रविवार, 14 मई 2023

*मातृ दिवस*

 *माँ चली गई...* 

*कहीं बादलों के पार...* 

*उसका  श्रीनगर का कमरा खाली हो गया* 

*और घर का मंदिर सूना  हो गया. .*

*माँ के लिए मंदिर में दिया ज़रूर जलाती हूँ,*

*जो जो माँ करती थी* 

*सबकुछ वेसे ही दुहराती हूं . .*

*लेकिन ईश्वर से कभी*

*कुछ मांग नहीं पाती  हूँ,*

*क्या मांगूं और कैसे मांगती ,* 

*किसी को भी कैसे समझाती* 

*कि मेरी आवाज को आसमान तक* 

*जाने की आदत ही नहीं पड़ी,* 

*जब तक माँ थी,* 

*अपने लिए मांगने की* 

*जरुरत ही नहीं पड़ी. .*

*अब मैं जानती   हूं*

*मेरी आवाज उस लोक में*

*ईश्वर तक नहीं पहुंचेगी*

*लेकिन फिक्र क्या,* *मुझे विश्वास है*

*मेरी माँ है वहाँ,* 

*इसीलिए बेफिक्र हूं,वो सब देख लेगी..*












 

3 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार प्रस्तुति

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  2. मां के लिए दिल में सदैव एक कोना उसके जाने के बाद भी बना रहता है.....सुपर बहना

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thanx for your valuable comments