रविवार, 22 सितंबर 2013

छोटी छोटी खुशिया

एक दिन किसी निर्माण के दौरान भवन की छटी मंजिल से सुपर वाईजर ने नीचे कार्य करने वाले मजदूर को आवाज दी.
निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण नीचे काम करने वाला मजदूर कुछ समझ नहीं सका की उसका सुपरवाईजर उसे आवाज दे रहा है.
फिर
सुपरवाईजर ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक १० रु का नोट नीचे फैंका, जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा
मजदूर ने नोट उठाया और अपनी जेब मे रख लिया, और फिर अपने काम मे लग गया .
अब उसका ध्यान खींचने के लिए सुपर वाईजर ने पुन: एक ५०० रु का नोट नीचे फैंका .
उस मजदूर ने फिर वही किया और नोट जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया .
ये देख अब सुपर वाईजरने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और मजदूर के उपर फैंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा. अब मजदूर ने ऊपर देखा और उसकी सुपर वाईजर से बात चालू हो गयी.
ये वैसा ही है जो हमारी जिन्दगी मे होता है.....
भगवान् हमसे संपर्क करना ,मिलना चाहता है, लेकिन हम दुनियादारी के कामो मे व्यस्त रहते है, अत: भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है, लेकिन हम उसे याद नहीं करते, और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये ये ना देखते हुए,उनका उपयोग कर लेते है, और भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है, लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते है, भगवान् का धन्यवाद नहीं करते ,उसे भूल जाते है.
तब भगवान् हम पर एक छोटा सा पत्थर फैंकते है , जिसे हम कठिनाई कहते है, और तुरंत उसके निराकरण के लिए भगवान् की और देखते है,याद करते है.
यही जिन्दगी मे हो रहा है.
यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान् के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें, तो हमें भगवान् के द्वारा फैंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा...!!!!!

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

सच्चाई

बेटे ने जॉब के खातिर घर ही छोड़ा था , लेकिन जॉब लगने के बाद शादी हुई, और शादी होने के बाद उसने घर के साथ साथ , रिश्ते भी छोड़ दिए थे , जिन रिश्तों ने उसे जन्म दिया था , वो अब उसकी जिन्दगी में कोई मायने नहीं रखते थे |
लेकिन आज बेटे ने माँ से फ़ोन पर लगभग आधा घंटा बात करी , बेटे के साथ साथ उसकी बहु ने उसके पोते पोतियों ने भी | माँ की अचरज का कोई ठिकाना ना रहा , पोता बड़े प्यार से कह रहा था , दादी आप यहाँ आओ ना हमारे साथ रहने, .. आज ऐसा महसूस हो रहा था उस बूढी माँ को , जैसे कानों में किसी ने मिश्री घोल दी हो  |

उसने अपने पति से कहा , अजी सुनते हो चलिए ना कुछ दिन बेटे के घर हो आते है , अभी उसके बच्चों की छुटियाँ भी है , तो उन्हें परेशानी भी नही होगी  वो बुजुर्ग दंपत्ति अगले दिन की ट्रेन पकड़ कर  बेटे के घर जा पहुंचे

सभी  उनकी , आवभगत में लगे हुए थे , 
कुछ दिनों के के बाद, बेटे ने माँ से कहा, माँ गाँव का अपना मकान और दुकान बेच दो , एक करोड़ से ऊपर की संपत्ति है , वो बेच कर, आप दोनों मेरे साथ यही रहने आ जाओ, मै आप के रहने का इंतजाम ऊपर किए देते हूँ , वही पर रसोई बना देता हूँ , आप दोनों ऊपर ही रहिये और बचा हुआ जीवन आराम से बिताइए , पिता जी ने सुन कर कहा ....बेटा , मेरे जीते जी ये संपत्ति बिकेगी नहीं , और यदि हमे यहाँ आ कर भी अकेले रहना है , तो गाँव में रहने में क्या बुराई है ? गुस्से से पिताजी ने बेटे को डांट दिया , बेटा माँ की और बड़ी हसरत से देख रहा था , लेकिन माँ के हाथ में कुछ था नहीं

जैसे तैसे रात ढली और सुबह होते ही बेटे ने कहा ....माँ आज हम लोग तीन दिन के लिए बाहर जा रहें है , मेरे ससुराल में कोई काम
अचानक आ गया है  , तो आप लोग गाँव चले जाइए , यहाँ आप की देखभाल करने वाला, कोई रहेगा नहीं, और वैसे भी आप लोगों को आलीशान बंगले से ज्यादा सुकून गाँव के उस टूटे फूटे से मकान में मिलता है , माँ को अब सुबह की सच्चाई साफ़ नजर आ चुकी थी, उसे पता चल चुका था की इस रिश्ते की जान , सिर्फ उस संपत्ति में निहित है |

माँ ने भारी मन से , अपना सामान उठाया , एक रात में द्रश्य एक दम बदल चुका था , कल जो बहु और पोते पोती दरवाजे तक लेने आये थे , आज वो लोग उस बुजुर्ग दंपत्ति को विदा करने के लिए, अपने कमरों से बाहर भी नहीं निकलें , माँ ने सामान , उठाते हुए कहा बेटा, उस टूटे हुए , मकान की हर ईंट पर हमारा अधिकार है , और देखना , इस आलिशान बंगले का क़र्ज़ भी , उसी से चुकेगा एक दिन अब सिर्फ सन्नाटा था रिश्तों के बीच ||