गुरुवार, 7 नवंबर 2019

***कभी सोचती हूं***

कभी सोचती हूं
क्यों न,उम्र को दराज़ में रख दूँ,
उम्रदराज़ ना बनु,
खो जाऊ ज़िन्दगी में अपनी
मौत का इन्तज़ार मैं  क्यू करू.
कभी सोचती हूं
.जिंदगी  है मेरी
जिसको आना है आये
जिसको जाना है जाये
ये तो वक़्त की पहचान है
मे तो जीना जानती हु
ज़िन्दगी में बार बार मिलते हैं कईं लोग
 उसी को पहचान बना लेती हु....
कभी सोचती में हूं ,अपना गुजरा   हुआ जमाना 
सोचकर कभी बचपन को जीती हूँ
कभी जवानी में सपने सँजोती हूँ
बुढापे में भी रहूँगी जवान ही
ऐसा में सोचती हूँ
महफिलों का शौक रखती हूँ
दोस्तों से प्यार भी   करती हूँ
जो रिश्ते मुझे समझ सकें
मैं उनसे जुड़ी रहती हूँ
बँधती नहीं किसी से
ना किसी को जुड़ने पर मजबूर करती हूँ
दिल से जोड़ती हूँ हर रिश्ता सबसे
और उन रिश्तों से दिल से ही, जुड़ी रहना चाहती हूँ...
हँसना मुझे भाता है
पर अपनों के लिये रोने से भी परहेज नहीं करती
कभी सोचती हूं मैं
जो दे देता है ,एक बार दगा
उससे दूर जाने में भी परहेज़ नहीं करती
,उन लोगो के बारे में जो याद आते हैं  कभी,
तो अपनी आँखें भिगो लेती हूँ
पर फिर ज़िन्दगी की हसीन वादियों में खो जाती हूँ
जानती हूँ कि मेरी ,ज़िन्दगी के पास अब 
समय कुछ थोड़ा है
शिकवे शिकायतों में व्यर्थ समय ,क्यों गँवाऊँ
क्यों न अब  शिद्दत से ज़िन्दगी जी लूँ 
 और प्रेम की गंगा हर तरफ बहाऊँ
कभी सोचती हूं कि
मैं रहूँ न रहूँ,कोई गम नहीँ
पर  किसी के तो दिल मे ,
मेरी छवि, मेरे बाद भी ज़िन्दा रहेगी,
मुझे दिल से जो भी याद करेगा
मैं उसे,  शायद महसूस कर सकूंगी...
ऐसा कभी मैं सोचती हूं ।



23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर पंक्तियों मे पिरोया है......

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  2. हमारे यहां तो महिला क्या पुरुष लगभग सभी की जिंदगी एक प्रकार से अच्छी है अभी जो ईरान के महिलाओ पर एक कविता का हिंदी अनुवाद नहीं पढा सचमुच दुःख होता है।
    पर ये बहुत बढिया है।

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    1. सही फरमाया जी आपने शुक्रिया

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  3. बहुत सही और बहुत सटीक पंक्तिया 👍🙏

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  4. Bahut sunder. Waah. 🍇🍇🌹🌹🌺🌺🌷🌷

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thanx for your valuable comments