिर भी**

*दर्द कागज़ पर,*
          *मेरा बिकता रहा,*
*बैचैन थी मैं,*
          *रातभर लिखती रही..*
*छू रहे थे सब,*
          *बुलंदियाँ आसमान की,*
*मैं सितारों के बीच,*
          *चाँद की तरह छिपती रही..*
*दरख़्त होता तो,*
          *कब का टूट गई होती मैं,
* नाज़ुक डाली सी थी मैं*
          *जो सबके आगे झुकती रही..*
*बदले यहाँ लोगों ने,*
         *रंग अपने-अपने ढंग से,*
*रंग मेरा भी निखरा, पर,*
         * मेहँदी की तरह पीसती रही.मैं.*
*जिनको जल्दी थी,*
         *वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,*
*मैं समन्दर से  गहराईयों के राज,*
         *गहराई से , से सीखती रही..!!*
*"ज़िन्दगी कभी भी ले सकती है करवट...*
*तू गुमान न कर...*
*बुलंदियाँ छू हज़ार, मगर...*
*उसके लिए कोई 'गुनाह' न कर.*
*कुछ बेतुके झगड़े*,
*कुछ इस तरह खत्म कर दिए मैंने*
*जहाँ गलती नही ,भी थी मेरी*,
*फिर भी आदतन, हाथ जोड़ दिए मैंने*

बुधवार, 27 सितंबर 2017

**एक नारी की व्यथा**

*मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ*
*हर मुश्किल से खुद को उबार लेती हूँ*

*नहीं मिलता वक्त घर गृहस्थी में*
*फिर भी अपने लिए वक्त निकाल लेती हूँ*

*टूटी होती हूँ अन्दर से कई बार मैं*
*पर सबकी खुशी के लिए मुस्कुरा लेती हूँ*

*गलत ना होके भी ठहराई जाती हूँ गलत*
*घर की शांति के लिए मैं चुप्पी साध लेती हूँ*

*सच्चाई के लिए लड़ती हूँ सदा मैं*
*अपनों को जिताने के लिए हार मान लेती हूँ*

*व्यस्त हैं सब प्यार का इजहार नहीं करते*
*पर मैं फिर भी सबके दिल की बात जान लेती हूँ*

*कहीं नजर ना लग जाये मेरी अपनी ही*
*इसलिए पति बच्चों की नजर उतार लेती हूँ*

*उठती नहीं जिम्मेदारियाँ मुझसे कभी कभी*
*पर फिर भी बिन उफ किये सब संभाल लेती हूँ*

*बहुत थक जाती हूँ कभी कभी*
*पति के कंधें पर सर रख थकन उतार लेती हूँ*

*नहीं सहा जाता जब दर्द,औंर खुशियाँ*
*तब अपनी भावनाओं को कागज पर उतार लेती हूँ*

*कभी कभी खाली लगता हैं भीतर कुछ*
*तब घर के हर कोने में खुद को तलाश लेती हूँ*

*खुश हूँ मैं कि मैं किसी को कुछ दे सकती हूँ*
*जीवनसाथी के संग संग चल सपने संवार लेती हूँ*

*हाँ मैं एक नारी हूँ,मैं सब संभाल लेती हूँ*
*अपनों की खुशियों के लिए अपना सबकुछ वार देती हूँ।*

रविवार, 7 मई 2017

जाती हुई उम्र

*आज मुलाकात हुई,*
   *जाती हुई उम्र से !*

   *मैने कहा,..*
   *"जरा ठहरो !"*

   *तो वह हंसकर,*
   *इठलाते हुए बोली,..*

   *"मैं उम्र हूँ, ठहरती नहीं !*
   *पाना चाहते हो मुझको,*
   *तो मेरे हर कदम के संग चलो !!"*

   *मैंने मुस्कराते हुए कहा,..*

   *"कैसे चलूं मैं*
   *बनकर तेरा हमकदम !*
   *संग तेरे चलने पर छोड़ना होगा,*
   *मुझको मेरा बचपन,*
   *मेरी नादानी,*
   *मेरा लड़कपन !*

   *तू ही बता दे कैसे*
   *समझदारी की*
   *दुनियां अपना लूँ !*

   *जहाँ हैं नफरतें, दूरियां,*
   *शिकायतें और अकेलापन !!"*

   *उम्र ने कहा,..*

   *"मैं तो दुनियां ए चमन में,*
   *बस एक 'मुसाफिर' हूँ !*

   *गुजरते वक्त के साथ*
   *इक दिन,*
   *यूं ही गुजर जाऊँगी !*

   *करके कुछ*
   *आँखों को नम,*
   *कुछ दिलों में*
   *यादें बन बस जाऊँगी !!"*

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

MAN


MAN


RISHTA


**RISHTA**
[DEDICATED TO MOM]



JASHHNN

JASHHNN


AAPKE BAGEIR


**AAPKE BAGEIR**
[MISS YOU ]



JIWAN BNAM HOTEL

**JIWAN BNAM HOTEL**





BETI HE TO JIWAN HE



**BETI HE TO JIWAN HE**




DHAYI AKSHAR

*DHAYI AKSHAR *



VIVAH KE 25 VARSH

VIVAH KE 25 VARSH****




NOT REACHABLE

NOT REACHABLE



BETIYA


BETIYA

SAMRPIT JIWAN


**SAMRPIT JIWAN **



SHADI KYA HE?

SHADI KYA HE?


DEDICATED TO MY FATHER LET.SHRI *M.M.TRIPATHI*




DEDICATED TO MY FATHER 
LET.SHRI *M.M.TRIPATHI*



mom sweet mom


mom sweet mom



not reachable

meri kavita
not reachable ;)