गुरुवार, 26 जून 2014

क्रोध और गहरे घाव

पेड़ में कील
बहुत समय पहले की बात है, एक
गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत
ही गुस्सैल था, छोटी-
छोटी बात पर
अपना आपा खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह
देता. उसकी इस आदत से परेशान
होकर एक दिन उसके पिता ने उसे
कीलों से भरा हुआ एक
थैला दिया और कहा कि , ” अब जब
भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले
में से एक कील निकालना और घर के
बाहर पेड़ में ठोक देना.”
पहले दिन उस लड़के को चालीस बार
गुस्सा आया और
इतनी ही कीलें
पेड़ में ठोंक दी. पर धीरे-
धीरे
कीलों की संख्या घटने
लगी, उसे लगने
लगा कि कीलें ठोंकने में
इतनी मेहनत करने से अच्छा है
कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ
हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद तक
काबू करना सीख लिया. फिर एक दिन
ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार
भी अपना आपा नहीं खोया और
एक भी कील
नहीं ठोंकनी पड़ी .
जब उसने अपने पिता को यह बात बताई
तो उन्होंने फिर उसे एक काम दे दिया ! उन्होंने
कहा कि ,” अब हर उस दिन, जिस दिन तुम्हे
एक बार भी गुस्सा ना आये, इस पेड़
में से एक कील निकाल देना.”
लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत
समय बाद वो दिन भी आ गया जब
लड़के ने पेड़ में
लगी आखिरी कील
भी निकाल दी और जाकर
अपने पिता को ख़ुशी से ये बात
बतायी.
तब पिताजी उसका हाथ पकड़कर उसे
उस पेड़ के पास ले गए और बोले, ” बेटे तुमने
बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम पेड़
में हुए छेदों को देख पा रहे हो. अब वो पेड़
कभी भी वैसा नहीं बन
सकता जैसा वो पहले था. ये कीलों के
निशान कभी नही मिटेंगे.
जब तुम क्रोध में किसी को कुछ
कहते हो तो वे शब्द
भी इसी तरह सामने वाले
व्यक्ति पर सदा के लिए गहरे घाव छोड़ जाते हैं.”
इसलिए अगली बार अपना temper
loose करने से पहले सोचिये कि क्या आप
भी उस पेड़ में और
कीलें ठोकना चाहते हैं !!!

*********** विवशता***************

उस दिन ट्रेन लेट होकर रात्रि 12 बजे पहुँची।
बाहर एक वृद्ध रिक्शावाला ही दिखा जिसे कई यात्री जान बूझकर
छोड़ गए थे। एक बार मेरे मन में भी आया, इससे चलना पाप
होगा,फिर मजबूरी में उसी को बुलाया, वह भी बिना कुछ पूछे
चल दिया।
कुछ दूर चलने के बाद ओवरब्रिज की चढ़ाई थी, तब
जाकर पता चला, उसका एक ही हाथ था। मैंने सहानुभूतिवश पूछा, ‘‘एक
हाथ से रिक्शा चलाने में बहुत ही परेशानी होती होगी?’’
‘‘बिल्कुल नहीं बाबूजी, शुरू में कुछ दिन हुई थी।’’
रात के सन्नाटे में वह एक ही हाथ से
रिक्शा खींचते हुए पसीने–
पसीने हो रहा था । मैंने पूछा, ‘एक हाथ
की क्या कहानी है?’’
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद वह बोला, ‘‘गाँव में
खेत के बँटवारे में रंजिश हो गई, वे लोग दबंग और
अपराधी स्वभाव के थे,
मुकदमा उठाने के लिए दबाव डालने लगे।’’
वह कुछ गम्भीर हो गया और आगे की बात बताने से
कतराने लगा, किन्तु मेरी उत्सुकता के आगे वह विवश
हो गया और बताया, ‘‘एक रात जब मैं खलिहान में सो रहा था,
जान मारने की नीयत से मुझ पर वार किया गया। संयोग से
वह गड़ासा गर्दन पर गिरने के बजाए हाथ पर
गिरा और वह कट गया।’’
‘‘क्या दिन की मजदूरी से काम नहीं चलता जो इस उम्र में रात
में रिक्शा चला रहे हो?’’ मुझे उस पर दया आई।
‘‘रात्रि में भीड़ कम होती है जिससे रिक्शा चलाने में
आसानी होती है।’’ उसने धीरे से कहा।
उसकी विवशता समझकर घर पर मैंने पाँच रूपए के
बजाए दस रुपए दिए। सीढि़याँ चढ़कर
दरवाजा खुलवा ही रहा था कि वह भी हाँफते हुए पहुँचा और पाँच रुपए का नोट वापस करते हुए बोला, ‘‘आपने ज्यादा दे दिया था।’’
‘‘आपकी अवस्था देखकर और रात की मेहनत सोचकर
कोई अधिक नहीं है, मैं खुशी से दे रहा हूँ।’’ उसने जवाब
दिया, ‘‘मेरी प्रतिज्ञा है एक हाथ के रहते हुए भी दया की भीख नहीं लूँगा, तन ही बूढ़ा हुआ है मन नहीं।’’
मुझे लगा पाँच रुपए अधिक देकर मैंने उसका अपमान कर
दिया है।

मंगलवार, 24 जून 2014

**बिखरे सपने **



                             
                             **बिखरे सपने **

 रेनू  ऍम ऍस  करने  लंदन  जा रही थी वो बहुत खुश थी क्योकि यही तो उसका सपना था जो अब अब हकीकत बनने  जा रहा था ,,सारी तैयारियाँ हो चुकी  थी ,जाने के चंद दिन ही बचे थे ,आज उसकी प्रिय सहेली उससे मिलने आयी ,ढेर    सारी बधाई देते हुए अचानक उसने जब पासपोर्ट देखा तो वो चौक उठी.  रेनू के  पासपोर्ट जारी किये जाने की तारीख तो कब की खत्म हो चुकी   थी ,समय रहते रेनू ने , उसे रीन्यू नही करवाया था ;अब उसका  माथा ठनका ,परन्तु अब इस कार्यवाही के पूरा  होने मे समय लगेगा और तब तक एडमिशन की तारीख हाथ से निकल जाएगी ,
ऐसे वाकये कई घरो में होते   है; अपने ड्राइविंग लाइसेंस और अन्य जरूरी डॉक्युमेंट्स समय  समय पर चेक  करते रहे ; कही रेनू   की तरह आपके सपने नही बिखर जाये
                              
                                                                अनीता सुखवाल
 address;                     
                                                                 उदयपुर
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madhav niwas